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Written By WD

कहीं आप भी 'ड्रग एडिक्ट' तो नहीं?

सौमित्र घोष

फार्मूला
ND
नशा सिर्फ शराब, चरस, गाँजा, ब्राउन शुगर आदि जैसी वस्तुओं का ही नहीं होता, रोग दूर करने के लिए ली जाने वाली कुछ दवाएँ भी नशे जैसी स्थिति निर्मित करती हैं और कई बार व्यक्ति इनका आदी हो जाता है। अनावश्यक रूप से दवाई लेने की लत पालने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। जो रोगी के लिए दवा है, वही लती के लिए नशा बनकर कहर बरपा रही है।

मनोहर को मांसपेशियों में दर्द की समस्या थी। डॉक्टर ने उसे थोड़े दिन की दवाई लिखकर दी थी, उसे बेहतर भी लगा। मगर ठीक होने के बरसों बाद तक वह नियमित रूप से इस एक खास दवाई की स्ट्रिप लेने केमिस्ट के पास जाता था। अब मनोहर पुनर्वास केंद्र में है। कई वर्षों में पहली बार वह उस दवा से वंचित है और उसकी आँखें फड़फड़ाती रहती हैं। उसका चेहरा सख्त हो गया। माइकल जैक्सन, जिनकी पिछले दिनों मृत्यु हुई, के बारे में भी बताया जाता है कि वे अनावश्यक रूप से दर्द निवारक दवाएँ लेने के आदी हो गए थे और संभवतः उनकी मृत्यु भी इसी कारण हुई।

चरस, गाँजा, ब्राउन शुगर आदि नशीले पदार्थों की लत के विपरीत यह एक ऐसी लत है जिसकी पूर्ति के लिए व्यक्ति को चोरी-छिपे किसी विक्रेता को तलाशना नहीं पड़ता। वह बड़ी आसानी से किसी भी दवाई की दुकान पर जाकर वह दवा खरीद सकता है जिसकी उसे 'तलब' लग रही है। न तो ऐसी दवाएँ अवैध हैं और न ही इन्हें खरीदना मुश्किल।

हाँ, कहने को इनमें से कई दवाओं को खरीदने के लिए डॉक्टर की पर्ची दिखाना जरूरी है लेकिन इस नियम का कितना पालन होता है, यह जगजाहिर है। दरअसल, ये दवाएँ किसी खास बीमारी के लिए बनाई जाती हैं और जिन्हें इनकी जरूरत होती है, वे इनसे लाभान्वित भी होते हैं। दिक्कत तब होती है जब व्यक्ति को दवा का चस्का लग जाता है और ठीक हो जाने पर भी वह दवा लेना बंद नहीं करता।
आवश्यक होने पर लेने से जो दवा रोग भगाती है, वही अनावश्यक रूप से लेने पर चंगे व्यक्ति को भी बीमार कर सकती है।

मनोचिकित्सक बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में इस तरह के लोगों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, जो अनावश्यक रूप से दवाइयाँ लेकर उनकी लत पाल चुके हैं। नींद की गोलियों, दर्द निवारक दवाइयों के अलावा कुछ कफ सिरप भी इस श्रेणी में आते हैं।

इनमें पाया जाने वाला कोडीन फॉस्फेट नशा उत्पन्ना करने में सक्षम है। दवाई विक्रेता बताते हैं कि डॉक्टर तो एक निर्धारित समय के बाद दवाई धीरे-धीरे बंद करने को कहते हैं, लेकिन जिन्हें दवा की लत लग गई हो वे डॉक्टर की बात को अनसुना कर दवा लेना जारी रखते हैं। जब कोई ग्राहक पुरानी पर्ची दिखाकर बार-बार दवा खरीदने आता है, तो अनुभवी दवा विक्रेता समझ जाता है कि वह दवा की लत का शिकार है।

इन दवाइयों का अनियंत्रित सेवन करने वालों में उच्च रक्तचाप, व्यग्रता, अनिद्रा आदि के रोगी होते हैं। यहाँ तक कि डायरिया के लिए उपयोग में लाई जाने वाली दवा का भी सेवन कुछ लोग अपनी उत्तेजना को शांत करने के लिए करते हैं!

