मेष : (चु, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ) अश्विनी, भरणी एवं कृतिका नक्षत्र के प्रथम चरण के संयोग से मेष राशि का निर्माण हुआ है। मेष राशि का मान 4 घटी और 15 पल है। इसके अधिपति देवता भगवान श्रीगणेश हैं। इसके स्वामी मंगल को सेनानायक का पद प्राप्त है।
इस राशि वाले जातक साहसी और अपने मित्रों से प्रेम करने वाले होते हैं। मेष राशि वालों के लिए यह वर्ष पुरुषार्थ के साथ कार्यक्षेत्र में असंतोष, कलह का सामना, बुद्धि, मन में चंचलता की अतिरेक से कुछ अन्यत्र भाव स्वभाव एवं अपवाद से भरा हुआ रहेगा। ध्यान रखें शुभ कार्यों में भी अड़चनें आएँगी। 29 नवंबर से गुरु कर्म भाव में नीच राशि में आ रहा है। धन के नुकसान के साथ वाणी में कठोरता का अहसास होगा। कुछ विषाद परंतु मान-सम्मान, ख्याति बढ़ेगी। संतान की चिंता रहेगी। यथोचित कर्म से प्रेरित होकर ही कर्म करें।
माता को कष्ट के योग हैं। आपको जन्म स्थान से दूर जाना पड़ सकता है। उदारता से दान देने से शांति मिलेगी। कठिन परिश्रम के पश्चात ही सुख-चैन सफलता मिलेगी। निर्माण कार्य में रुकावट और मंदी रहेगी। कुछ कर्ज का योग। 1 नवंबर से 15 दिसंबर तक मंगल अष्टम में रहने से आय से अधिक खर्च। संतान संबंधित चिंता, परंतु अचानक लाभ भी होगा। व्यापार-व्यवसाय में घाटा महसूस करेंगे। केतु-शनि व गुरु की पूजा एवं जप से सफलता प्राप्त करें।
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वृषभ : (ई, उ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे) कृतिका के तीन चरण, रोहिणी और मृगशिरा नक्षत्र के प्रथम एवं द्वितीय चरण से वृषभ का जन्म हुआ। वृषभ राशि का मान 4 घटी और 45 पल है। वृषभ राशि के स्वामी शुक्र ग्रह हैं। इसकी अधिपति महालक्ष्मी देवी हैं।
वृषभ राशि वालों को पूर्व वर्षानुसार शनि ढैया चल रहा है। रोग, पीड़ा, माता को कष्ट, घर में अशांति, मनमुटाव, सहनशीलता में कमी, सामान्य बात के लिए झगड़े की आशंका बनती है। परिवार में कलह और आर्थिक चिंता बनी रहेगी। संतान सुख के साथ चिंता भी बनी रहेगी। पुण्य में खर्च होगा। पराक्रम, शौर्य द्वारा सफलता हासिल करेंगे। भौतिक और वाहन सुख, मित्रादि से लाभ। शत्रु पर विजय प्राप्त होगी। गुरु भाग्य स्थान में आने से धर्म कार्य, पुण्य और पवित्र कार्यों में विघ्न के साथ आस्था में वृद्धि होगी।
गुरु की कृपा से कुछ सिद्धी प्राप्त कर सकेंगे। उन्नति, प्रतिष्ठा, सुख-शांति, धीरे-धीरे सभी कार्य सुचारु रूप से होंगे। उद्योग-धंधे में लाभ मिलेगा। राज्यपक्ष से सहयोग प्राप्त होगा। परिवर्तन आपके लाभ के लिए होगा। कर्ज से मुक्ति मिलेगी। सर्विस वालों के लिए वर्ष श्रेष्ठ रहेगा। स्त्रियों को शुभ-अशुभ मिश्रित फल प्राप्त होंगे। शनि और गुरु के मंत्र एवं जप करें।
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मिथुन : (का, की, कु, घ, ड, छ, के, को, हा) मृगशिरा नक्षत्र के तृतीय, चतुर्थ चरण, आर्द्रा नक्षत्र पूर्ण और पुनर्वसु नक्षत्र के तीन चरणों के संयोग से मिथुन राशि का निर्माण हुआ है। मिथुन राशि का मान 5 घटी और 15 पल है। बुध मिथुन राशि के स्वामी हैं। मिथुन राशि के अधिपति नारायण हैं।
