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Written By गायत्री शर्मा

माँ से है 'मायका'

जहाँ रहती है माँ

माँ से है ''मायका'' -
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माँ-बेटी का रिश्ता बहुत गहरा रिश्ता होता है। माँ से बेटी का लगाव होना भी स्वभाविक है क्योंकि माँ ही वो औरत होती है, जो अपने बच्चों को बखूबी समझ सकती है। यही कारण है कि बेटी की बिदाई के बाद माँ भले ही माँ उसे पराए घर भेज देती है पर माँ के लिए कभी वह पराई नहीं होती है।

बेटी भी अपने जीवनसाथी के साथ एक नए जीवन की शुरुआत करती है। उसके बाद वो खुशियों के भँवर में खो जाती है परंतु फिर भी उसके प्रति माँ की चिंता, फिक्र कम नहीं होती है।

तभी तो बेटी के हर दर्द में माँ का हर आँसू व दुआएँ निकलती हैं। माँ हमेशा अपनी बेटी के सुखी परिवार की कामना करती है और बेटी भी बेझिझक अपनी सारी परेशानियों का खुला चिट्ठा अपनी माँ के सामने खोलकर रख देती है। यही तो होता है माँ-बेटी का रिश्ता।

'मायका' मतलब माँ का घर। किसी भी विवाहित नारी के लिए 'मायका' एक ऐसा शब्द है, जो उसके दिलों की गहराइयों से जुड़ा है, यह उसका अभिमान है। मायके का जिक्र आते ही उसकी आँखे भर आती हैं और आँखों में उमड़-घुमड़कर आती है वो मधुर स्मृतियाँ, जो उसे मायके की मीठी यादों से जोड़ देती है।

मायके का हर रिश्तेदार अर्थात माँ की खबर लाने वाला व्यक्ति, जो बेटी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण अतिथि होता है। उसकी आवभगत में बेटी कोई भी कसर नहीं छोड़ती है। वो चाहती है कि उस मेहमान के साथ उसकी खैरियत का संदेश भी माँ तक जाएगा। भला अपनी माँ को व्यर्थ का तनाव देना कौन चाहेगा?

  'मायका' मतलब माँ का घर। किसी भी विवाहित नारी के लिए 'मायका' एक ऐसा शब्द है, जो उसके दिलों की गहराइयों से जुड़ा है, यह उसका अभिमान है। मायके का जिक्र आते ही उसकी आँखे भर आती हैं और आँखों में उमड़-घुमड़कर आती है मायके की मधुर स्मृतियाँ।      
ससुराल में कितना भी प्यार व सम्मान मिले परंतु मायके से बढ़कर कोई सुख नहीं है। कोई भी बेटी खुशियाँ तो ससुराल में बाँट लेती है परंतु अपने दर्दो-गम केवल मायके में ही बाँटती है। बड़े ही हक से वो अपने पुराने घर में जाती है और अपने सारे तनाव व दुख-दर्दों को भूलकर एक नई ऊर्जा के साथ ससुराल में वापसी करती है। आखिर क्या होता है मायके में ऐसा, जिससे बेटी की खुशियाँ लौट आती हैं?

मायके में होती हैं पुरानी यादें, बचपन की शरारतें, वो पुराने दोस्त और सबसे बढ़कर अपनी माँ। जो है तो मायका है, जो नहीं तो केवल औपचारिकता।

माँ के हाथों से बनी मिठाई जब कभी तीज-त्योहारों पर रिश्तेदारों के साथ आती है तो उसे खाते ही बेटी की आँख भर आती हैं। उसकी आँखों से खुशी के आँसू निकल पड़ते हैं और उसकी चंचलता गंभीरता में तब्दील हो जाती है। सच कहें तो यही वह रिश्ता है, जिसमें दिलों के तार बड़ी ही गहराई से जुड़े होते हैं। यदि मुझे कोई दुनिया के सबसे प्यारे रिश्ते के बारे में पूछेगा तो बेशक मैं कहूँगी कि वो रिश्ता माँ-बेटी का रिश्ता है।