ऐसी अधिकांश दवाओं से मांसपेशियों को आराम मिल जाता है जिससे व्यक्ति को सुखद अनुभूति होती है। इसी कारण लोग बार-बार इनका सेवन करने को मचलते हैं। निशा (नाम परिवर्तित) बताती हैं कि जब उनका तलाक हुआ तो वे अत्यधिक तनाव में रहती थीं। अनिद्रा से परेशान होकर उन्होंने नींद की गोलियाँ खाना शुरू किया। इससे अनिद्रा की समस्या तो दूर हो गई लेकिन उन्हें पता ही न चला कि कब उन्हें इन गोलियों की लत पड़ गई।

इसी प्रकार हितेश (नाम परिवर्तित) के हाथ एक ऐसी दवा लग गई जिसे व्यग्रता, मांसपेशियों की जकड़न, अनिद्रा आदि तकलीफों के लिए दिया जाता है। हितेश ने देखा कि जब से उसके घनिष्ठ मित्र की माँ ने यह दवा लेना शुरू किया तब से उनका चिड़चिड़ापन लगभग दूर हो गया और वे शांत रहने लगीं। जब हितेश परीक्षा के तनाव से परेशान रहने लगा, तो वह भी अपनी मर्जी से वही दवा लेने लगा। आज वह उस दवा पर बुरी तरह निर्भर हो गया है और डॉक्टर उसकी यह लत छुड़ाने का प्रयास कर रहे हैं।

चौंतीस वर्षीय दिलीप बेदी एक निजी फर्म में उच्च अधिकारी हैं। उन्होंने कुछ वर्षों पहले सिरदर्द से उबरने के लिए सिरदर्द की आसानी से सर्वत्र उपलब्ध गोली लेना शुरू की, जो बाद में एक आदत बन गई। फिर वे सिरदर्द की आशंका मात्र से गोली लेने लगे। वे कहते हैं- 'मुझे लगता कि अगर मैंने अभी ही एक गोली न खा ली तो बाद में इतना तेज सिरदर्द होगा कि दो गोलियाँ खानी पड़ेंगी।'

ऐसी ही स्थिति साठ वर्षीय मनोरमादेवी की है। एक बार उन्हें सफर के दौरान डायरिया की शिकायत हो गई थी। दस्त रोकने के लिए उनकी बहू ने उन्हें गोली दी, जो कारगर साबित हुई। तब तक मनोरमादेवी के मन में डायरिया को लेकर ऐसा खौफ बैठ चुका था कि यह गोली उन्हें किसी संजीवनी बूटी-सी लगी। आज हालत यह है कि एकाध घंटे के लिए भी घर से बाहर कहीं जाना हो तो वे उस गोली का सेवन किए बगैर नहीं निकलतीं। मना करने पर कहती हैं कि रास्ते में कहीं पेट में गड़बड़ हो गई तो...! वे मानने को तैयार नहीं हैं कि उन्हें अनावश्यक रूप से दवा लेने की लत लग चुकी है।

हैरत की बात तो यह है कि दवाइयों के अनावश्यक सेवन की लत आम लोगों में ही नहीं, स्वयं डॉक्टरों में भी काफी पाई जाती है! इसका पहला कारण यह है कि उनके पास दवाइयाँ हमेशा उपलब्ध रहती हैं। दूसरा कारण काम का दबाव है। एक शीर्ष मनोचिकित्सक बताते हैं कि पिछले 15 वर्षों में उन्होंने 50 से अधिक डॉक्टरों का इलाज किया है जिन्हें दवाओं की लत लग गई थी!

ND
एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव अनिल बताते हैं कि वे नियमित रूप से जिन डॉक्टरों के पास जाते हैं, उनमें एक लेडी डॉक्टर हमेशा फ्री सैम्पल के रूप में एक खास दर्द निवारक गोली की माँग करती थीं, वह भी पाँच-पाँच स्ट्रिप!

इसका राज तब समझ आया, जब एक दिन उस लेडी डॉक्टर के डॉक्टर पति ने अनिल को अलग से बुलाकर कहा कि तुम मैडम को यह गोली देना बंद करो, वे मरीजों को देने के बजाय स्वयं इनका अत्यधिक सेवन करती हैं और इनकी आदी हो गई हैं।

जिस प्रकार शराब, तंबाकू या अन्य ड्रग्स की लत छुड़ाई जा सकती है, उसी तरह दवाइयों की यह लत भी उचित उपचार व परामर्श से छुड़ाई जा सकती है। पुनर्वास केंद्र में इस नशे से छुटकारा पाने की प्रक्रिया काफी लंबी चल सकती है।

एक बार किसी भी नशे की लत लग जाए तो उसे छुड़ाने की प्रक्रिया तकलीफदेह तो होती है लेकिन यदि लत न छुड़ाई गई तो अंजाम और भी बुरा हो सकता है। यहाँ तक कि मौत के रूप में भी सामने आ सकता है जैसा कि माइकल जैक्सन के मामले में हुआ बताते हैं।