• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. ज्योतिष
  3. आलेख
  4. 3 main rin in hindu dharma

हमारे जीवन में 3 ऋण होते हैं सबसे बड़ा और असरकारी है पितृऋण, यह जानकारी आपके पास नहीं होगी

हमारे जीवन में 3 ऋण होते हैं सबसे बड़ा और असरकारी है पितृऋण, यह जानकारी आपके पास नहीं होगी - 3 main rin in hindu dharma
मनुष्य जन्म लेता है तो कर्मानुसार उसकी मृत्यु तक कई तरह के ऋण, पाप और पुण्य उसका पीछा करते रहते हैं। हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि तीन तरह के ऋण को चुकता कर देने से मनुष्य को बहुत से पाप और संकटों से छुटकारा मिल जाता है। हालांकि जो लोग इसमें विश्वास नहीं करते उनको भी जीवन के किसी मोड़ पर इसका भुगतान करना ही होगा। आखिर ये तीन ऋण कौन से हैं और कैसे उतरेंगे यह जानना जरूरी है।
 
ये तीन ऋण हैं:- 1.देव ऋण, 2. ऋषि ऋण और 3. पितृ ऋण।
 
इन तीन ऋणों को उतारना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य होता है। यह जीवन और अगला जीवन सुधारना हो, तो इन ऋणों के महत्व को समझना जरूरी है। मनुष्य पशुओं से इसलिए अलग है, क्योंकि उसके पास नैतिकता, धर्म और विज्ञान की समझ है। जो व्यक्ति इनको नहीं मानता वह पशुवत है।
 
क्यों चुकता करना होता है यह ऋण?
 
तीन ऋण नहीं चुकता करने पर उत्पन्न होते हैं त्रिविध ताप अर्थात सांसारिक दुख, देवी दुख और कर्म के दुख। ऋणों को चुकता नहीं करने से उक्त प्रकार के दुख तो उत्पन्न होते ही हैं और इससे व्यक्ति के जीवन में पिता, पत्नी या पुत्र में से कोई एक सुख ही मिलता है या तीनों से वह वंचित रह जाता है। यदि व्यक्ति बहुत ज्यादा इन ऋणों से ग्रस्त है तो उसे पागलखाने, जेलखाने या दवाखाने में ही जीवन गुजारना होता है।
 
त्रिविध ताप क्या है?
*सांसारिक दुख अर्थात आपको कोई भी जीव, प्रकृति, मनुष्य या शारीरिक-मानसिक रोग कष्ट देगा।
 
*देवी दुख अर्थात आपको ऊपरी शक्तियों द्वारा कष्ट मिलेगा।
 
*कर्म का दुख अर्थात आपके पिछले जन्म के कर्म और इस जन्म के बुरे कर्म मिलकर आपका दुर्भाग्य बढ़ाएंगे।
 
इन सभी से मुक्ति के लिए ही ऋण का चुकता करना जरूरी है। ऋण का चुकता करने की शुरुआत ही संकटों से मुक्त होने की शुरुआत मानी गई है।
 
जानिए देव ऋण के बारे में...
 
1.देव ऋण : माना जाता है कि देव ऋण भगवान विष्णु का है। यह ऋण उत्तम चरित्र रखते हुए दान और यज्ञ करने से चुकता होता है। जो लोग धर्म का अपमान करते हैं या धर्म के बारे में भ्रम फैलाते या वेदों के विरुद्ध कार्य करते हैं, उनके ऊपर यह ऋण दुष्प्रभाव डालने वाला सिद्ध होता है।
 
खास उपाय : प्रतिदिन सुबह और शाम संध्यावंदन करें और विष्णु, कृष्ण और हनुमानजी में से किसी एक के मंत्र, चालीसा, पाठ या स्तोत्र का जप करें। सिर पर चंदन का तिलक लगाएं। उत्तम और सात्विक भोजन करें। धर्म का प्रचार-प्रसार करें या धर्म के लिए दान करें। देवी-देवताओं आदि का सम्मान और उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करें। किसी भी प्रकार से न धर्म का अपमान सहें और न करें। हिन्दू हैं तो हिन्दू कर्म और स्वभाव के बनें।
 
ऋषि ऋण को जानिए...
 
