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Written By WD

हजरत अबूबक्र खलीफा का सबक

हजरत अबूबक्र खलीफा का सबक -
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हजरत अबूबक्र मुसलमानों के पहले खलीफा थे। हजरत मुहम्मद साहब के बाद खलीफा के रूप में उन्हें ही चुना गया था। उनकी नजर में न कोई ऊँच था और न कोई नीच। वे सबको समान दृष्टि से देखते थे।

एक बार उनके एक गुलाम ने, जो कि उनका शिष्य था, उन्हें खाने के लिए मिठाई दी। उन्होंने जब मिठाई खाई तो उन्हें वह बड़ी ही स्वादिष्ट लगी। उन्होंने गुलाम से पूछा कि उसने इतनी बढ़िया मिठाई कहाँ से पाई? गुलाम ने बताया कि उसके एक दोस्त ने दी थी।

हजरत ने पूछा, 'क्या तुमने कभी उसका कोई काम किया है या कोई फायदा पहुँचाया है।' गुलाम ने उत्तर दिया, 'काम तो नहीं मगर बहुत दिनों पहले मैं लोगों का हाथ देखकर उनका भाग्य बताया करता था। तभी मैंने इस दोस्त का भी भविष्य बताया था।'

'क्या तुम्हें ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान है? क्या तुम्हारी बातें सच्ची निकली थीं,' अबूबक्र ने गुलाम से पूछा।

'जी नहीं, मैं तो बेरोजगार था और पैसे कमाने के लिए झूठ-मूठ कुछ भी बता देता था। अगर मुझे ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान होता तो खुद का ही भविष्य नहीं जान लेता?'

यह सुनते ही अबूबक्र को बड़ा ही दुःख हुआ, बोले, 'यानी तुम्हारे दोस्त ने तुम्हें जो इतनी बढ़िया मिठाई दी है, वह तुम्हारे द्वारा झूठ बोलने के एहसान की एवज में दी और तुमने मुझे वह खिला दी है,' इतना कहकर उन्होंने पानी पी लिया और मुँह में उँगलियाँ डालकर वह मिठाई बाहर निकाली।

यह देख गुलाम को बड़ा ही पश्चाताप हुआ। वह अपने किए पर पछताने लगा।

तब वे बोले, 'आज से ध्यान रखना, न तो कभी झूठ बोलना और न किसी की झूठी कमाई खाना, या खिलाना।' गुलाम को अबूबक्र की बात समझ में आ गई और उसने कसम खाई कि अब से वह कभी झूठ नहीं बोलेगा।

वह गुलाम अपने इस कहे का जीवन पर्यंत पालन किया।