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काबिलियत दिखाई,रच दिया इतिहास

रायपुर| Naidunia| Last Modified बुधवार, 7 मार्च 2012 (20:55 IST)
सृष्टि के आरंभ से नारी अनंत गुणों की आगार रही है। पृथ्वी की सी क्षमता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र की सी गंभीरता, चंद्रमा की सी शीतलता, पर्वतों की सी मानसिक उधाता हमें एक साथ नारी हृदय में दृष्टिगोचर होती है। वह दया करुणा, ममता और प्रेम की पवित्र मूर्ति है और समय प़़़़़़़़़़़़़़़ड़ने पर प्रचंड चंडी का भी रूप धारण कर सकती है। वह मनुष्य के जीवन की जन्मदात्री भी है। इन्हीं सब गुणों की खान स्त्री शक्ति के लिए कोई भी कार्य मुश्किल नहीं है,इसे वे निरंतर साबित कर रही हैं। राजधानी की महिलाओं ने भी इस क्रम को जारी रखा और ऐसे क्षेत्रों को अपनी काबिलियत साबित करने के लिए चुना जिस क्षेत्र में पहले से ही पुरुष जाति का वर्चस्व रहा है। अपनी शक्ति और कार्य क्षमता को पहचानकर उस क्षेत्र को चुना जहाँ अब तक किसी भी महिला की भागीदारी नहीं रही। 'विश्व महिला दिवस' के इस मौके पर काबिलियत से परिपूर्ण महिला शख्सियतों को सलाम।


ख्वाहिशों का सफर शुरू हुआ पहली महिला महापौर बनकर

हर क्षेत्र में अपनी काबीलियत का लोहा मनवा चुकीं महिलाओं के लिए अब ऐसा कोई काम नहीं है जो उनके लिए नामुमकीन है। ऐसे में पहली बार जब महिला महापौर चुने जाने का मौका मिला तो डॉ. किरणमयी नायक ने अपनी काबिलियत साबित कर दिखाई। राजनीति के क्षेत्र में अपनी खास पहचाने बनाने की ख्वाहिशों का सफर उन्होंने महापौर बनने के साथ किया। वे मानसिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं थी,लेकिन अपने परिवार से मिले सहयोग ने उन्हें इस क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित किया। अपनी इच्छा और परिवार के सहयोग ने ही उन्हें ये गौरव दिलाया कि उनका नाम रायपुर के इतिहास में पहली महिला महापौर के तौर पर दर्ज हो गया।


थामा जिद का दामन,बनीं देश की पहली महिला स्वतंत्र फोरेंसिक एक्सपर्ट


कुछ अलग करने का जुनून ही भी़़़़़़़ड़ से अलग हटकर पहचान बनाने में मददगार होता है। इसी जिद का दामन थामकर डॉ. सुनंदा ढेंगे ने उस मुकाम को हासिल किया जिसके बाबत उन्हें देश की पहली महिला स्वतंत्र फोरेंसिक एक्सपर्ट का गौरव हासिल कर लिया। डॉक्टर,इंजीनियर से अलग करने की सोच के चलते 1980 में डॉ. ढेंगे ने फोरेंसिक साइंस को बतौर कॅरियर चुना।जबकि उस समय किसी महिला के लिए इस क्षेत्र को चुनना किसी ब़़़़़़़ड़ी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन चुनौतियों से ल़़़़़़़ड़कर अपनी काबीलियत का लोहा मनवाने का जुनून इनके भीतर था। कई तरह की परेशानियों को दरकिनार करते हुए उन्होंने 1993 से अपना स्वतंत्र कार्य करना शुरू किया। उनका पहला केस 302 मर्डर का केस रहा। इसके बाद उन्होंने पीछे मु़़़़़़़ड़कर नहीं देखा और आगे ब़़़़़़़ढ़ती चली गईं। आज वे हर साल लगभग 50 मर्डर केस व 50 दूसरे केसेस में बतौर फोरेंसिक एक्सपर्ट उनकी सहायता करती हैं।


