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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : मंगलवार, 4 अगस्त 2020 (13:35 IST)

वेबदुनिया स्पेशल : राममंदिर आंदोलन से राममंदिर भूमिपूजन तक संपूर्ण ‘अयोध्याकांड’

राममंदिर आंदोलन को सबसे करीबी से देखने वाले पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी से बातचीत

वेबदुनिया स्पेशल : राममंदिर आंदोलन से राममंदिर भूमिपूजन तक संपूर्ण ‘अयोध्याकांड’ - Special Story: Ayodhya  Ram Mandir Andolan to  Ram Mandir Bhumi Pujan,
भगवान राम की नगरी अयोध्या सज कर तैयार हो चुकी है,5 अगस्त को होने वाले राममंदिर के भूमिपूजन का अनुष्ठान शुरु हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 अगस्त की दोपहर को शुभ मूहुर्त में भव्य राममंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन करेंगे। 
 
छोटी सी तीर्थ नगरी अयोध्या जो पिछले चालीस वर्षों में लगातार उतार चढ़ाव और उथल-पुथल देखा है, इन चालीस सालों में अयोध्या भारत की राजनीति का केन्द्र बिन्दु बनी रही और उनसे कई मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनाए, वह अयोध्या फिर एक बार ऐतिहासिक पल का गवाह बनने जा रही है। 
 
अयोध्या के चालीस सालों से अधिक समय के इस बदलाव को अगर देश में सबसे करीब से किसी पत्रकार ने देखा है तो वह बीबीसी के पूर्व उत्तर प्रदेश प्रमुख और वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी है। राममंदिर आंदोलन से लेकर राममंदिर भूमिपूजन के प्रत्यक्षदर्शी बनने जा रहे वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी से वेबदुनिया ने खास बातचीत की। रामदत्त त्रिपाठी के शब्दों में संपूर्ण ‘अयोध्याकांड’ की कहानी।
 
आजादी से पहले विवाद का इतिहास-रामजन्म भूमि परिसर जो अयोध्या के उत्तर पश्चिम छोर पर रामकोट मोहल्ले में एक ऊँचे पर टीले है। वहाँ से कुछ ही दूर सरयू नदी बहती है। किताबों में विवरण मिलता है कि हमलावर मुग़ल बादशाह बाबर ने पंद्रह सौ ईसवी में सरयू पार डेरा डाला था। बनी मस्जिद पर लगे शिलालेख और सरकारी दस्तावेज़ों के मुताबिक़ बाबर के आदेश पर उसके गवर्नर मीर बाक़ी ने यह मस्जिद बनवायी। लेकिन इसका रिकार्ड नहीं है कि बाबर अथवा मीर बाक़ी ने यह ज़मीन कैसे हासिल की और मस्जिद से पहले वहाँ क्या था ?

इस मस्जिद को लकेर स्थानीय हिंदुओं और मुसलमानों में कई बार संघर्ष हुए। इसी संघर्ष  के  दौरान हिंदुओं ने मस्जिद के बाहर हिस्से पर कब्जा कर चबूतरा बना लिया और भजन पूजा शुरु कर दिया। अयोध्या मे मस्जिद के स्थान पर झगड़ा1857 में आजादी की पहली लड़ाई के आसपास शुरू होता है जब बाबरी मस्जिद के एक मुतवल्ली मौलवी मोहम्मद असगर ने 30 नवंबर 1858 को लिखित शिकायत की हिंदू वैरागियों ने मस्जिद के सटाकर एक चबूतरा बना लिया है और मस्जिद की दीवारों पर राम-राम लिख दिया है। इसके बाद अप्रैल 1883 में निर्मोही अखाड़ा ने डिप्टी कमिश्नर फैजाबाद को दरखास्त देकर मंदिर बनाने की अनुमति मांगी लेकिन मुस्लिम समुदाय की आपत्ति के बाद नामंजूर हो गई। 
 
इसके बाद जनवरी उन्नीस सौ पचासी में निर्मोही अखाड़े के महँथ रघुबर दास ने चबूतरे को राम जन्म स्थान बताते हुए भारत सरकार और मोहम्मद असग़र के ख़िलाफ़ सिविल कोर्ट में पहला मुक़दमा दायर किया। जज पंडित हरि किशन ने अपने फैसले में लिखा कि चबूतरा और मस्जिद बिलकुल अग़ल - बग़ल हैं। दोनों के रास्ते एक हैं। और मंदिर बनेगा तो शंख, घंटे वग़ैरह बजेंगे, जिससे दोनों समुदायों के बीच झगड़े होंगे , लोग मारे जाएँगे। इसीलिए प्रशासन ने मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी थी। 
 
