गुरु बृहस्पति 12 सालों बाद अपने घर धनु राशि में आए हैं। इससे पहले वह अपने मित्र राशि वृश्चिक में वक्री एवं मार्गी गति के साथ रह रह रहे थे । अब 4 नवंबर से बृहस्पति राशि धनु में प्रवेश कर गए हैं और लगभग 13 माह तक गोचर करते रहेंगे।
ज्योतिष की दृष्टि से बृहस्पति का गोचरीय परिवर्तन अथवा गति परिवर्तन एक बड़ा परिवर्तन माना जाता है क्योंकि शनि, राहु एवं केतु के बाद एक राशि में सर्वाधिक दिन तक गोचर करने वाले ग्रह देवगुरु हैं।
बृहस्पति के कारक तत्व मुख्य रूप से इस प्रकार हैं... भाग्य, खर्च, विवेक, ज्ञान, ज्योतिषी, अध्यात्म, पुरोहित, परामर्शी, सत्य, विदेश में घर, भविष्य, सहायता, तीर्थयात्रा, नदी, मीठा खाद्य पदार्थ, विश्वविद्यालयी संस्थान, पान, शाप, मंत्र, दाहिना कान, नाक, स्मृति, पदवी, बड़ा भाई, पवित्र स्थान, धामिर्क ग्रन्थ का पठन, पाठन, गुरु, अध्यापक, धन बैंक, शरीर की मांसलता, धार्मिक कार्य ईश्वर के प्रति निष्ठा, दार्शिकता, दान, परोपकार, फलदार वृक्ष, पुत्र, पति, पुरस्कार, जांघ, लिवर, हार्निया इत्यादि का कारक ग्रह है।
धनु एवं मीन देवगुरु बृहस्पति की स्वराशि होती है। चंद्रमा की राशि कर्क में जहां ये उच्चत्व को प्राप्त होते हैं। वहीं शनि की पहली राशि मकर में नीचत्व को प्राप्त होते है।
धनु राशिस्थ बृहस्पति का 12 राशियों पर प्रभाव
मेष: भाग्यस्थ होने से कार्यों में सफलता, आंतरिक डर, भूमि- वाहन सुख, धन लाभ के साथ खर्च भी।
वृष: गुरु अष्टम होने से बनते कार्य में विघ्न, पेट एवं पेशाब की समस्या, घरेलू उलझन, रोग, भय, अशान्ति।
मिथुन: गुरु सप्तम होने से संघर्ष के बाद आय, व्यय ज्यादा, कार्य क्षेत्र में भागदौड़, दाम्पत्य को लेकर अवरोध या तनाव, नया कार्य बनेगा।
कर्क: गुरु छठवें होने से आय कम, रोग, शत्रु से पीड़ा मन में अशान्ति, आंतरिक रोग, एलर्जी।
सिंह: गुरु पंचम होने से विद्या और कार्य में सफलता, वाहन, धन लाभ के अवसर, संतान पक्ष से चिन्ता।
कन्या: गुरु चतुर्थ होने से संघर्ष के बाद किंचित लाभ, गृह कलह, तनावपूर्ण, सम्मान में वृद्धि।
तुला: गुरु तृतीय होने से शरीर कष्ट, आय कम, रोग भय, भाई को कष्ट। वृश्चिक: धन लाभ, उन्नति के अवसर, किये कार्यों में सफलता, लीवर की समस्या।
धनु: लग्नस्थ पूज्य गुरु होने से संघर्ष के बाद निर्वाह योग्य धन प्राप्ति, मानसिक पीड़ा, व्यय ज्यादा, धर्म कर्म में रुचि।
मकर: बारहवें गुरु होने से भागदौड़ अधिक, कार्यों में विघ्न, गुप्त चिन्ता।
कुंभ: गुरु लाभ स्थानगत होने से लाभ के अवसर, विद्या कार्य क्षेत्र में सफलता, श्रेष्ठ जनों से सहयोग।
मीन: दशमस्थ गुरु होने से कठिनाइयों के बाद आय का साधन प्राप्त हो, तनाव, रोग भय।