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Written By भाषा

असाधारण मामलों में ही दें उम्रकैद-सुप्रीम कोर्ट

असाधारण मामलों में ही दें उम्रकैद-सुप्रीम कोर्ट -
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि दहेज हत्या के असाधारण मामलों में ही अपराधी को उम्रकैद की सजा दी जाना चाहिए।

इसके साथ ही न्यायमूर्ति पी. सथाशिवम और न्यायमूर्ति एचएल दत्तू की पीठ ने कर्नाटक के एक सत्र न्यायालय द्वारा पत्नी की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए जीवी सिद्धरमेश की उम्रकैद की सजा कम करके दस साल कर दी।

आईपीसी की धारा 304 (बी) के अनुसार दहेज हत्या के मामले में कम से कम सात साल की सजा का प्रावधान है, लेकिन अधिकतम आजीवन कारावास की सजा सुनाई सकती है।

‘हेमचंद बनाम हरियाणा राज्य’ के मामले में तीन जजों की पीठ के फैसले का उदाहरण देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि धारा 304 (बी) केवल दहेज हत्या का अनुमान लगाती है और इसके अनुसार कम से कम सात साल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा सुनाई सकती है।

पिछले मामले का उदाहरण देते हुए अदालत ने कहा इसलिए उम्रकैद की सजा दहेज हत्या के असाधारण मामलों में ही दी जाना चाहिये न कि हर मामले में।

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि चूँकि सिद्धरमेश युवा है, इसलिए निचली अदालत द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को कम करके दस साल करना बेहतर रहेगा।

साल 1997 में सिद्धरमेश से ब्याही गईं उषा ने शादी के एक महीने के भीतर ही अपने घर में फाँसी लगा ली थी। दहेज में पचास हजार रुपए की और माँग के कारण उषा को मानसिक तौर पर उसके पति ने प्रताड़ित किया था, जिसकी वजह से उसने इतना कड़ा कदम उठाया।

निचली अदालत ने सिद्धरमेश को 304 (बी) सहित विभिन्न प्रावधानों के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई। कर्नाटक उच्च न्यायालय से राहत नहीं मिलने पर सिद्धरमेश ने शीर्ष अदालत में अपील की।

उसका कहना था कि उषा इस शादी के खिलाफ थी और किसी दूसरे पुरुष के साथ उसके प्रेम संबंध थे। हालाँकि उच्चतम न्यायालय ने उसकी दलील खारिज कर दी और कहा कि अभियोजन पक्ष ने उस पर लगाए गए आरोप साबित कर दिए थे।

अदालत ने कहा मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हम इस बात से संतुष्ट हैं कि याचिकाकर्ता को धारा 304 (बी) के तहत दोषी ठहराए जाने का फैसला सही था। हालाँकि निचली अदालत द्वारा दिए गए आजीवन कारावास का दंड अधिक मालूम देता है।

शीर्ष न्यायालय ने कहा याचिकाकर्ता एक युवक है और वह पहले ही छह साल जेल में काट चुका है। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए 10 साल का सश्रम कारावास न्यायोचित होगा। (भाषा)