मिथुन राशि के लिए यह वर्ष शुभाशुभ मिश्रित फल वाला रहेगा। आर्थिक परेशानी के साथ नई समस्या, जन-धन हानि का योग बनता है। व्यय, मित्र और बंधुओं से विरोध के योग, घर-गृहस्थ जीवन में विषमता का सामना करना पड़ सकता है। योग्य व्यक्तियों और पूज्य गणमान्यों से मिलकर सहानुभूति प्राप्त कर यशस्वी बनना होगा। कार्य में उलझनें, पराधीनता, इज्जत, सम्मान में कमी महसूस करेंगे। आप देवी आराधना से सफलता प्राप्त कर सकते हैं। चतुर, अवसरवादियों से दूर रहें। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें और नर्वसता न लाएँ।
पेट की परेशानी गैस, वायु विकार रहेगा। खानपान का ध्यान रखें। उच्च व्यक्तियों से दूरी एवं बिना वजह विवाद, तकलीफ, ईर्ष्या एवं बैर का सामना करना पड़ सकता है। धर्म, कर्म और पश्चिमी भौतिक सुख में खर्च होगा। राज्य में अमान्यता, अनेक कष्टों से सामना करना पड़ेगा। मांगलिक कार्य में खर्च शुभ होगा। जीवनसाथी से सुख और सहयोग में कमी महसूस करोगे। हानि और चोरी की आशंका बनती है। सावधान रहें। स्त्रियों को सौभाग्य वृद्धि किंतु पति के रोग, चिंता का विषय, क्लेश युक्त वर्ष रहेगा। गुरु और ईष्ट देवता की आराधना से सफलता मिलेगी।
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कर्क : (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो) कर्क राशि पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण पुष्य और आश्लेषा नक्षत्र के संयोग से बनी है। कर्क राशि का मान 5 घटी और 30 पल है। कर्क राशि का स्वामी चंद्र ग्रह है। इस राशि की अधिपति देवी माँ पार्वती हैं।
कर्क राशि वालों के लिए यह वर्ष समृद्धि, संपत्ति लाभ, निरोधक, रोग, उपद्रव वाला विचित्र भाव, प्रेरणा, रुचिकर, पापर्टी कारोबार के लिए ठीक नहीं रहेगा। नेत्र पीड़ा, भूमि-भवन, खेती का विवाद और अधिक व्यय का योग है। आरोग्यता रहेगी। दिनचर्या पर ध्यान दें। लाभ के लिए आप अनेक युक्तियों का सहारा ले सकते हैं। आय से ज्यादा खर्च के योग बनते हैं। व्यापार-व्यवसाय में नुकसान। किसी की भागीदारी न करें, नुकसान होगा। शेयर, लॉटरी वाले सावधानी से कार्य करें। मित्रों और अधिकारियों के सहयोग से कार्य पूर्ण होंगे। पत्नी का स्वास्थ्य नरम-गरम रहेगा। पदोन्नति में बाधा, अवसरवादी से सावधानी रखें। दुर्जनों से निकटता बढ़ेगी। अविवाहितों को विवाह के योग हैं। व्यापारिक बंधुओं के लिए मध्यम। कृषकों को लाभ मिलेगा।
स्त्रियों को दु:ख का सामना, अपकीर्ति, आर्थिक परेशानी का सामना भी करना पड़ेगा। सप्तशती के पाठ एवं श्रीगणेश की आराधना तथा शनि दर्शन लाभ, जाप से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
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सिंह : (मा, मी, मू, मे, मो, टो, टी, टु, टे) मघा, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा फाल्गुनी के प्रथम चरण के संयोग से सिंह राशि बनी है। सिंह राशि का मान 5 घटी और 15 पल है। सिंह राशि के स्वामी सूर्यदेव हैं। इसके अधिपति देवता भगवान रुद्र हैं।
