तर्जनी का व्यावहारिक महत्व
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नवीन माथुर 'पंचोली' हाथ की पाँच उँगलियों में अँगूठे व मध्यमा के बीच की उँगली तर्जनी कहलाती है। अन्य उँगलियों की अपेक्षा इसका विशेष महत्व देखा गया है। विभिन्न नित्य कार्यों के अलावा धार्मिक कार्यों, ज्योतिष, नृत्यमुद्राओं, योग मुद्राओं आदि में इसकी भूमिका होती है। निम्न बातें (तथ्य) तर्जनी के इस महत्व को पुष्ट करती हैं-श्रीकृष्ण ने भी सुदर्शन तर्जनी पर थामा था* पाँच उँगलियों में पाँच तत्व निहित हैं- अँगूठा-अग्नि, तर्जनी-वायु, मध्यमा-आकाश, अनामिका-पृथ्वी व छोटी में जल। इनमें तर्जनी का 'वायु' तत्व सभी को संतुलित रखने में सहायक होता है। * तर्जनी व अँगूठे के स्पर्श से की जाने वाली 'ज्ञानमुद्रा' ज्ञान वृद्धि व मानसिक शुद्धि करती है साथ ही यह मुद्रा ध्यान, योग व प्राणायाम में भी प्रयुक्त होती है। * नृत्य अथवा करतब में थाली या किसी चीज को इसी उँगली पर घुमाया जाता है। कहते हैं श्रीकृष्ण ने भी सुदर्शन इसी पर थामा था। |
हाथ की पाँच उँगलियों में अँगूठे व मध्यमा के बीच की उँगली तर्जनी कहलाती है। अन्य उँगलियों की अपेक्षा इसका विशेष महत्व देखा गया है। विभिन्न नित्य कार्यों के अलावा धार्मिक कार्यों, ज्योतिष, नृत्यमुद्राओं, योग मुद्राओं आदि में इसकी भूमिका होती है। |
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* बाण (तीर) चलाने में अँगूठे या मध्यमा के साथ तर्जनी का संग जरूरी है। * चुप रहने के इशारे में इसी उँगली को मुँह पर रखा जाता है। * जाने का इशारा करना, किसी को बाहर करना हो, तर्जनी ही उठती है। * कोई खाद्य चखना हो, इसी को डूबाकर, छूकर मुँह तक लाया जाता है। * इनके अतिरिक्त भी कई कार्य हैं जिनमें अँगूठे के साथ तर्जनी प्रयुक्त की जाती है जैसे- कलम पकड़ना, सुई में धागा पिरोना, कंचा फेंकना, चुटकी भरना, बटन लगाना आदि।