बचपन में चार्ल्स डार्विन का मन स्कूल की पढ़ाई में न लगता था। उन्होंने खुद स्वीकार किया है कि शिक्षा के माध्यम के रूप में स्कूल में मेरे लिए कुछ नहीं था। मैंने वहाँ रसायनशास्त्र पढ़कर और उससे संबंधित प्रयोग करके आनंदित होने के अलावा और कुछ नहीं सीखा।
दरअसल, डार्विन को कीड़े पकड़ने और उनके बारे में जानने की विचित्र धुन थी। उनके पिता ने बहुत कोशिश की कि वह स्कूल की पढ़ाई में रुचि ले लेकिन कोई लाभ न हुआ। हारकर एक दिन डार्विन के पिता ने कहा, "तुम्हें कुत्तों का शिकार करने और चूहे पकड़ने के अलावा और किसी चीज की परवाह नहीं है। इस तरह तुम न केवल अपनी बल्कि अपने पूरे खानदान की बदनामी करोगे।"
पिता की इस कटु टिप्पणी से चार्ल्स डार्विन निराश नहीं हुए। उन्होंने हिम्मत हारकर "आत्महत्या" नहीं की। दरअसल, प्रकृति विज्ञान में डार्विन की रुचि को उनके पिता अधिक महत्व नहीं देते थे। कारण यह था कि उन दिनों प्रकृति विज्ञान के क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम थे। पिता ने तब उन्हें चिकित्सक बनाना चाहा। पर चार्ल्स वह भी न बने। डार्विन सन १८३१ में अध्ययन पूरा किए बिना ही घर आकर बैठ गए। वह अब भी कीट-पतंगों की दुनिया में खोए थे और उधर पिता को उनका यह शौक परेशान किए था। दरअसल, डार्विन अपने दादा इरास्मस डार्विन से प्रभावित थे। चिकित्सक होने के बावजूद उन्होंने "बोटैनिक गार्डन" और "लवर्स ऑफ द प्लांट्स" पुस्तकें लिखी थीं। चार्ल्स डार्विन विरोधों के बावजूद प्रकृति विज्ञान में खोए हुए थे। घर में पिता, रिश्तेदारों सभी से वह अपनी निंदा सुन रहे थे पर अपनी लगन नहीं छोड़ी।
एक दिन वह समय आया जब चार्ल्स के सपने ने साकार रूप लिया - "बीगल" जहाज के रूप में। चार्ल्स को उसका नेतृत्व करना था। चार्ल्स के लिए प्रकृति का अध्ययन करने का यह अच्छा अवसर था लेकिन पिता दीवार बनकर खड़े हो गए। पिता का कहना था कि सहज विवेक रखनेवाला कोई भी व्यक्ति इस मूर्खतापूर्ण विचार से सहमत न होगा। पिता का मानना था - "चार्ल्स किसी कायदे की जीविका की तैयारी करने की जिम्मेदारी से बचना चाहता है।" उन्होंने चार्ल्स से कहा, "यदि तुम व्यावहारिक बुद्धि रखनेवाले एक भी ऐसे आदमी को खोज लाओ जो तुम्हें बीगल की यात्रा पर जाने की सलाह दे तो मैं इजाजत दे दूँगा।"
चार्ल्स डार्विन के सामने पिता द्वारा एक के बाद एक बाधाएँ खड़ी की जा रही थीं लेकिन चार्ल्स ने हार नहीं मानी। रात को बिजली के पंखे से नहीं लटका बल्कि संघर्ष करता रहा। उसने अपने मामा जोशिआ वेजवुड से मुलाकात की। उन्होंने चार्ल्स की बात सुनकर चार्ल्स के पिता को पत्र लिखा - "चार्ल्स की व्यापक उत्सुकता और जिज्ञासा को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह यात्रा उसे मनुष्यों और वस्तुओं को देखने का दुर्लभ अवसर उपलब्ध कराएगी।" और चार्ल्स अपनी मंजिल की ओर बढ़ चला।
और आज चार्ल्स डार्विन द्वारा खोजे गए विकासवाद के सिद्धांत के बारे में कहा जाता है कि यदि यह न हो तो जीव विज्ञान में कुछ भी संगत नहीं लगता।
थॉमस अल्वा एडीसन थॉमस अल्वा एडीसन उस वैज्ञानिक का नाम है जिसने आधुनिक जगत को विज्ञान के बेशकीमती तोहफे दिए है - सिनेमा और ग्रामोफोन रिकॉर्ड आदि। वह जीवन भर बहरा रहा पर उसकी यह कमी कभी सफलता में बाधक न बनी। बचपन से थॉमस के सामने कठिनाइयाँ, बाधाएँ, मुसीबतें, असफलताएँ बार-बार आईं पर वह निराश नहीं हुआ। वह छोटा था तो कहते हैं कि किसी ने उसके दोनों कान पकड़कर इतनी जोर से खींचा कि वह आजीवन बहरा रहा।
उसने किसी स्कूल में पढ़ाई नहीं की थी लेकिन एक से एक महान आविष्कार किए। दरअसल, माँ ने थॉमस का स्कूल में दाखिला कराया था पर उसे "मंदबुद्धि" कहकर स्कूल से निकाल दिया गया था। ऐसे छात्र ने "आत्महत्या" करने के बजाय विश्व का महान आविष्कारक बनकर दिखाया। असफलता उन्हें कभी रोक न सकी बल्कि इसके बजाय उन्होंने हर असफलता को एक सफलता के रूप में देखा।
कहा जाता है कि वह अपने स्टोरेज बैटरी प्रयोग में दस हजार बार असफल हुए। जब वह सफल हुए तो उन्होंने कहा -"मैं असफल क्यों नहीं हुआ? क्योंकि मैंने वे दस हजार तरीके जान लिए हैं जिनके द्वारा सफलता नहीं मिल सकती।"
(लेखक "पराग" के पूर्व संपादक और प्रसिद्ध बाल साहित्यकार हैं)