टेरो कार्ड : हर समस्या का समाधान
टेरो कार्ड से ढेरों निदान
आजकल ऐसे ढेरों मामले हैं जिसमें लोग अपनी दुविधा कम करने के लिए टेरो कार्ड का सहारा ले रहे हैं। बड़े मसले ही नहीं बल्कि रोजमर्रा की दिनचर्या में भी लोग इन रीडिंग्स को अमल में ला रहे हैं। ब्लू पहनूँ या पिंक, लकी नंबर कौन-सा है, कौन-सा करियर बेस्ट है या कौन-सी गाड़ी खरीदूँ जैसे निर्णय से लेकर शादी, रिश्तों में मिठास, बच्चों के स्वास्थ्य जैसे मुद्दों के लिए भी लोग टेरो कार्ड रीडर्स से काउंसलिंग ले रहे हैं। यहाँ तक की कार्पोरेट कंपनियाँ भी उच्च व मध्यम स्तर के कर्मचारियों की न्यूरो लिंग्यूइस्टिक प्रोग्रामिंग (एनएलपी) के जरिए काउंसलिंग करवा रही हैं, जिससे उनमें सकारात्मक बदलाव लाया जा सके।एनएलपी का उपयोग टेरो और रैकी में टेरो कार्ड रीडर एंड काउंसलर व एनएलपी प्रोग्रामर जसपाल टुटेजा बताती हैं आजकल टेरो में नया ट्रेंड आया है। टेरो के साथ ही लोग ओरा क्लिनिंग भी करवा रहे हैं। वे बताती हैं हर व्यक्ति के चक्र अलग होते हैं। ओरा क्लिनिंग के जरिए लोग अपने चक्र को पहचानते हैं व अरोमा ऑइल का उपयोग करते हैं। वे बताती हैं विदेश में यह तकनीक बेहद प्रचलित है लेकिन देश में इसका उपयोग बिरले लोग ही कर रहे हैं।कौन-सी ड्रेस पहनें, कौन-सी गाड़ी खरीदें टेरो कार्ड रीडर अंशु वासवानी कहती हैं किसी भी व्यक्ति के साथ जो होना है उसे तो बदला नहीं जा सकता, लेकिन टेरो के जरिए दुर्घटना या नकारात्मक प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। वे कहती हैं शादी, करियर या रिलेशनशिप सभी जगह असमंजस की स्थिति रहती है। इसी स्थिति को टेरो के जरिए स्पष्ट किया जा सकता है। वे बताती हैं मेरे पास ऐसे कई युवा आते हैं जो कौन-से दिन कौन-से कलर की ड्रेस पहनें, कौन-सी गाड़ी खरीदें, लकी नंबर क्या है जैसे बेसिक प्रश्नों के साथ टेरो रीडिंग और काउंसलिंग करवाते हैं। इतना ही नहीं इन सबके सकारात्मक परिणाम भी उन्हें मिलते हैं। एनएलपी है नई तकनीक
जसपाल बताती हैं कि विदेशों और बड़े शहरों में इन दिनों न्यूरो लिंग्यूइस्टिक प्रोग्रामिंग (एनएलपी) बेहद चलन में है। इस तकनीक से व्यक्ति के सब-कांशियस माइंड को गाइड किया जाता है। वे बताती हैं इस तकनीक में व्यक्ति की काउंसलिंग कर उन्हें बताया जाता है कि उन्हें क्या समस्या है, वे जीवन में क्या पाना चाहते हैं और उसे कैसे पाया जा सकता है। वे बताती हैं वैसे तो यह लोगों के माइंडसेट को पढ़ने की अलग तरह की तकनीक है। मैं इससे निकले परिणामों को टेरो और रैकी में भी उपयोग करती हूँ। वे बताती हैं एनएलपी पद्धति कार्पोरेट स्तर पर चलन में है। इसमें बड़े स्तर के कर्मचारी, टीम लीडर्स आदि की ब्रेन प्रोग्रामिंग की जाती है जिससे वे उनके अधीनस्थ कर्मचारियों से तालमेल बिठा सकें और बेहतर परिणाम दे पाएँ। कई कंपनियाँ तो मध्यम स्तर के एक्जिक्यूटिव्स पर भी इस तकनीक को इस्तेमाल कर रही हैं। हालाँकि शहर में अब तक यह ट्रेंड नहीं आया है लेकिन जल्द ही यहाँ की कंपनियाँ भी इसे अपनाएँगी।