जज ने यह कहते हुए निर्मोही अखाड़ा के महंत को चबूतरे पर मंदिर बनाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया कि ऐसा करना  भविष्य में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच दंगों की बुनियाद डालना होगा। इस तरह मस्जिद के बाहरी कैंपस में मंदिर बनाने का पहला मुक़दमा निर्मोही अखाड़ा साल भर में  हार गया। इसके बाद यह मामला स्थानीय अदालतों में चलता रहा लेकिन अदालतों ने मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी।  
 
1952 के पहले चुनाव में ही राममंदिर बना राजनीतिक एजेंडा - 1948 में स्वामी करपात्री जी महाराज ने कांग्रेस के खिलाफ अखिल भारतीय राम राज्य परिषद बनायी जिसका प्रथम अध्यक्ष अपने विश्वासपात्र प्रिय गुरु भाई स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी महाराज को बनाया। 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में चुनावी घोषणा पत्र में राम राज्य परिषद ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के अध्यक्षता में यह घोषणा किया कि यदि भारत में परिषदकी सरकार बनती है तोअयोध्या, मथुरा और काशी सहित देश के तमाम उन मंदिरों का पुनरुद्धार कराया जाएगा, जिन्हें इस्लामिक काल मे नष्ट किया गया है। 

उधर स्वतंत्रता मिलने के बाद समाजवादियों ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनायी। आचार्य नरेंद्र देव समेत सभी विधायक विधान सभा से त्यागपत्र दे दिया। आचार्य नरेंद्र देव अयोध्या उपचुनाव में उम्मीदवार  बने।मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत अयोध्या उपचुनाव में समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव को हराना चाहते थे।  इसलिए कांग्रेस ने एक बड़े हिंदू सन्त बाबा राघव दास को उम्मीदवार बनाया।
 
पहली बार अयोध्या में के इस उपचुनाव में राम मंदिर निर्माण एक अहम मुद्दा बना। कांग्रेस प्रत्याशी बाबा राघवदास राम मंदिर का समर्थन करते हैं। मुख्यमंत्री पंत अपने भाषणों में बार-बार कहते हैं कि आचार्य नरेंद्र देव राम को नहीं मानते।इस अभियान के चलते भारत में समाजवाद के पुरोधा आचार्य नरेंद्र देव चुनाव हार गए।
 
बाबा राघव दास के अयोध्या विधान सभा चुनाव जितने से मंदिर समर्थक हिंदू वैरागी साधुओं के मनोबल काफ़ी बढ़ जाता है। वक़्फ़ इंस्पेक्टर मोहम्मद इब्राहिम ने 10 दिसम्बर 1948 को अपनी रिपोर्ट में प्रशासन को मस्जिद पर ख़तरे से  सतर्क किया। 
 
संतो और साधुओं ने की राममंदिर निर्माण की मांग -अयोध्या के साधुओं ने जुलाई 1949 में उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर फिर से मंदिर निर्माण की अनुमति  माँगी। उत्तर प्रदेश सरकार के उप सचिव केहर सिंह 20 जुलाई 1949 को फ़ैज़ाबाद डिप्टी कमिश्नर के के नायर को पत्र लिखकर जल्दी से अनुकूल रिपोर्ट माँगी। 

सरकार ने यह भी पूछा कि चबूतरे पर जहाँ मंदिर बनाने की माँग की गयी है वह ज़मीन नजूल की है अथवा नगरपालिका की। सिटी मजिस्ट्रेट गुरु दत्त सिंह फ़ैज़ाबाद 10 अक्टूबर को कलेक्टर को अपनी रिपोर्ट में बताया कि  वहाँ मौक़े पर मस्जिद के बग़ल में एक छोटा सा मंदिर है। इसे राम जन्म स्थान मानते हुए हिंदू समुदाय एक सुंदर और विशाल मंदिर बनाना चाहता है। सिटी मंज़िस्ट्रेट ने सिफ़ारिश किया कि यह नजूल की ज़मीन है और मंदिर निर्माण की अनुमति देने में कोई रुकावट नहीं है। झगड़ा बढ़ते देख प्रशासन ने वहाँ एक पुलिस चौकी स्थापित करके सुरक्षा में अर्ध सैनिक बल पीएसी लगा दी। 
 