सिंह राशि वालों के लिए यह वर्ष कुछ खुशी, मिलनसार, सहभागिता और अधिक परिश्रम से सफलता दिलाने वाला रहेगा। रोग, उद्वेग से भय एवं चिंता रहेगी। वाद-विवाद से स्वयं को बचाएँ और संयम रखें। सोचे कार्य में विघटन और अस्थिरता रहेगी। व्यर्थ खर्च, भ्रमण, रोग, उपद्रव आदि से भी सजग रहें। शत्रुपक्ष से आरोप-प्रत्यारोप तथा संपत्ति संबंधित विवाद में सहानुभूति मिलेगी। पदोन्नति और लाभ में विरोधियों द्वारा हस्तक्षेप होगा। नवीन कार्य में रुकावट आएगी। भूमि, संपत्ति से संबंधित कार्य में कोर्ट-कचहरी में जाना पड़ सकता है। अपमान और अपवाद का सामना करना पड़ सकता है। सहयोग वालों का अभाव रहेगा। 1 नवंबर से 16 दिसंबर तक दु:ख-पीड़ा, अशांति बाहर जाने की इच्छा प्रबल होगी।
शनि, केतु की आराधना, जप-पूजन से सफलता और शांति प्राप्त होगी।
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कन्या : (टो, पा, पी, पु, ष, ण, ढ, पे, पो) कन्या राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के तीन चरण, हस्त और चित्रा नक्षत्र के दो चरणों के योग से बनी है। कन्या राशि का स्वामी बुध ग्रह है। यह रजोगुणी राशि मानी गई है।
कन्या राशि के लिए यह वर्ष शनि साढ़े साती का ढैया वाला है। पूर्ववत स्थिति का सामना करना पड़ेगा तथा प्रतापी, शौर्यता द्वारा समाज संस्था में मान्यता, जनता की सहानुभूति प्राप्त करना होगी। अपने अंदर दुर्बलता एवं अनुचित विचार महसूस करेंगे। ध्यान रखें। आप धनार्जन के लिए अनेक युक्तियों का प्रयोग करेंगे और लाभान्वित होंगे। सुख-शांति का अभाव महसूस करेंगे। परंतु धनागम बना रहेगा।
अपने कार्य को उत्साह और प्रयत्नशीलता के साथ करें। सफलता प्राप्त होगी। रुका हुआ पैसा मिलने की संभावना बनती है। कुटुम्ब से समानता के भाव रहेंगे। कार्यक्षेत्र और बुद्धि में कमजोरी महसूस करेंगे। कुटुम्ब, आध्यात्मिक लाभ से आर्थिक स्थिति दृढ़ रहेगी। संकल्प शक्ति से कोष में वृद्धि। शत्रुविरोधियों से जय। न्यायिक फैसले आपके पक्ष में होंगे। विद्यार्थियों को परीक्षा में सामान्य विरोध का सामना करना पड़ सकता है। व्यापारी बंधु लाभान्वित होंगे। राजकीय कर्मचारियों के लिए यह वर्ष स्थानांतरण वाला रहेगा।
स्त्रियों को भ्रमण, विचार शक्ति में परिवर्तन एवं शांति से निकालना पड़ेगा। वर्ष में शनि-राहु के जाप-पूजन से सफलता मिलेगी।
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तुला : (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तु, ते) तुला राशि चित्रा नक्षत्र के दो चरण स्वाति और विशाखा के तीन चरणों के योग से बनी है। तुला राशि का मान 5 घटी और 14 पल है। इसका राशि स्वामी शुक्र है।
तुला राशि वालों के लिए यह वर्ष विचित्र रहेगा। इच्छाशक्ति कल्पना के विपरीत फल वाला कार्यक्षेत्र में उच्चाटन, अशांति महसूस होगी। सहजता, लगन और धैर्य के साथ कार्य करें और बुजुर्गों, विद्वान की सलाह लें, जीवन की विषमता दूर होगी। बंधु-मित्रों से दूरी, माता-पिता के स्वास्थ्य की चिंता, घर-कुटुम्ब, जायदाद संबंधित विसंगति उभरकर सामने आएगी। भौतिक सुख-साधनों की हानि, शत्रु, रोग का सामना करना पड़ेगा। शेयर में हानि, अर्थ के लिए और अन्यत्र कर्म द्वारा लाभ पाने की इच्छा बनी रहेगी। व्यापार में मंदी।