नई जिंदगी देने की ख्वाहिश ने बनाया पहला ऑन्कोलॉजिस्ट


छत्तीसग़़़़़़़़़़़़़़़ढ़ की पहली ऑन्कोलॉजिस्ट का गौरव हासिल कर चुकीं डॉ. सुमन मित्तल झारखंड से निकलकर खुद को इस मुकाम तक पहुँचाया। कैंसर जैसी भंयकर बीमारी का नाम सुनते ही रोंगटे ख़़़़़़़ड़े हो जाता है,ऐसे में इस दंश को झेल रहे मरीजों की मनःस्थिति को समझना बहुत मुश्किल नहीं है। कैंसर पी़ि़़़़़़ड़तों को फिर से जीवन जीने का सुख देने की ख्वाहिश ने उन्हें ऑन्कोलॉजिस्ट बनने के लिए प्रेरित किया। मुंबई के ग्रांड मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और एमडी की डिग्री हासिल करने के बाद अहमदाबाद से ऑन्कोलॉजिस्ट की डिग्री हासिल की। एमडी की प़़़़़़़़़़़़़़़ढ़ाई के दौरान डॉ. मित्तल की शादी हो गई लेकिन उन्होंने ऑन्कोलॉजिस्ट बनने का ख्वाब देखना नहीं छो़़़ड़ा। न मेरी प़़़़़़़़़़़़़़़ढ़ाई बदस्तुर जारी रही। बल्कि मेरे हसबेंड ने मुझे अपना मकसद हासिल करने में काफी सपोर्ट किया। चूँकि वे भी डॉक्टर हैं इसलिए उनका सहयोग मुझे हर कदम पर हमेशा मिलता रहा। एमडी करने के बाद कुछ अलग करने की ख्वाहिश मेरे मन में उठी। फिर मैंने ऑन्कोलॉजिस्ट बनने की सोची। मेरी इस सोच को मेरे हसबेंड का सपोर्ट मिला और मैंने अहमदाबाद से इसकी डिग्री हासिल की। जब मैं यहाँ आईं तब मुझे छत्तीसग़़़़़़़़़़़़़़़ढ़ की एकमात्र एंकोलॉजिस्ट होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस सफलता को हासिल करने में मेरे परिवार ने मेरा भरपूर साथ दिया।


और बन गई पहली महिला वीडियोग्राफर

कहने को तो महिलाएॅं पुरूषों से कंधे से कंधा मिलकार चलती हैं, पर आज भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहॉं पुरूषों का वर्चस्व है। ऐसे में छत्तीसग़़़ढ़ की पहली महिला वीडियोग्राफर का खिताब से सम्मानित हो चुकी श्रीमती छाया विकास अंजनकर सभी के लिए का मिसाल हैं। महिला होते हुए भी श्रीमती छाया विकास अंजनकर वीडियोग्राफी के क्षेत्र में दखल रखती हैं। उनकी यही खासियत उन्हें औरों से अलग पहचान देती है। वीडियोग्राफी में लगभग बारह साल का अनुभव प्राप्त है। बचपन से ही फोटोग्राफी की शौकिन श्रीमती छाया मूलतः महाराष्ट्र की रहने वाली है। शादी के बाद छत्तीसग़़़ढ़ में आने वाली श्रीमती अंजनकर 94 से इस फील्ड में काम कर रही हैं। पति और परिवार के पूरे सहयोग के चलते इस क्षेत्र में अपनी इस खास पहचान का श्रेय वे अपने पति विकास अंजनकर को देती हैं।


बनीं कृषि विवि की पहली महिला पीएचडी

कुछ अलग करने की चाह और जुनून के चलते व्यक्ति हजारों की भीड़ में अलग पहचान बना सकता है। इंदिरा गॉंधी कृषि विवि की सहायक प्राध्यापक मूलतः जबलपुर निवासी श्रीमती जया लक्ष्मी गांगुली ने विवि में पहली महिला पीएचडी बनकर साबित की। पढ़ाई के प्रति अपने समर्पण और जुनून के चलते उन्होंने यह खिताब नौ साल की पढ़ाई के लंबे अंतराल बाद लिया और सभी के लिए एक आदर्श बनी। शादी के बाद नौ साल साधारण गृहिणी का जीवन व्यतीत उन्होंने किताब थामा और नेट की तैयारी में जुट गई। नेट के साथ ही अपनी पीएचडी 'धान के तने में छेदक कीट' विषय पर पीएचडी की। वर्तमान में वे कृषि वानिकी विषय पर रिसर्च कर रही हैं।


बना रहीं रिकॉर्ड बनाने का रिकॉर्ड

नारी की इच्छा शक्ति के आगे हर किसी को झुकना पड़ता है। इस बात को श्रीमती शुभांगी आप्टे लगातार साबित कर रही हैं। अब तक लगातार आठ बार लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवाने के बाद भी उनका ये जुनून थमने का नाम नहीं ले रहा है। वे छत्तीसगढ़ की एकमात्र ऐसी महिला है जिनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इतनी बार दर्ज हो चुका है। कलेक्शन की शौकीन और रिकॉर्ड दर रिकॉर्ड बनाने ख्वाहिश ही है जो उन्हें इसके लिए प्रेरित करता है। 2005 से रिकॉर्ड बनाने की कोशिश कर रहीं श्रीमती आप्टे को 2007 में पहली सफलता मिली। की रिंग कलेक्शन, मैरिज इन्वीटेशन कार्ड कलेक्शन, विजिटिंग कार्ड कलेक्शन, मेन्यू कार्ड कलेक्शन, स्पून कलेक्शन,रूमाल का कलेक्शन कर वे रिकॉर्ड बना चुकी हैं। सिर्फ लिम्का बुक नहीं बल्कि उनका नाम अब तो इंडिया ऑफ रिकॉर्ड में तीन बार और एशिया बुक ऑफ रिकार्ड में भी दो बार दर्ज किया जा चुका है।

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