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Written By WD

मुफ़लिसी सब बहार खोती है

मुफ़लिसी सब बहार खोती है -
पेशकश : अज़ीज़ अंसार

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।----ग़ालिब

बड़ी अजीब है दुनिया तवाइफ़ों की तरह,
हमेशा चाहने वाले बदलती रहती है।-------मुनव्वर राना

मुफ़लिसी सब बहार खोती है,
मर्द का ऎतबार खोती है। --------------मीर

ज़िन्दगी है या कोई तूफ़ान है,
हम तो इस जीने के हाथों मर चले।------दर्द

चारों तरफ़ से सूरत-ए-जानाँ हो जलवागर,
दिल साफ़ हो तेरा तो है आईनाख़ाना क्या।----आतिश

क्यों सुने अर्ज़-ए-मुज़तरिब मोमिन,
सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता।------------मोमिन

जो गुज़रते हैं दाग़ पर सदमें,
आप बन्दा नवाज़ क्या जानें।------------दाग़

नहीं आती तो याद उनकी महीनों तक नहीं आती,
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं।------हसरत मोहानी

हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत फ़ानी,
ज़िन्दगी नाम है मर-मर के जिए जाने का।--------फ़ानी बदायूनी

क़ैद-ए-हस्ती से कब निजात जिगर,
मौत आई अगर हयात गई।-------------जिगर

एक मुद्दत से तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गए हों तुझे ऎसा भी नहीं।-------दाग़

ये तो इंसानों के टूटे हुए दिल हैं साक़ी,
हम से टूटे हुए साग़र नहीं देखे जाते। -------ताज भोपाली

हमें तो शाम-ए-ग़म में काटनी है ज़िन्दगी अपनी,
जहाँ वो हैं वहीं ऎ चाँद ले जा चान्दनी अपनी।------------शे'री भोपाली

आबादियों में दश्त का मंज़र भी आएगा,
गुज़रोगे शहर से तो मेरा घर भी आएगा।---------नौशाद

नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिए,
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है।----------------- मीर