ग्रहों का मानव जीवन पर प्रभाव पड़ता है या नहीं और कैसे कोई ग्रह खराब या अच्छा हो सकता है?
प्रत्येक तार्किक व्यक्ति के मन में यह सवाल उठता है कि कैसे कोई ग्रह या नक्षत्र मानव जीवन पर प्रभाव डाल सकते हैं और उनका जीवन बदल सकते हैं और कैसे कोई ग्रह किसी की कुंडली में खराब और किसी की कुंडली में अच्छा हो सकता है जबकि ग्रह तो उपर विद्यमान है और उसका धरती पर एक जैसा ही प्रभाव पड़ रहा है। आओ जानते हैं इन प्रश्नों का उत्तर।
कोई ग्रह कैसे खराब या अच्छा हो सकता है?
कोई-सा भी ग्रह न तो खराब होता है और न अच्छा। ग्रहों का धरती पर प्रभाव पड़ता है लेकिन उस प्रभाव को कुछ लोग हजम कर जाते हैं और कुछ नहीं। प्रकृति की प्रत्येक वस्तु का प्रभाव अन्य सभी जड़ वस्तुओं पर पड़ता है। ज्योतिर्विज्ञान अनुसार ग्रहों के पृथ्वी के वातावरण एवं प्राणियों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन-विश्लेषण भी करता है। एक ज्योतिष या खगोलविद यह बता सकता है कि इस बार बारिश अच्छी होगी या नहीं।
जहां तक अच्छे और बुरे प्रभाव का संबंध है तो इस संबंध में कहा जाता है कि जब मौसम बदलता है तो कुछ लोग बीमार पड़ जाते हैं और कुछ नहीं। ऐसा इसलिए कि जिसमें जितनी प्रतिरोधक क्षमता है वह उतनी क्षमता से प्रकृति के बुरे प्रभाव से लड़ेगा।
दूसरा उदाहरण है कि जिस प्रकार एक ही भूमि में बोए गए आम, नीम, बबूल अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार गुण-धर्मों का चयन कर लेते हैं और सोने की खदान की ओर सोना, चांदी की ओर चांदी और लोहे की खदान की ओर लोहा आकर्षित होता है, ठीक उसी प्रकार पृथ्वी के जीवधारी विश्व चेतना के अथाह सागर में रहते हुए भी अपनी-अपनी प्रकृति के अनुरूप भले-बुरे प्रभावों से प्रभावित होते हैं।
चंद्रमा के कारण धरती का जल प्रभावित होता है और मंगल के कारण समुद्र के भीतर मूंगा उत्पन्न होता है। इसी तरह प्रत्येक ग्रह के कारण किसी न किसी पदार्थ की उत्पत्ति प्रभावित होती है। सूर्य की किरणे एक जैसी नहीं होती है। प्रत्येक मौसम में उसका प्रभाव अलग-अलग होता है। इसी तरह चंद्र का अमावस्य पर अलग और पूर्णिमा के दिन अलग प्रभाव होता है। कोई व्यक्ति किसी दिन जन्मा यह उसकी कुंडली बताती है। उस दौरान ग्रहों की स्थिति क्या थी और उनका असर कैसे था यह भी कुंडली बताती है। उस के प्रभाव से ही व्यक्ति की प्रकृति तय होती है जिसे बदला भी जा सकती है।
ग्रहों का मानव जीवन पर प्रभाव :
प्रकाशयुक्त अन्तरिक्ष पिण्ड को नक्षत्र कहा जाता है। हमारा सूर्य भी एक नक्षत्र है। ये नक्षत्र कोई चेतन प्राणी नहीं हैं जो किसी व्यक्ति विशेष पर प्रसन्न या क्रोधित होते हैं। हमारी धरती पर सूर्य का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है उसके बाद चंद्रमा का प्रभाव माना गया है। उसी तरह क्रमश: मंगल, गुरु, बुद्ध और शनि का भी प्रभाव पड़ता है। ग्रहों का प्रभाव संपूर्ण धरती पर पड़ता है किसी एक मानव पर नहीं। धरती के जिस भी क्षेत्र विशेष में जिस भी ग्रह विशेष का प्रभाव पड़ता है उस क्षेत्र विशेष में परिवर्तन देखने को मिलते हैं।
धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का प्रभाव संपूर्ण धरती पर रहता है और पृथ्वी एक सीमा तक सभी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है। समुद्र में ज्वार-भाटा का आना भी सूर्य और चन्द्र की आकर्षण शक्ति का प्रभाव है। अमावस्या और पूर्णीमा का भी हमारी धरती पर प्रभाव पड़ता है।
जब हम प्रभाव पड़ने की बात करते हैं तो इसका मतलब यह कि एक जड़ वस्तु चाहे वह चंद्रमा हो उसका प्रभाव दूसरी जड़ वस्तु चाहे वह समुद्र का जल हो या हमारे पेट का जल- पर पड़ता है। लेकिन हमारे मन और विचारों को हम नियंत्रण में रख सकते हैं तो यह प्रभाव नकारात्मक असर नहीं देगा। धार्मिक नियम इसीलिए होते हैं कि व्यक्ति वातारवण, मौसम और ग्रहों के प्रभाव से बचकर एक स्वस्थ जीवन जीए।