कुंभ में छाए पश्चिमी देशों के युवा
- महेश पाण्डे
मातृ-शक्ति का जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ता जोर आखिर गृहस्थ जीवन तक ही क्यों सीमित रहे? जाहिर है वह पुरुषों के वर्चस्व वाले साधु-समाज में भी अपनी जगह बनाने को आकुल दिख रही हैं। सदी के इस पहले महाकुंभ में वह अपनी स्पष्ट उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। वहीं कुंभ में खूब जमकर शिरकत करती युवा-शक्ति और खास तौर पर विदेश से आए युवकों-युवतियों ने भी इस महामेले को उज्ज्वलता प्रदान करने में अपनी भूमिका निभाई है। भौतिकवाद के रंग में रंग जाने और उसी में रम जाने को अभिशप्त पश्चिमी देशों के युवाओं को भारतीय साधुओं की जीवनशैली और आध्यात्मिक विचार भोगवृत्ति से निकलकर योगवृत्ति में रम जाने की प्रेरणा दे रहे हैं। प्रगतिशील विचारों से लैस व्यक्ति धार्मिक आडंबरों की खिल्ली तो उड़ाएगा ही लेकिन मानसिक शांति के लिए साधुओं की सादी जीवनशैली असंख्य भटके युवाओं को रास्ता दिखा रही है, इससे इनकार करना मुश्किल है। कुंभ में इस बात के दर्शन हो रहे हैं। भले ही विभिन्न अखाड़ों की पेशवाइयाँ और महामंडलेश्वर की पदवी दिए जाने के अवसर पर धनबल का प्रदर्शन इस सत्य को काटता दिखे। बहरहाल, महिलाओं को उसका हक दिलाने के लिए संसद से सड़क तक समर्थन और विरोध में चल रहे संघर्ष की तपिश महाकुंभ में भी महसूस की जा सकती है। देश की आधी आबादी यहां भी प्राचीन परंपराओं को पुनर्स्थापित करती नजर आ रही हैं। मध्ययुगीन समय में मातृ-शक्ति ने सामाजिक ताने-बाने में अपना जो वर्चस्व खो दिया था उसे पुनः पाने के सार्थक संघर्ष के लिए सदी का यह पहला महाकुंभ याद रखा जाएगा। कुंभ में नवरात्र के अवसर पर माँ मैत्रेयी गिरि द्वारा गुजरात से बुलाई गई महिला वेदपाठियों के संग मातृ-शक्ति यज्ञ की शुरुआत को हम इस दृष्टि से देख सकते हैं। इसमें श्रद्धालु तो हर वर्ग के भाग ले सकते हैं लेकिन पवित्र मंत्रों के उच्चारण से लेकर यज्ञाहुति तक के तमाम कार्य सिर्फ मातृ-शक्ति द्वारा ही संपन्न कराया जा रहा है। यज्ञ में शिरकत कर रही वेदपाठिनों का वेद ज्ञान, मंत्रों का सुस्पष्ट उच्चारण एवं अनुष्ठान को संपन्न कराने में दिख रही उनकी निष्ठा गहरे आकर्षित करती हैं। जो भी इस अवसर के गवाह बन रहे हैं उन्हें किसी भी सूरत में साधु-समाज के पुरुष वर्चस्व में महिलाओं का यह दखल आनंद प्रदान कर रहा है।