पुलिस -पीएसी तैनात होने के बावजूद 22 / 23 दिसंबर 1949  की रात अभय राम दास और उनके साथियों  ने दीवार फाँदकर राम जानकी और लक्षमण की मूर्तियाँ मस्जिद के अंदर रख दीं। इन लोगों ने प्रचार किया कि चमत्कार  से भगवान राम ने वहाँ प्रकट होकर अपने जन्म स्थान पर वापस क़ब्ज़ा प्राप्त कर लिया। बताते हैं कि मस्जिद के मूर्तियाँ स्थापित करने में शेर सिंह नाम के एक सिपाही का सहयोग था। मुस्लिम समुदाय के लोग शुक्रवार सुबह की नमाज़ के लिए मस्जिद आए मगर प्रशासन ने विवाद टालने के लिए उनसे कुछ दिन की मोहलत माँगकर वापस कर  दिया। कहा जाता है कि अभय राम की इस योजना को गुप्त रूप से फ़ैज़ाबाद के कलेक्टर के के  नायर का आशीर्वाद प्राप्त था। कलेक्टर नायर कुछ साल बाद जनसंघ में शामिल होकर राम मंदिर समर्थक होने के नाम पर समीप के कैसरगंज क्षेत्र से लोक सभा चुनाव जीते।
 
सियासत के केंद्र में रामजन्म भूमि – 1977 में जनसंघ और अन्य विपक्षी दलों का गठबंधन जनता पार्टी चुनाव में इंदिरा गांधी को सत्ता से बाहर कर देता है, कांग्रेस की इस अप्रत्याशित पराजय के बाद 1980 में जब इंदिरा गांधी सत्ता में वापसी करती है तो उनका रुझान हिंदू धर्म के तीर्थों की ओर शुरू होता है,जिसे राजनीतिक टीकाकार नरम हिंदुत्व कहते हैं। उत्तर प्रदेश की श्रीपति मिश्र सरकार विवादित परिसर से सटाकर बयालीस एकड़ भूमि राम कथा पार्क के लिए अधिग्रहीत कर ली जाती है. फिर पुराने घाटों की खुदायी कर राम की पैड़ी बनती है. इसी बीच तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह भी अयोध्या दौरा कर लेते हैं। 
 
कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता देख संघ परिवार में मंथन शुरु हो जाता है। आरएसएस के महराज विजय कौशल एवं कुछ अन्य लोग हिंदू जागरण मंच के नाम से मुज़फ़्फ़र नगर में 6 मार्च 1983 को विराट हिंदू सम्मेलन आयोजित करते हैं, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री गुलज़ारी लाल नंदा, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पूर्व मंत्री डॉ दाऊ दयाल खन्ना भी शामिल होते हैं।राम जन्म भूमि मुक्ति का प्रस्ताव पास होता है,हापुड़,एटा,सहारनपुर में भी इसी तरह के सम्मेलनों में काफ़ी भीड़ होती है। संघ परिवार की सबसे बड़ी चिंता है कि सबसे विशाल उत्तर भारत में भाजपा के पैर नहीं जम रहे। इसी बीच दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम में धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर संघ और विश्व हिंदू परिषद अशोक सिंघल को आगे करके मुद्दा बनाते हैं. पर कोई  बड़ा आंदोलन नहीं बनता।
 
1983 में ही जगद्गुरु शंकाराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती खुल कर सामने आए और आम हिन्दुओँ, विशेषकर संत समाज को के रूप में जोर देकर कहा कि राम जन्मभूमि की मुक्ति सबके सहयोग और सद्भावना से बिना किसी जय पराजय की भावना से हो और शास्त्रोक्त विधि से भगवान राम का मन्दिर बने।
 