नौकरी वालों को स्थानांतरण और कार्यालय में अधिकारियों, साथियों से कष्ट बना रहेगा। अच्छे कार्य में बुराई मिलेगी। पेट से संबंधित बीमारी से परेशान रहेंगे। समाज और परिवार में कुछ घटना से चिंतित रहेंगे। आजीविका के साधनों में आशा के विपरीत फल मिलेगा। सम्मान को ठेस पहुँचेगी, परंतु इज्जत बची रहेगी। चोट का भय। विद्यार्थी के लिए ठीक रहेगा। कृषिवालों के लिए मिला-जुला मिश्रित फलवाला वर्ष रहेगा। गुरु, राहु के जप-पूजन और दर्शन से यह वर्ष सफल होगा।
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वृश्चिक : (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू) वृश्चिक राशि विशाखा नक्षत्र के एक चरण, अनुराधा और ज्येष्ठा नक्षत्र के संयोग से बनी है। वृश्चिक राशि का मान 5 घटी और 15 पल है। इसका राशि स्वामी मंगल है।
वृश्चिक राशि वालों के लिए यह वर्ष भाग्यवृद्धि, सुख-समृद्धि वाला रहेगा। ये हर क्षेत्र में विकास, सफलता, पराक्रम, साहस बल्कि प्रबलता और गौरव प्राप्त करेंगे। परंतु बंधु-मित्र व नौकरों से कुछ परेशानी हो सकती है। राजकाज में पदोन्नति का लाभ होगा। व्यापार-व्यवसाय, रोजगार के कार्य में प्रगति, नए कार्य में प्रगति होगी। कार्यस्थल में सामान्य विरोध महसूस होगा। मिलनसारिता से लाभ, सुख-शांतिपूर्वक वर्ष निकलेगा। सुख-दु:ख का मिश्रित फल भी मिलेगा। बुद्धिमत्ता, चतुरता और तार्किक बुद्धि से आप विजयी होंगे।
रिश्तेदारों, अन्य प्रेमी, मिलनसारों द्वारा भी कुछ कार्य होंगे। कुछ व्यय भी बढ़ेगा। शुभ कार्य, पुण्य कर्म, ईश्वर के प्रति भावना में वृद्धि होगी। अविवाहितों के लिए मंगल का सूचक है। आय के स्रोत को नया आयाम मिलेगा। कुटुम्ब में प्रेम, सहभागिता, मिलनसारिता की भावना से घर-परिवार का वातावरण उत्साह और उमंग से भरा रहेगा। हवाई और जलयात्रा के योग भी बनते हैं। केतु के जप और गणेश आराधना से सफलतापूर्ण पूरा वर्ष व्यतीत होगा।
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धनु : (ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे) धनु राशि मूल, पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा के संयोग से बनी है। इस राशि के स्वामी गुरु हैं। धनु राशि का मान 5 घटी और 30 पल है।धनु राशि वालों के लिए यह वर्षमिला-जुला असर वाला रहेगा। आर्थिक-संपत्ति का विवाद एवं जमीन को लेकर चिंता रहेगी। नेत्र पीड़ा रहेगी। परिवार में कलह के योग, भ्रमण में खर्च, बंधु-परिवार में कलह के योग, भ्रमण में खर्च, बंधु-बांधव का विरोध और मतभेद की स्थिति बनेगी। न्यायिक व्यय, कामकाज और नौकरी में कष्ट के योग बनते हैं। घर में असंतोष की स्थिति और कर्ज के योग हैं। अचानक विपत्ति आ सकती है।
राजनेता के लिए चुनौती वाला वर्ष है। अविवाहित के विवाह योग हैं। माता-पिता के स्वास्थ्य को लेकर चिंता रहेगी। पेट संबंधित तकलीफ रहेगी। 1 नवंबर से 1 दिसंबर तक अतिव्यय, तंगी का सामना, झगड़े, नौकरी पर खतरा बने रहने के योग हैं। गुरु-राहु के जाप कराएँ अथवा सप्तशती का पाठ करें।
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मकर : (भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी) मकर राशि उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के तीन चरण, श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्र के दो चरण से बनी है। मकर राशि का मान 5 घटी और 15 पल है। इस राशि के स्वामी शनिदेव हैं।
