गर्भस्थ शिशु के बारे में जानें
गर्भ में पल रहा शिशु किस स्थिति में है, यह तो आप सोनोग्राफी द्वारा मालूम कर सकते हैं, लेकिन वह किस लिंग का है, यह मालूम नहीं कर सकते, क्योंकि यह बताना कानूनी जुर्म है।
कुछ लोग रुपए-पैसे के बल पर फिर भी इस कानून को तोड़कर शिशु के बारे में मालूम कर लेते हैं, लेकिन सभी के लिए यह संभव नहीं है। इससे भ्रूण हत्या पर कुछ हद तक ही सही रोक तो लगी है। नव दंपति की इच्छा होती है कि उनके घर में आने वाला नया सदस्य पुत्र ही हो। कुछ लोग पुत्र-पुत्री में भेद नहीं करते, ऐसे लोगों का प्रतिशत बहुत कम है। यदि आप पुत्र चाहते हैं या पुत्री चाहते हैं तो कुछ तरीके यहां दिए जा रहे हैं, जिन पर अमल कर उसी तरीके से सम्भोग करें तो आप कुछ हद तक अपनी मनचाही संतान प्राप्त कर सकते हैं-
उपाय* पुत्र प्राप्ति हेतु मासिक धर्म के चौथे दिन सहवास की रात्रि आने पर एक प्याला भरकर चावल का धोवन यानी मांड में एक नीबू का रस निचोड़कर पी जावें। अगर इच्छुक महिला रजोधर्म से मुक्ति पाकर लगातार तीन दिन चावल का धोवन यानी मांड में एक नीबू निचोड़कर पीने के बाद उत्साह से पति के साथ सहवास करे तो उसकी पुत्र की कामना के लिए भगवान को भी वरदान देना पड़ेगा। गर्भ न ठहरने तक प्रतिमाह यह प्रयोग तीन दिन तक करें, गर्भ ठहरने के बाद नहीं करें।
* गर्भाधान के संबंध में आयुर्वेद में लिखा है कि गर्भाधान ऋतुकाल (मासिक धर्म) की आठवीं, दसवीं और बारहवीं रात्रि को ही किया जाना चाहिए। जिस दिन मासिक ऋतु स्राव शुरू हो, उस दिन तथा रात को प्रथम दिन या रात मानकर गिनती करना चाहिए। छठी, आठवीं आदि सम रात्रियां पुत्र उत्पत्ति के लिए और सातवीं, नौवीं आदि विषम रात्रियां पुत्री की उत्पत्ति के लिए होती हैं अतः जैसी संतान की इच्छा हो, उसी रात्रि को गर्भाधान करना चाहिए।
* इस संबंध में एक और बात का ध्यान रखें कि इन रात्रियों के समय शुक्ल पक्ष यानी चांदनी रात (पूर्णिमा) वाला पखवाड़ा भी हो, यह अनिवार्य है, यानी कृष्ण पक्ष की रातें हों तो गर्भाधान की इच्छा से सहवास न कर परिवार नियोजन के साधन अपनाना चाहिए।
* शुक्ल पक्ष में जैसे-जैसे तिथियां बढ़ती हैं, वैसे-वैसे चन्द्रमा की कलाएं बढ़ती हैं। इसी प्रकार ऋतुकाल की रात्रियों का क्रम जैसे-जैसे बढ़ता है, वैसे-वैसे पुत्र उत्पन्न होने की संभावना बढ़ती है, यानी छठवीं रात की अपेक्षा आठवीं, आठवीं की अपेक्षा दसवीं, दसवीं की अपेक्षा बारहवीं रात अधिक उपयुक्त होती है।
* पूरे मास में इस विधि से किए गए सहवास के अलावा पुनः सहवास नहीं करना चाहिए, वरना घपला भी हो सकता है। ऋतु दर्शन के दिन से 16 रात्रियों में शुरू की चार रात्रियां, ग्यारहवीं व तेरहवीं और अमावस्या की रात्रि गर्भाधान के लिए वर्जित कही गई है। सिर्फ सम संख्या यानी छठी, आठवीं, दसवीं, बारहवीं और चौदहवीं रात्रि को ही गर्भाधान संस्कार करना चाहिए।
* गर्भाधान वाले दिन व रात्रि में आहार-विहार एवं आचार-विचार शुभ पवित्र रखते हुए मन में हर्ष व उत्साह रखना चाहिए। गर्भाधान के दिन से ही चावल की खीर, दूध, भात, शतावरी का चूर्ण दूध के साथ रात को सोते समय, प्रातः मक्खन-मिश्री, जरा सी पिसी काली मिर्च मिलाकर ऊपर से कच्चा नारियल व सौंफ खाते रहना चाहिए, यह पूरे नौ माह तक करना चाहिए, इससे होने वाली संतान गौरवर्ण, स्वस्थ, सुडौल होती है।
* गोराचन 30 ग्राम, गंजपीपल 10 ग्राम, असगंध 10 ग्राम, तीनों को बारीक पीसें, चौथे दिन स्नान के बाद पांच दिनों तक प्रयोग में लाएं, गर्भधारण के साथ ही पुत्र अवश्य पैदा होगा।