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Written By भाषा

संप्रग लाया आर्थिक सुधार का 'सीक्वेल'

विनिवेश के साथ विदेशी निवेश पर जोर

Way will be easy for foreign investors | संप्रग लाया आर्थिक सुधार का ''सीक्वेल''
न्यूनतम साझा कार्यक्रम की बंदिशों से मुक्त कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई संप्रग सरकार ने गुरुवार को देश में व्यापक आर्थिक सुधारों का 'सीक्वेल' पेश किया।

सरकारी कंपनियों में विनिवेश पर जोर : संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में सरकार ने आर्थिक सुधारों का जो खाका खींचा है, उसके तहत आने वाले दिनों में सरकारी कंपनियों में विनिवेश तेज हो सकता है। विदेशी निवेशकों के लिए नियमों में ढील दी जा सकती है और ईंधन, उर्वरक, चीनी और दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण समाप्त किया जा सकता है।

इसी तरविभिन्न अधिभारों और उपकरों को खत्म करने एवं खुदरा क्षेत्र को विदेशी कंपनियों के लिए खोलने पर बल दिया गया है।

सरकार ने आर्थिक सुधारों को लेकर अपनी जो प्रतिबद्धता व्यक्त की है, उसकी पहली परख छह जुलाई को आम बजट में होगी। हालाँकि इस बार वामपंथी दलों का अवरोध न होने से उसके लिए सुधार एजेंडे को लागू करने में कोई कठिनाई आने की संभावना नहीं दिखती।

विदेशी हिस्सेदारी को बढ़ावा : बजट सत्र के पहले दिन वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने आर्थिक समीक्षा पेश करते हुए कहा कि बीमा और अन्य क्षेत्रों में विदेशी हिस्सेदारी सीमा 26 से बढ़ाकर 49 फीसदी की जाए तथा देश में निवेश का वातावरण सुधारने के लिए सरकारी उपक्रमों के शेयर बेचे जाएँ। विनिवेश से सालाना 25,000 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य सुझाया गया है।

इसी तरह श्रम, वित्त तथा बुनियादी ढाँचागत क्षेत्र में व्यापक सुधार पर जोर दिया गया है। खुदरा क्षेत्र में विदेश कंपनियों का मुद्दा भी अब तक राजनीतिक रूप से संवेदनशील माना जा रहा था, लेकिन समीक्षा में इस क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति देने की स्पष्ट सिफारिश की गई है।

निजी भागीदारी को प्रोत्साहन : सरकार ने ढाँचागत क्षेत्र में सुधार के लिए साहसी कदम उठाने का संकेत देते हुए कहा है कि रेल परिचालन, कोयला और परमाणु बिजली सेवाओं में सरकारी एकाधिकार समाप्त किया जाना चाहिए।

समीक्षा में कहा गया है कि अधिभार, उपकर, जिंस सौदा कर, प्रतिभूति क्रय विक्रय कर तथा वेतनेत्तर लाभ कर (एफबीटी) जैसे कारोबार संबंधी करों की समीक्षा एवं उन्हें चरणबद्ध तरीके से खत्म किया जाए।

समीक्षा में वित्तीय क्षेत्र में सुधार के साहसिक निर्णय करने की सिफारिश करते हुए कृषि उपजों के व्यापार पर सभी तरह की पाबंदियाँ उठाने की जरूरत पर भी बल दिया गया है। इसमें बीमा और रक्षा उत्पादन क्षेत्र में विदेशी भागीदारी की सीमा बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने तथा कृषि बीमा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों को शत-प्रतिशत हिस्सेदारी देने की सिफारिश की गई है।

पिछले वित्त वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था के हालात, उसकी खामियों और खूबियों के बारे में समीक्षा में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था गिरावट के सबसे बुरे दौर से निकल चुकी है, पर स्थिति पर बराबर निगाह बनाए रखने और अर्थव्यवस्था को उच्च अर्थिक वृद्धि की राह पर बनाए रखने के लिए अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक नीतिगत प्रोत्साहनों को जारी रखने की आवश्यकता है। इसमें वर्ष 2009-10 में आर्थिक वृद्धि दर के 7.75 प्रतिशत के आसपास रहने की उम्मीद की गई है।