मकर राशि शनि की ढैया से गुजर रही है। इस राशि वाले जातक को पुरानी पीड़ा के अलावा नई समस्या का सामना करना पड़ेगा। अस्थिरता और शीघ्र कमजोर हो जाने का अहसास होगा। शरीर कष्ट, सामान्य विकारों का अहसास और कुटुम्ब की समस्या में उलझे रहेंगे। लाभांश की चिंता बनी रहेगी। इस वर्ष शरीर में कमजोरी और अस्वस्थता के साथ उच्चाटन रहेगी। बंधु-बांधवों के साथ अनुकूलता नहीं मिलेगी। स्वयं की बुद्धि, धैर्य और साहस के बल पर वर्ष शांति से निकालना पड़ेगा। सर्विस वालों को भी मतभेद का सामना करना पड़ सकता है।
उद्योग-धंधे के मामले में भी अवरोध उत्पन्न होंगे। पत्नी को कष्ट की आशंका बनती है। शरीर, पैर, जोड़ों में दर्द, चोट, दुर्बलता, पेट के रोग, दंतपीड़ा आदि से प्रभावित होंगे। राजनीति वालों को भी जनता के विरोध का अहसास होगा। संतान के भाग्यवश और पत्नी के सहयोग का आपको लाभ मिलेगा। सप्तशती एवं गुरु, शिव आराधना करें, सफलता मिलेगी।
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कुंभ : (गु, गे, गो, सा, सी, सु, से, सो, दा) कुंभ राशि के दो चरण, शतभिषा और पूर्वा भाद्रपद के तीन चरणों से मिलकर कुंभ राशि बनती है। इस राशि का मान 4 घटी और 45 पल है। इसके राशि स्वामी शनि हैं।
इस राशि वाले जातकों के लिए विदेश यात्रा, स्थान परिवर्तन, अपव्यय के योग हैं। परंतु मंगलमय कार्य में भी खर्च होगा। पीड़ा, शोक, कुछ अनाधिकार, अधिक चेष्टा, लघु विचारों से उभरना होगा। चंचलता त्याग कर धैर्य, नीति, विचारशक्ति से कार्य करना होगा। पुरानी न्यायालयीन उलझनें दूर होंगी। आपके पक्ष में निर्णय होगा। शत्रु पर विजय प्राप्त होगी। आरोग्यता रहेगी। संकटों से मुक्ति मिलेगी और वर्ष निविर्वाद रहेगा।
गृहस्थ जीवन में अशांति, मतभेद का वातावरण, राज्याधिकारी को संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है। अपनी समस्या का निदान असंभव-सा लगेगा। कुछ पराधीनता भी सहना पड़ेगी। बड़ी पूँजी, उधारी, भागीदारी के कार्यों में सावधानी रखना होगी। नेत्रपीड़ा, अनुचित विचित्र कर्म, गुप्त कार्य में रुचि बढ़ेगी। व्यापारी, नौकरीपेशा के लिए शुभ रहेगा। गुरु, शनि, राहु की शांति, जप से वर्ष अनुकूल रहेगा।
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मीन : (दी, इ, झ, त्र, दे, दो, चा, ची, थ) मीन राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र के चतुर्थ चरण, उत्तरा भाद्रपद और रेवती नक्षत्र के सहयोग से बनी है। इसके राशि स्वामी गुरु हैं। मीन राशि वालों के लिए यह वर्ष सर्वश्रेष्ठ रहेगा। आरोग्यता बनी रहेगी। सर्व विजयी और घर तथा बाहर रिश्तेदारों से भी मान्यता वाला वर्ष रहेगा। शत्रु निर्बल और निराश होंगे। नौकरी में पदोन्नति होगी।
व्यापार-व्यवसाय में लाभ प्राप्त होगा। मुकदमे में जीत मिलेगी। शिक्षा में अच्छी उन्नति होगी यानी विद्यार्थियों के लिए श्रेष्ठ। शुभ मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। कुटुम्ब में आपके प्रति वातावरण अच्छा रहेगा। कुटुम्ब, भाई-बहन से सहमति। कुछ ईष्ट द्वारा सफलता और सिद्धी प्राप्त होगी। पैर में चोट, मोच की तकलीफ, पेट के विकार और गैस संबंधित तकलीफ रहेगी।
स्त्रियों के सौंदर्य और सौभाग्य में वृद्धि और हर्ष वाला वर्ष रहेगा। वर्ष में केतु की आराधना कर सकते हैं। सफलता मिलेगी। इतिशुभम्।