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Written By WD
Last Modified: मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009 (13:42 IST)

मशीन समझेगी मन की बात

मशीन समझेगी मन की बात -
किसी के साथ बातचीत में भावनाओं का बड़ा महत्व होता है। चेहरे पर मुस्कराहट, भौंहें तनना, मुट्ठियाँ भींचना ऐसी सैकड़ों मुद्राएँ हैं जो कहे को बल देती हैं। सिर्फ आँखें तरेरकर किसी को कुछ करने से रोका जा सकता है। लेकिन कई बार 'एस्पेक' बटन दबाकरभी कम्प्यूटर को उसके काम से विमुख नहीं किया जा सकता, जबकि वह एक अच्छा गुलाम है। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि कम्प्यूटर हो या आज का कोई भी अत्याधुनिक उपकरण, वह चलाने वाले आदेश अपनी शर्तों पर ही मानेगा।

बात साफ है। मशीनों की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए काफी कुछ किया गया, परंतु भावनात्मक रूप से समझदार बनाने के लिए कुछ भी नहीं। मशीनों को यूजर-फ्रेंडली जरूर बनाया गया है, जो केवल यांत्रिक है। ह्यूमेन प्रोजेक्ट इस दिशा में कुछ करने के लिए प्रयत्नशील है। प्रोफेसर रुडी कोवी इसके प्रमुख हैं और इसे योरपीय संगठन से आर्थिक सहायता मिली है। फिलॉसॉफर, मनोवैज्ञानिक और कम्प्यूटर एनिमेशन के विशेषज्ञ मिलकर नए उपकरणों को संवेदना-स्किल्स देने की तरकीब करेंगे। मनोवैज्ञानिकों ने उन सारी मुद्राओं के अर्थ खोजकरसूची बनाई है कि पैर पटकने या तन के बैठने के साथ मशीन का उपयोग करने वाला उसे क्या कमांड देना चाह रहा है। सॉफ्टवेयर-एनिमेशन विशेषज्ञ वैसे प्रोग्राम लिखकर कम्प्यूटर को अधिक संवेदनशील बनाएँगे ताकि वे ऑपरेटर के इशारों को बिना उनके बटन दबाए समझलेंगे।

प्रोजेक्ट के फिलॉसॉफरों का उनके चरित्र के अनुसार यही कहना है कि शायद यह बात कभी हो ही नहीं सके। हो भी जाती है तो उसमें देर लगेगी, संभवतः अगले 20 या 30 वर्ष। उपकरणों द्वारा अपने स्वामी की आवाज और उसके उतार-चढ़ाव पहचानकर आज्ञा का पालन करने की तकनीक अब चलन में आ चुकी है, लेकिन भावनाओं की बारीक घटाओं को पहचानकर मशीनों द्वारा इच्छित प्रतिक्रिया जाहिर करने वाले प्रोग्राम लिखने के लिए विशेषज्ञों को अलग ही भाषा गढ़नी पड़ेगी।