शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व: शुक्र प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है, खासकर उन लोगों के लिए जो जीवन में सुख-शांति, धन और दांपत्य सुख चाहते हैं। यह व्रत धन-धान्य और ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए बहुत फलदायी माना जाता है। शुक्र ग्रह को सौंदर्य, प्रेम और भौतिक सुख-सुविधाओं का कारक माना जाता है। इसलिए इस दिन व्रत करने से शुक्र ग्रह मजबूत होता है।
5 सितंबर 2025, शुक्रवार : शुक्र प्रदोष व्रत का समय-
भाद्रपद, शुक्ल त्रयोदशी प्रारम्भ- 05 सितंबर को 04:08 ए एम पर।
समाप्त- 06 सितंबर को 03:12 ए एम पर।
त्रयोदशी प्रदोष पूजन समय- 06:50 पी एम से 09:09 पी एम।
कुल अवधि- 02 घण्टे 19 मिनट्स।
पूजा विधि: प्रदोष व्रत की पूजा हमेशा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल सूर्यास्त से 45 मिनट पहले शुरू होता है और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक रहता है।
1. तैयारी:
- व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सफेद या हल्के रंग के साफ कपड़े पहनें।
- पूरे दिन उपवास रखें। अगर संभव न हो तो फलाहार ले सकते हैं।
- पूजा के लिए बेलपत्र, धतूरा, आक के फूल, गंगाजल, कच्चा दूध, चावल, चंदन, धूप, दीपक और मिठाई (खीर, हलवा) जैसी सामग्री एकत्रित करें।
2. पूजा का स्थान:
- पूजा के लिए एक साफ जगह चुनें।
- भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- शिवलिंग हो तो बेहतर है।
3. पूजा की प्रक्रिया:
- सबसे पहले, शिवलिंग पर गंगाजल और कच्चे दूध से अभिषेक करें।
- अब उन्हें चंदन का लेप लगाएं और बेलपत्र, धतूरा, और फूल अर्पित करें।
- भगवान को भोग लगाएं और घी का दीपक जलाएं।
- इस दौरान "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।
- प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
- पूजा के अंत में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें।
4. व्रत का पारण:
- पूजा पूरी होने के बाद, आप जल ग्रहण करके व्रत का पारण कर सकते हैं।
- अगले दिन सुबह स्नान करके ही अन्न ग्रहण करें।
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