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Written By WD

साँगली के पंचायतन गणपति

साँगली के पंचायतन गणपति -
- किरण दिनकर जोशी
'सोने का गणपति है साँगली का, अच्छा लगता है उसे चोला जरी का'। ये कहावत कही जाती है महाराष्ट्र के साँगली के सुप्रसिद्ध गणपति के बारे में क्योंकि यहाँ के गणपति की सुंदरता और समृद्धि देखते ही बनती है। साँगली के आराध्य देव के रूप में प्रसिद्ध यह पंचायतन गणपति मंदिर श्रद्धालुओं की आस्‍था का केंद्र है। ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश यहाँ आने वाले भक्तों की झोली भरकर उन्हें भी सुख-समृद्ध करते हैं।

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इस मंदिर में सन 1844 में गणपति की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। मंदिर में भगवान शिव, सूर्य, चिंतामणेश्वरी और ल‍क्ष्मीनारायणजी की भी आकर्षक प्रतिमाएँ विराजमान हैं। लाल पत्थर से निर्मित मंदिर के महाद्वार की बनावट देखते ही बनती है। मंदिर परिसर में की गई नक्काशी अत्यंत सुंदर है। गणपति की प्रतिमा को हीरे-जवाहरात और बहुमूल्य आभूषणों से सजाया गया है। गणपति के साथ स्थापित रिद्धि-सिद्धि की मूर्तियाँ भी आकर्षक एवं मनमोहक है।

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इस मंदिर के पास से कृष्णा नदी बहती है। हर वर्ष बारिश के दिनों में कृष्णा नदी रौद्र रूप धारण कर लेती है अत: बाढ़ के पानी से बचाव के लिए मंदिर की विशेष बनावट की गई है। मंदिर के स्तर को ऊँचाई पर रखने के लिए निमार्ण कार्य में कोल्हापुर जिले के ज्योतिबा पहाड़ से लाए गए बड़े-बड़े पत्थरों का उपयोग किया गया है।

इस मंदिर की एक और पहचान है यहाँ का हाथी। मंदिर परिसर में हाथी रखने की परंपरा कई सालों से चली आ रही है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु भगवान गणेश के साथ ही हाथी की भी आराधना करते थे। यहाँ का 'सुंदर गजराज' नामक हाथी मंदिर के पुजारियों और साँगली के निवासियों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया था। इसके बाद बबलू नामक हाथी भी श्रद्धालुओं के लिए एक आकर्षण बना रहा। बबलू के गुजर जाने पर लाखों लोग उसे श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए साँगली आए थे।

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इस मंदीर में प्रतिदिन काकड़ आरती, भूपाली इसके साथ ही गणेश अथर्वशीर्ष, प्रदक्षिणा, नवग्रह जप, वेदपरायण, ब्रह्मणस्पतीसूक्त आदि पूजा अनुष्ठान संपन्न होते हैं। भक्तों का विश्वास है कि यहाँ विराजे गणपति बप्पा उन्हें कभी निराश नहीं करते।

प्रतिवर्ष गणेशोत्सव के दरम्यान मंदिर से आकर्षक झाँकी निकलती है जिसे देखने के लिए भक्तों का हुजूम लग जाता है। इस समय 'गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया' की गूँज के साथ लाखों श्रद्धालु झाँकी में शामिल होते हैं।

मंदिर में आने वाले भक्तों का पूरा विश्वास है कि गणपति बप्पा के सामने नतमस्तम होकर मन से की गई हर कामना पूर्ण होती है। इसलिए केवल हिंदू ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के लोग यहाँ आकर अपना शीश नवाते हैं।

कैसे पहुँचे?
वायु मार्ग:- निकटतम कोल्हापुर विमानतल से 45 किमी दूरी पर स्थित है साँगली।
रेल मार्ग:- साँगली गाँव पुणे से 235 किमी और कोल्हापुर से 45 किमी दूरी पर स्थित। सभी मुख्य शहरों से साँगली रेल मार्ग जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग:- मुंबई, पुणे और कोल्हापुर से बस सुविधा उपलब्ध है।