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सादिक़ की ग़ज़लें
जिस्म पर खुर्दुरी सी छाल उगाआँख की पुतलियों में बाल उगातीर बरसा ही चाहते हैं संभल अपने हाथों में एक ढाल उगा काट आगाहियों की फ़स्ल मगर ज़ेह्न में कुछ नए सवाल उठादोश-ओ-फ़रदा को डाल गड्ढे मेंखाद से उनकी रोज़ हाल उगा बढ़ी जाती हैं मांस की फ़सलें इन ज़मीनों पे कुछ अकाल उगा चख़ चुका ज़ाएक़े उरूजों के अब ज़ुबाँ पर कोई ज़वाल उगा2.
मुबतिला सच्चाइयों के क़हर में क्या करे सादिक़ बिचारा दहर मेंपी के दो ही घूँट चक्कर खा गयाज़िन्दगी का ज़ाएक़ा था ज़हर में सतहा पर आई नहीं गहराइयाँ सीढ़ियाँ भी दाल देखी नहर में हमको जंगल में किसी का डर नहींआ बसे जबसे दरिन्दे शहर में 3.
देख कर धज्जियाँ उमीदों की आँख से क्यों लहू गुज़रता है फ़स्ल सर सब्ज़ है लकीरों कीक्यों हथेली पे आग धरता है हर समन्दर ज़मीन को अपनीपानियों में असीर करता हैरास्ते आँसूओं के बन्द हुए क्या पता दिल पे क्या गुज़रता है अपनी साँसें संभाल कर रखियो हर तसलसुल यहाँ बिखरता है4.
करके तख़लीक़ बता दो लोगो आग में फूल उगा दो लोगो जब भी तूफ़ाँ कोई उठना चाहे रेत में उसको दबा दो लोगो वरना तुमको ये दबोचेगा अभी ख़ौफ़ को चीख़ बना दो लोगो तंग तेहख़ाने से बाहर निकलो कायनातों को सदा दो लोगो ख़ुश्क पेड़ों की कथाएँ सुन लो उन में फिर आग लगा दो लोगो