राममंदिर आंदोलन की शुरुआत - विश्व हिंदू परिषद हिंदुओं की तीन सबसे प्रमुख आराध्य राम,कृष्ण और शिव से जुड़े संस्थाओं काशी, मथुरा और अयोध्या की मस्जिदों को केंद्र बनाकर आंदोलन की रणनीति बनाता है। 7/8 अप्रैल 1984 को दिल्ली के विज्ञान भवन में धर्म संसद का आयोजन कर तीनों धर्म स्थानों की मुक्ति का प्रस्ताव पास होता है। चूँकि काशी और मथुरा में स्थानीय समझौते से मस्जिद से सटकर मंदिर बन चुके हैं, इसलिए पहले अयोध्या पर फोकस करने के निर्णय होता है। 27 जुलाई 1984 को राम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन होता है। गोरक्ष पीठाधीशवर महंत अवैद्यनाथ इसके अध्यक्ष और कांग्रेस के पूर्व मंत्री दाऊ दयाल खन्ना मंत्री बनते हैं।

एक मोटर का रथ बनाया जाता है जिसमें राम जानकी की मूर्तियों को अंदर क़ैद दिखाया जाता है। 25 सितम्बर को यह रथ बिहार के सीतामढ़ी से रवाना होता है। 8 अक्टूबर तक अयोध्या पहुँचते -पहुँचते हिंदू जन समुदाय में अपने आराध्य को इस लाचार हालत में देखकर आक्रोश और सहानुभूति उत्पन्न होती है। मुख्य माँग यह है कि मस्जिद का ताला खोलकर ज़मीन मंदिर निर्माण के लिए हिन्दुओं के रामानंदी सम्प्रदाय के आचार्य शिव रामाचार्य को दे दी जाए। इसके लिए साधु संतों का राम जन्म भूमि न्यास बनाया गया। प्रबल जन समर्थन जुटाती हुई यह यात्रा लखनऊ होते हुए 31 अक्टूबर को दिल्ली पहुँचती है। उसी दिन इंदिरा गांधी की हत्या के कारण उत्पन्न अशांति के कारण 2 नवम्बर को प्रस्तावित विशाल हिंदू सम्मेलन स्थगित कर दिए गए।
विवादित परिसर का ताला खुलने की कहानी- इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने और और शंकाराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने राजीव गाँधी को राम मन्दिर का ताला खुलवाने के लिए कहा,जिसे वे गाँधी मान गए थे। बताया जाता है कि शंकाराचार्य ने राजीव गाँधी को कहा कि रामायण और महाभारत का टीवी के माध्यम से प्रचार करो जिससे इस युवाओं में राम और कृष्ण का चरित्र स्थापित हो। राजीव गांधी की प्रेरणा से सरकारी चैनल दूरदर्शन ने रामानन्द सागर से रामायण सीरियल बनवाया ।
 
जयश्री राम और हरहर महादेव का नारा शंकराचार्य स्वरूपानंद ने सुझाया था जो अत्यधिक लोकप्रिय हुआ ।  माना जाता है कि इन धारावाहिकों के प्रसारण से देश में रामजी का वातावरण बना जिसे बाद के दिनों में राजनीति वाले भुनाते रहे । जब जय श्री राम का नारा अत्यधिक प्रचलित हो गया तब विश्व हिंदू परिषद ने भी जयश्री राम कोअपना लिया।
 
इसी बीच विश्व हिंदू परिषद ने विवादित मस्जिद का ताला खोलने के लिए फिर आंदोलन तेज़ दिया है और शिव रात्रि 6 मार्च 1986 तक ताला न खुला तो ज़बरन ताला खोलने की धमकी भी दी गयी। आंदोलन धार देने के लिए आक्रामक बजरंग दल का गठन किया जाता है। 
इस बीच अचानक फ़ैज़ाबाद ज़िला अदालत में एक वक़ील उमेश चंद्र पांडेय ने ताला खोलने की अर्ज़ी डाली, जबकि वहाँ लंबित मुक़दमों से संबंध नहीं था।ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस कप्तान ने ज़िला जज की अदालत में उपस्थित होकर कहा की ताला खुलने से शांति व्यवस्था क़ायम रखने में कई परेशानी नहीं होगी। इस बयान को आधार बनाकर ज़िला जज के एम पांडेय ने ताला खोलने का आदेश कर दिया।
 
घंटे भर के भीतर इस अमल करके दूरदर्शन पर प्रसारित भी कर दिया गया, जिससे यह धारणा बनी की यह सब राजीव गांधी सरकार द्वारा प्रायोजित था। वास्तव में इसके बाद ही पूरे हिंदुस्तान और दुनिया को अयोध्या के मंदिर मस्जिद विवाद का पता चला। 
 
बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन – विवादित परिसर का ताला खुलने की प्रतिक्रिया में मुस्लिम समुदाय ने मस्जिद की रक्षा के लिए बाबरी मोहम्मद आज़म खान और ज़फ़रयाब जिलानी की अगुआई में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन कर जवाबी आंदोलन चालू किया।
 
राममंदिर आंदोलन में भाजपा खुलकर सामने आई - विश्व हिंदू परिषद का मंदिर आंदोलन अब ज़ोर पकड़ चुका था. सरकार से सुलह समझौते की बातें हुईं कि हिंदू मस्जिद पीछे छोड़कर राम चबूतरे से आगे ख़ाली ज़मीन पर मंदिर बना लें। मगर संघ परिवार इन सबको नकार देता है। हिंदू और मुस्लिम दोनो के तरफ़ से देश भर में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति चलती है। स्टेज तैयार देख अब भाजपा खुलकर मंदिर आंदोलन के साथ आ जाती है। भारतीय जनता पार्टी  ने 11 जून 1989 को पालमपुर कार्यसमिति में प्रस्ताव पास किया कि अदालत इस मामले का फ़ैसला नहीं कर सकती औ सरकार समझौते अथवा संसद में क़ानून बनाकर राम जस्थान हिन्दुओं को सौंप दे।  
उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर अनुरोध किया कि चारों मुक़दमे फ़ैज़ाबाद  से अपने पास मँगाकर जल्दी फ़ैसला कर दिया जाए। 10 जुलाई 1989  को हाईकोर्ट मामले अपने पास मंगाने का आदेश देती है। हाईकोर्ट 14 अगस्त को स्थागनादेश जारी करता है कि मामले का फ़ैसला आने तक मस्जिद और सभी विवादित भूखंडों की वर्तमान स्थिति में कोई फेरबदल न किया जाए।
 
1989 में ही राम मन्दिर के आंदोलन के समय शंकराचार्य ने काशी के पंडितों  से राम मन्दिर के शिलान्यास का शुभ मुहूर्त निकलवाया जो कि उत्तरायण में 7 मई 1990 तय हुआ। बीजेपी यानी विश्व हिन्दू परिषद ने शंकराचार्य पहले ही शिलान्यास का कार्यक्रम बना लिया.  इसी वर्ष दिसम्बर में केंद्र और राज्य में चुनाव भी होने वाले थे।
 
विश्व हिंदू परिषद ने शंकाराचार्य को पीछे करने के लिए 9 नवम्बर को राम मंदिर के शिलान्यास और देश भर में शिला पूजन यात्राएँ निकालने की घोषणा कर दिया राजीव गांधी के कहने पर गृहमंत्री बूटा सिंह 27 सितम्बर को लखनऊ में मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के बंगले पर विश्व हिंदू परिषद से इन यात्राओं  के शांतिपूर्ण ढंग से निकालने के लिए  समझौता करते हैं। समझौते में अशोक सिंघल, अवैद्य नाथ और उनके साथी शांति सौहार्द और हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक़ यथास्थिति बनाए रखने का लिखित वादा करते हैं।

राजीव गांधी राम राज्य की स्थापना के नारे के साथ अपना चुनाव अभियान फ़ैज़ाबाद से शुरू करते हैं। उधर विश्व हिंदू परिषद मस्जिद से कुछ दूरी पर शिलान्यास के लिए झंडा गाड़ देती है। सरकार इस बात को साफ़ करने के लिए हाईकोर्ट जाती है की क्या प्रस्तावित शिलान्यास का भूखंड विवादित क्षेत्र में आता है या नहीं। 7 नवम्बर को हाईकोर्ट फिर स्पष्ट करता है कि यथास्थिति के आदेश में वह भूखंड भी शामिल है। फिर भी उत्तर प्रदेश सरकार यह कहकर 10 नवम्बर को शिलान्यास की अनुमति देती है कि  मौक़े पर पैमाइश में वह भूखंड विवादित क्षेत्र से बाहर है।माना जाता है कि संत देवरहा बाबा की सहमति से किसी फ़ार्मूले के तहत मस्जिद से क़रीब 200 फूट दूर शिलान्यास कराया गया। 

लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा - शिलान्यास का लाभ चुनाव में भाजपा को मिल गया. लोकसभा में भाजपा सीधे 2 सीट से 85 सीट पर  आ गयी। अब बीजेपी राम मंदिर आंदोलन को खुलकर अपने हाथ में ले लेती है, जिसका नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी को मिलता है। आडवाणी देश भर में माहौल बनाने के लिए 25 सितम्बर 1990 को सोमनाथ मंदिर से 30 अक्टूबर तक अयोध्या की रथयात्रा पर निकलते हैं। देश में कई जगह दंगे फ़साद होते हैं। लालू प्रसाद यादव आडवाणी को  बिहार में ही गिरफ़्तार कर रथ रोक लेते हैं।
 
मुलायम सरकार की तमाम पाबंदियों के बावजूद 30 अक्टूबर को लाखों कार सेवक अयोध्या पहुँचते हैं।लाठी गोली के बावजूद कुछ कर सेवक मस्जिद के गुंबद पर चढ़ जाते हैं। मगर अंत में पुलिस भारी पड़ती है। गोलीबारी में सोलह कार सेवक मारे जाते हैं, हालाँकि हिंदी अख़बार विशेषांक निकालकर सैकड़ों कारसेवकों के मरने और सरयू के लाल होने की सुर्ख़ियाँ लगाते हैं। मुलायम सिंह को मुल्ला मुलायम सिंह कहकर गाली दी जाती है वह हिन्दुओं में बेहद अलोकप्रिय हो जाते हैं और अगले विधान सभा चुनाव में उनकी बुरी पराजय होती है।  

दिल्ली और यूपी में सत्ता परिवर्तन– इस बीच केंद्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक सरकारें बदल जाती है। राजीव गांधी ्या के बाद नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बनते है तो उत्तर प्रदेश में मध्यावधि चुनाव में भाजपा के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बनते हैं। सरकार बनते ही कल्याण सिंह सरकार मस्जिद के सामने की 2.77  एकड़ ज़मीन पर्यटन विकास के लिए अधिग्रहीत कर लेती है। राम कथा पार्क के लिए अधिग्रहीत 42 एकड़ ज़मीन लीज़ पर विश्व हिंदू परिषद को दे दी जाती है। सरकार के निर्देश पर अधिकारी पुराने सिविल मुक़दमों में तथ्य बदलकर नए हलफ़नामे दाख़िल करते हैं। संघ परिवार चाहता है की मस्जिद के सामने पर्यटन के लिए अधिग्रहीत ज़मीन पर मंदिर निर्माण शुरू कर दिया जाए , जिसके लिए पत्थर तराशे जा चुके हैं। मगर हाईकोर्ट ने आदेश कर दिया कि  इस ज़मीन पर स्थायी निर्माण नहीं होगा। फिर भी जब जुलाई में निर्माण शुरू हो गया तो सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया।

6 दिसंबर 1992 की घटना –छह दिसंबर 1992 को फिर कार सेवा का ऐलान हुआ। कल्याण सरकार और विश्व हिंदू परिषद नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में वादा किया कि सांकेतिक कार सेवा में मस्जिद को क्षति नहीं होगी। कल्याण सिंह ने पुलिस को बल प्रयोग न करने की हिदायत दी। कल्याण सिंह ने स्थानीय प्रशासन को केंद्रीय बलों की सहायता भी नहीं लेने दी। आम कारसेवकों में आख़िरी क्षणों में सांकेतिक कर सेवा की घोषणा के ख़िलाफ़ रोष था। मस्जिद के साथ ही  संघ परिवार का यह घमंड भी टूट गया कि वे भीड़ को जैसे चाहे इस्तेमाल कर सकते हैं। 
 
आडवाणी, जोशी और सिंघल जैसे शीर्ष नेताओं,सुप्रीम कोर्ट के प्रेक्षक ज़िला जज तेज़ शंकर और पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में लाखों कारसेवकों ने छह दिसंबर को मस्जिद की एक- एक ईंट उखाड़कर मलबे के ऊपर एक अस्थायी मंदिर बना दिया। वहाँ पहले की तरह रिसीवर की देखरेख में दूर से दर्शन  पूजा शुरू हो गया।
 