2.ऋषि ऋण : यह ऋण भगवान शंकर का है। वेद, उपनिषद और गीता पढ़कर उसके ज्ञान को सभी में बांटने से ही यह ऋण चुकता हो सकता है। जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता है उससे भगवान शिव और ऋषिगण सदा अप्रसन्न ही रहते हैं। इससे व्यक्ति का जीवन घोर संकट में घिरता जाता है या मृत्यु के बाद उसे किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिलती।
 
खास उपाय : इस ऋण को चुकाने के लिए व्यक्ति को प्रतिमाह गीता का पाठ करना चाहिए। स्वयंभू साधुओं से दूर रहकर गीता भवन में चल रहे सत्संग में जाते रहना चाहिए। सभी तरह की बुराइयों को समझकर उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे आचरण को अपनाना चाहिए। शरीर, मन और घर को जितना हो सके साफ और स्वच्छ रखना चाहिए।
 
कुछ विशेष दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। सिर पर घी, केसर या चंदन का तिलक लगाना चाहिए। पीपल, बड़ और तुलसी में जल अर्पित करना चाहिए। एकादशी, प्रदोष और चतुर्थी का व्रत रखना चाहिए। चतुर्मास के प्रथम माह श्रावण सोमवार को पूरे माह व्रत रखना चाहिए।
 
पितृ ऋण को जानिए...
 
3.पितृ ऋण : यह ब्रह्मा का ऋण माना गया है। पितृ ऋण कई तरह का होता है। हमारे कर्मों का, आत्मा का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। स्वऋण या आत्म ऋण का अर्थ है कि जब जातक, पूर्व जन्म में नास्तिक और धर्म विरोधी काम करता है, तो अगले जन्म में, उस पर स्वऋण चढ़ता है। मातृ ऋण से कर्ज चढ़ता जाता है और घर की शांति भंग हो जाती है। बहन ऋण से व्यापार-नौकरी कभी भी स्थायी नहीं रहती। जीवन में संघर्ष इतना बढ़ जाता है कि जीने की इच्छा खत्म हो जाती है। भाई के ऋण से जीवन में कभी शांति नहीं रहती। हर तरह की सफलता मिलने के बाद अचानक सब कुछ तबाह हो जाता है। 28 से 36 वर्ष की आयु के बीच तमाम तरह की तकलीफ झेलनी पड़े। 
 
दूसरी ओर यह ऋण हमारे पूर्वजों, हमारे कुल, हमारे धर्म, हमारे वंश आदि से जुड़ा है। इस ऋण को पृथ्वी का ऋण भी कहते हैं, जो संतान द्वारा चुकाया जाता है। बहुत से लोग अपने धर्म, मातृभूमि या कुल को छोड़कर चले गए हैं। उनके पीछे यह दोष कई जन्मों तक पीछा करता रहता है। यदि कोई व्यक्ति अपने धर्म और कुल को छोड़कर गया है तो उसके कुल के अंत होने तक यह चलता रहता है, क्यों‍कि यह ऋण ब्रह्मा और उनके पुत्रों से जुड़ा हुआ है।
 
खास उपाय : इस ऋण को उतारने के तीन उपाय- देश के धर्म अनुसार कुल परंपरा का पालन करना, पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध करना और संतान उत्पन्न करके उसमें धार्मिक संस्कार डालना। प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ना, भृकुटी पर शुद्ध जल का तिलक लगाना, तेरस, चौदस, अमावस और पूर्णिमा के दिन गुड़-घी की धूप देना, घर के वास्तु को ठीक करना और शरीर के सभी छिद्रों को अच्छी रीति से प्रतिदिन साफ-सुधरा रखने से भी यह ऋण चुकता होता है।
ये भी पढ़ें
कूर्म जयंती : क्यों लिया था भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार