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मां धूमावती देवी की स्तुति और कवच से मिलेगा सौभाग्य और समृद्धि का शुभ वरदान

मां धूमावती देवी की स्तुति और कवच से मिलेगा सौभाग्य और समृद्धि का शुभ वरदान - Devi dhumavati dhumavati stuti n kavach
dhumavati stuti n kavach
देवी धूमावती जयंती के दिन उनकी स्तुति करने वाला कभी धनविहीन नहीं होता व उसे दुःख छूते भी नहीं, बड़ी से बड़ी शक्ति भी पाठ करने वाले के समक्ष नहीं खड़ी हो सकती है। शुक्रवार, 18 जून 2021 को मां धूमावती की जयंती है। मां धूमावती का तेज सर्वोच्च कहा जाता है। श्वेतरूप व धूम्र अर्थात धुंआ इनको प्रिय है। आकाश में स्थित बादलों में इनका निवास होता है।

इस दिन माता धूमावती की स्तुति और कवच पढ़ने से सौभाग्य और समृद्धि का शुभ वरदान मिलता है। आइए जानें...
 
स्तुति :
 
विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च मलिनाम्बरा,
विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा,
काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा,
सूर्पहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता,
प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा,
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा काल्हास्पदा
 
 
॥ सौभाग्यदात्री धूमावती कवचम् ॥
 
धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी ।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ॥1॥
कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके ।
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ॥2॥
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः ।
सौभाग्यमतुलं प्राप्य जाते देविपुरं ययौ ॥3॥
 
॥ श्री सौभाग्यधूमावतीकल्पोक्त धूमावतीकवचम् ॥
 
॥ धूमावती कवचम् ॥
 
श्रीपार्वत्युवाच
 
धूमावत्यर्चनं शम्भो श्रुतम् विस्तरतो मया ।
 
कवचं श्रोतुमिच्छामि तस्या देव वदस्व मे ॥1॥
 
श्रीभैरव उवाच
 
शृणु देवि परङ्गुह्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे ।
कवचं श्रीधूमावत्या: शत्रुनिग्रहकारकम् ॥2॥
 
ब्रह्माद्या देवि सततम् यद्वशादरिघातिनः ।
योगिनोऽभवञ्छत्रुघ्ना यस्या ध्यानप्रभावतः ॥3॥
 
ॐ अस्य श्री धूमावती कवचस्य
पिप्पलाद ऋषिः निवृत छन्दः,श्री धूमावती देवता, धूं बीजं ,स्वाहा शक्तिः, धूमावती कीलकं, शत्रुहनने पाठे विनियोगः॥
 
ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं सदाऽवतु ।
धूमा नेत्रयुग्मं पातु वती कर्णौ सदाऽवतु ॥1॥
 
दीर्ग्घा तुउदरमध्ये तु नाभिं में मलिनाम्बरा ।
शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षा रक्षतु जानुनी ॥2॥
 
मुखं में पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम् ।
सर्वा विद्याऽवतु कण्ठम् विवर्णा बाहुयुग्मकम् ॥3॥
 
चञ्चला हृदयम्पातु दुष्टा पार्श्वं सदाऽवतु ।
धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा ॥4॥
 
प्रवृद्धरोमा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा ।
क्षुत्पिपासार्द्दिता देवी भयदा कलहप्रिया ॥5॥
 
सर्वाङ्गम्पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी ।
इति ते कवचम्पुण्यङ्कथितम्भुवि दुर्लभम् ॥6॥
 
न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे ।
 
पठनीयम्महादेवि त्रिसन्ध्यन्ध्यानतत्परैः ।।7॥
दुष्टाभिचारो देवेशि तद्गात्रन्नैव संस्पृशेत् । 7.1।
 
॥ इति भैरवीभैरवसम्वादे धूमावतीतन्त्रे धूमावतीकवचं सम्पूर्णम् ॥
 
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