मुसलमानों ने केंद्र सरकार पर मिली भगत और निष्क्रियता का आरोप लगाया पर प्रधानमंत्री ने सफ़ाई दी कि संविधान के अनुसार शांति व्यवस्था राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी थी और उन्होंने क़ानून के दायरे में रहकर जो हो सकता है किया।उन्होंने मस्जिद के पुनर्निर्माण का भरोसा भी दिया। मस्जिद ध्वस्त होने के कुछ दिनों बाद हाईकोर्ट ने कल्याण सरकार द्वारा ज़मीन अधिग्रहण को गैरकानूनी क़रार दे दिया। 
 
जमीन का अधिग्रहण –इस बीच केंद्र सरकार ने मसले के स्थायी समाधान के लिए संसद से क़ानून बनाकर विवादित परिसर और आसपास की लगभग 67 एकड़ ज़मीन को अधिग्रहीत कर लिया था। सरकार ने हाईकोर्ट में चल रहे मुक़दमे समाप्त करके सुप्रीम कोर्ट से राय माँगी कि क्या बाबरी मस्जिद का निर्माण कोई पुराना हिंदू मंदिर तोड़कर किया गया था। यानी  विवाद को इसी भूमि तक सीमित कर दिया गया।
 
इस क़ानून  की मंशा थी कि कोर्ट जिसके पक्ष में फ़ैसला लेगी उसे अपना धर्म स्थान बनाने के लिए मुख्य परिसर दिया जाएगा और थोड़ा हटकर दूसरे पक्ष को ज़मीन दी जाएगी। दोनों धर्म स्थलों के लिए अलग ट्रस्ट बनेंगे। यात्री सुविधाओं का भी निर्माण होगा।कमिश्नर फ़ैज़ाबाद को केंद्र सरकार की ओर से रिसीवर नियुक्त किया गया। 
 
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल का जवाब देने से इंकार कर दिया कि क्या वहाँ मस्जिद से पहले कोई हिंदू मंदिर था। जजमेंट के कहा गया कि अदालत इस तथ्य का पता लगाने के लिए सक्षम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में चल रहे मुक़दमों को भी बहाल कर दिया,जिससे दोनों पक्ष न्यायिक प्रक्रिया से विवाद निबटा सकें। 
राममंदिर के पक्ष में फैसला –आखिरकार 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसल में राममंदिर के पक्ष में फैसला सुनाते हुएअक तरह से इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजमेंट का अनुमोदन किया,साथ ही साथ 1993 में केन्द्र सरकार के अयोध्या में ज़मीन अधिग्रहण क़ानून की स्कीम के मुताबिक़ विवाद के निपटारे का निर्देश दिया.
 
कोर्ट ने भगवान राम लला विराजमान का दावा मंज़ूर करते हुए केन्द्र सरकार को निर्देश दिया है कि जजमेंट के तीन महीने के अंदर मंदिर निर्माण के लिए एक कार्य योजना प्रस्तुत करे। कोर्ट ने कहा है कि यह कार्य योजना 1993 में बने अधिग्रहण क़ानून की धारा छह और सात के अंतर्गत होगी. धारा छह में मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट गठित करने की बात है जिसके संचालन के लिए एक बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ होगा,इसी ट्रस्ट को मंदिर के निर्माण और आसपास ज़रूरी व्यवस्थाएं करने का अधिकार हो।
 
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फ़ैसले को पलट दिया है जिसमें सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के मुक़दमे को मियाद के बाहर बताया गया था.सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को नई मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ ज़मीन आवंटित करने का आदेश दिया.  
 
कोर्ट ने यह भी कहा है कि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड इस ज़मीन पर मस्जिद बनाने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने को स्वतंत्र होगा अर्थात उस पर कोई बाधा नहीं डाली जाएगी। इस बीच नरेंद्र मोदी सरकार ने पाँच फ़रवरी को राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास का गठन कर फटाफट सारी ज़मीन हस्तांतरित कर दी।प्रधानमंत्री ने स्वयं इसकी घोषणा संसद में की। ट्रस्ट ने जल्दी जल्दी भगवान राम की मूर्ति को पास में एक अस्थायी मंदिर में स्थानांतरित करके शिलान्यास भूमिपूजन की तैयारी शुरू कर दी. अब पाँच अगस्त को प्रधानमंत्री अयोध्या में शिलान्यास भूमिपूजन करेंगे ।