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श्रद्धापूर्वक करें श्राद्ध

कैसे करें श्राद्ध

श्राद्ध पर्व
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पितरों के निमित्त विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है उसे श्राद्ध कहते हैं। 12 सितंबर से महालय (श्राद्ध पक्ष) प्रारंभ हो गया है। श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों में अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठाता की आयु को बढ़ा देते हैं। साथ ही धन धान्य, पुत्र-पौत्र तथा यश प्रदान करते हैं।

पं. अमर डिब्बावाला के अनुसार जिस कर्म विशेष में दुग्ध, घृत तथा मधु से युक्त सुसंस्कृत उत्तम व्यंजन को श्रद्धापूर्वक पितरों के निमित्त ब्राह्मणादि को भेंट किया जाए, वही श्राद्ध है। भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष प्रारंभ हो जाता है।

शास्त्रोक्त मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष 16 दिनों का होता है। हालांकि एक पक्ष काल में (कृष्ण पक्ष) 15 दिन तथा 15 तिथियां होती है। हर तिथि के अलग-अलग अधिपति है। जिस व्यक्ति ने जिस तिथि पर शरीर का परित्याग किया है, कृष्ण पक्ष के दिनों में उसी तिथि पर उसका श्राद्ध किया जाना चाहिए।

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पितरों की तृप्ति तथा आदित्य लोक में उनके पद की वृद्धि के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार पितृ साढ़े दस माह क्लेश करते हैं। भाद्रपद, आश्विन तथा कार्तिक में परिवारजनों से जलदान, पिंडदान की आशा, तृष्णा रखते हैं। इन तीन माह में अर्थात कन्या, तुला तथा वृश्चिक राशिपर्यंत सूर्य की साक्षी पितरों का तर्पण व पिंडदान किया जाए तो वे तृप्त हो आशीर्वाद देते हैं।

श्राद्ध कैसे करें : भारत में किसी भी तीर्थ पर जाकर पितृ की तिथि अनुसार योग्य विद्वान ब्राह्मण द्वारा कर्मकांड के अंतर्गत सर्वप्रथम तीर्थ के देवता, ऋषि मंडल, पितृ एवं द्विय मनुष्य के निमित्त श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करें। उत्तर तथा दक्षिण दिशा में क्रमशः देव, ऋषि, यम, पितृ आदि का तर्पण वैदिक पद्धति से शांत चित्त से करना चाहिए।

कैसे समझें पितृ अतृप्त हैं : कभी परिवार में अस्थिरता का वातावरण हो, परिवारजन मानसिक तनाव के दौर से गुजर रहे हों तो मत्स्यपुराण का संकेत है कि उस घर के पितृ अतृप्त हैं, अतः वैदिक रीति से श्राद्ध करें। श्राद्घ ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र को करना चाहिए। इनकी अनुपस्थिति या श्रद्धारहित होने पर मंझला पुत्र श्राद्ध करने का अधिकारी है।

तो प्रसन्न होंगे पितृ : तीर्थ पर तर्पण, सुपिंडि श्राद्ध तथा पितृ दोष होने पर नारायण बल्ली कर्म द्वारा सुपिंडि श्राद्ध, अनवष्टका श्राद्ध, दर्श श्राद्ध तथा इन सबके निमित्त ब्राह्मण भोजन, बटुक, कन्या को भोजन करा यथेष्ठ वस्तुदान करने से पितृ प्रसन्न होकर शुभाशीष देते हैं।