जानें शुक्र से होते हैं कौन से अनिष्ट, शांति के उपाय
शुक्र शुभ ग्रह होकर भोग और विलास का कारक ग्रह है और इस पृथ्वी पर जातक पांच कर्मेंद्रियों और पांच ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से सुखोपभोग करता है अर्थात जातक को कब, कितनी मात्रा में किस प्रकार का सुख उपलब्ध होगा, इसका निर्णय शुक्र की जन्म कुंडली में स्थिति देखकर किया जाता है।
बिगड़ा हुआ शुक्र जातक का जीवन ही व्यर्थ सिद्ध करता है, क्योंकि मनुष्य का जन्म ही कर्मों के फल भोगने हेतु होता है। यदि उसे जीवनपर्यंत अशुभ फल ही भोगने पड़ते हैं तो इस जीवन के कर्म भी अशुभ हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप वह पुनर्जन्म के बंधनों में जकड़न महसूस करता है। शुक्र का जन्म कुंडली में निम्न स्थितियों में जातक को अशुभ फल या अनिष्ट भोगना पड़ता है।
शुक्र से होते हैं यह अनिष्ट(1)
यदि जन्म कुंडली के किसी भी भाव में शुक्र वक्री, नीच राशि, शत्रु राशि में स्थित हो या पापी ग्रहों के युक्त या दुष्ट हो तो जातक को घर-वाहन, वैभव, स्त्री सुख से वंचित कर परस्त्रीगामी तथा यौन रोगों से ग्रस्त बनाता है।(2)
छठे या आठवें भाव में शुक्र किसी भी राशि में हो तो जातक कई प्रकार के रोग और शत्रुओं से ग्रस्त रहता है। छठे भाव में शुक्र होने से जातक दुराचार, डरपोक, सातवें भाव में शुक्र होने से परस्त्रीगामी और स्त्रियों के पीछे भागने वाला तथा उनसे अपमानित होता है।
(3)
तृतीय भाव में स्थित शुक्र जातक को आलसी, कायर तथा अष्टमस्थ शुक्र जातक को क्रोधी, दुखी, पत्नी से पीड़ित तथा गुप्त रोगी बनाता है। पुरुष की जन्म कुंडली में शुक्र स्त्री जाति का प्रतिनिधित्व करता है अत: शुक्र से जितने पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट होता है, जातक के जीवन में उतनी ही स्त्रियों से हानिकारक और अपमानजनक संबंध होते हैं।(4)
किसी भी भाव का स्वामी होकर यदि उसके छठे या आठवें भाव में शुक्र हो तो उस भाव से संबंधित अशुभ फल प्राप्त होते हैं जबकि बारहवें भाव में स्थित शुक्र शुभ फल प्रदान करता है, क्योंकि बारहवां भाव व्यय भाव है तथा जातक अपने जीवन में भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए ही व्यय करता है। अत: यदि बारहवां शुक्र शुभ ग्रहों से युक्त या दुष्ट होगा तो शुभ व्यसनों या कार्यों पर व्यय होता है अन्यथा नहीं।
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