तुम्हारे ख़त बहुत सहेज कर रखे हैं अब भी वैसे ही हैं जैसे तुमने दिए थे लेकिन इसमें अंकित शब्द अतीत के हाथों, कुछ तुम्हारे हाथों, स्वयं मेरे ही हाथों मारे जा चुके हैं इन मृत शब्दों की अंत्येष्टि में आमंत्रित हो तुम क्योंकि तुम्हारी श्रद्धांजलि ही उन्हें मोक्ष दिला सकती है उन्हें स्वर्गिक बना सकती है ----------
एक मासूम-सी कोंपल एक मीठी-सी पाँखुरी, एक मुस्कान-सा गुलाब, एक मधुरिम-सा अंकुर, एक महकी-सी खुशबू एक मदिरा-सी बेला, (भी) तुम्हारी याद ले आते हैं भला बताओ तुम्हें कैसे भूला जा सकता है? ------ चिलचिलाती धूप में तुम्हारा साया जैसे मेरे मन आँगन में, अमलतास खिल आया। ---- मेरी थरथराती अंजूरि में तुम्हारी यादों का काँपता हुआ जल है सूर्य-से निकलो मेरे मन-आकाश पर तुम्हें अर्घ्य देना चाहती हूँ