भोर का उजास
प्रदीप दुबे 'दीप'
चाँद होगा और सूरज भी हमारे पास होगाकट जाएगी रात, भोर का उजास होगाजिनको हो महलों का मोह वे उजड़ने से डरेंजिनके घर ही वन हों उन्हें क्या वनवास होगाले शहर छोड़ा तेरा,तेरी गली भी छोड़ दीअब प्रिये तेरी गली में बड़ा उल्लास होगासंपदा तेरी बसंती, हम फकीरे क्या करेंजहाँ डेरा लगा लेंगे हम वहीं मधुमास होगादेख कर अनदेखा ,क्यों करते हो तुम मुझेइक दिन देख लेना, यह 'दीप' खास होगा।