शिक्षाप्रद कहानी : सच्ची ईश्वर भक्ति....
एक यहूदी पुजारी थे-रबी बर्डिक्टेव। लोग उन्हें अत्यंत श्रद्घा एवं भक्ति भाव से देखते थे। वहां मंदिर को सैनेगाग कहा जाता है। यहूदी पुजारी प्रतिदिन सुबह सैनेगाग जाते और दिनभर मंदिर में रहते। सुबह से ही लोग उनके पास प्रार्थना के लिए आने लगते। जब कुछ लोग इकट्ठे हो जाते, तब मंदिर में सामूहिक प्रार्थना होती। जब प्रार्थना संपन्न हो जाती, तब पुजारी लोगों को अपना उपदेश देते। उसी नगर में एक गाड़ीवान था। वह सुबह से शाम तक अपने काम में लगा रहता। इसी से उसकी रोजी-रोटी चलती। यह सोचकर उसके मन में बहुत दुख होता कि मैं हमेशा अपना पेट पालने के लिए काम-धंधे में लगा रहता हूं, जबकि लोग मंदिर में जाते हैं और प्रार्थना करते हैं। मुझ जैसा पापी शायद ही कोई इस संसार में हो।
यह सोचकर उसका मन आत्मग्लानि से भर जाता था। सोचते-सोचते कभी तो उसका मन और शरीर इतना शिथिल हो जाता कि वह अपना काम भी ठीक से नहीं कर पाता। इससे उसको दूसरों की झिड़कियां सुननी पड़तीं। जब इस बात का बोझ उसके मन में बहुत अधिक बढ़ गया, तब उसने एक दिन यहूदी पुजारी के पास जाकर अपने मन की बात कहने का निश्चय किया। अतः वह रबी बर्डिक्टेव के पास पहुंचा और श्रद्घा से अभिवादन करते हुए बोला- 'हे धर्मपिता! मैं सुबह से लेकर शाम तक एक गांव से दूसरे गांव गाड़ी चलाकर अपने परिवार का पेट पालने में व्यस्त रहता हूं। मुझे इतना भी समय नहीं मिलता कि मैं ईश्वर के बारे में सोच सकूं। ऐसी स्थिति में मंदिर में आकर प्रार्थना करना तो बहुत दूर की बात है।'