2008-09 में आर्थिक वृद्धि 6.7 प्रतिशत थी। समीक्षा में यह भी कहा गया है, वर्तमान स्थिति में ऐसे नीतिगत उपायों की भी जरूरत है, जो अल्पकालिक और दीर्घावधिक चुनौतियों का सीधे सामना कर सकें और ठोस प्रगति में सहायक हों, ताकि अर्थव्यवस्था के प्रति दृष्टिकोण सकारात्मक बना रहे।

राजकोषीय घाटे को लेकर चिंता : राजकोषीय घाटे के बारे में समीक्षा में यह भी हकि निर्यात और घरेलू माँग में गिरावट के कारण सरकार को रियायतें देने के लिए कई उपाय करना पड़े, जिससे घाटा राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंध अधिनिमयम (एफआरबीएम) के लक्ष्यों से दूर चला गया। समीक्षा में कहा गया है कि राजकोषीय घाटे को फिर 2010-11 तक एमआरबीएम के लक्ष्यों के दायरे में लाना जरूरी है।

वित्त वर्ष 2008-09 में राजकोषीय घाटा बढ़कर जीडीपी के 6.1 प्रतिशत के बराबर हो गया, जबकि वर्ष की शुरुआत में इसे 2.5 तक तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया था।

खुदरा क्षेत्र के उदारीकरण के बारे में समीक्षा में कहा गया है कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को छूट देते समय यह शर्त भी रखी जा सकती है कि प्रारंभ में विदेशी निवेशक भारतीय क्षेत्र की किसी खुदरा कंपनी के साथ भागीदारी में रहे और वे पाँच वर्ष तक ऐसे थोक बिक्री केंद्र भी खोले जहाँ छोटे विक्रेता भी सामान खरीद सकें।

समीक्षा में कहा गया है कि आर्थिक वृद्धि में नरमी के बावजूद निवेश का अनुपात ऊँचा बना रहा और यह 2008-09 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 32.2 प्रतिशत के बराबर था जबकि इससे एक वर्ष पूर्व यह 31.6 प्रतिशत था।

समीक्षा में कहा गया है कि निर्यात और आंतरिक खपत सहित अर्थव्यवस्था में माँग कमजोर होने से अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए सार्वजनिक व्यय में वृद्धि और करों में छूट जैसे उपाय करने पड़े। इसके कारण राजकोषीय घाटा लक्ष्य से ऊपर चला गया।

महँगाई के बारे में समीक्षा में कहा गया है कि खाने-पीने की चीजों से संबंधित मुद्रास्फीति समग्र मुद्रास्फीति की दर से अब भी ऊँची बनी हुई हैवर्ष 2008-09 की 6.7 प्रतिशत की समग्र आर्थिक वृद्धि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा फरवरी में जारी 7.1 प्रतिशत के अनुमान से भी कम रहा। वर्ष के दौरान खान और खनन, सामुदायिक विकास, सामाजिक तथा वैयक्तिक सेवाओं को छोड़ बाकी सभी आर्थिक क्षेत्रों की उत्पादन वृद्धि दर घटी।

कृषि तथा कृषि संबंधित क्षेत्र की वृद्धि दर 2007-08 के 4.9 प्रतिशत के मुकाबले 1.6 प्रतिशत रह गई। इसी दौरान मैन्यूफैक्चरिंग, बिजली और ढाँचगत क्षेत्र की वृद्धि भी क्रमशः 8.2, 5.3 और 10.1 प्रतिशत से घटकर 2.4, 3.4 और 7.2 प्रतिशत पर आ गई। समीक्षा में कहा गया है, ‘मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में मंदी का कारण विशेषतया वर्ष की दूसरी छमाही में निर्यात में गिरावट के साथ-साथ घरेलू माँग में गिरावट का संयुक्त प्रभाव माना जा सकता है।’

एक वर्ष पूर्व की तुलना में 2008.09 में खनन तथा उत्खनन क्षेत्र की वृद्धि दर 3.3 प्रतिशत से बढ़कर 3.6 प्रतिशत, संरचना क्षेत्र 10.1 प्रतिशत से घटकर 7.2 प्रतिशत, वित्तीय, बीमा और व्यावसायिक सेवा क्षेत्र की वृद्धि 11.7 से घटकर 7.8 प्रतिशत तथा सामुदायिक तथा वैयक्तिक सेवा क्षेत्र की वृद्धि 6.8 से बढ़कर 13.1 प्रतिशत रही।