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Written By WD
Last Updated : बुधवार, 19 जून 2024 (15:07 IST)

मृगी मुद्रा योग का लाभ

Hirni Mudra
मृगी मुद्रा। मृग हिरन को कहा जाता है। यज्ञ के दौरान होम की जाने वाली सामग्री को इसी मुद्रा में होम किया जाता है। प्राणायाम किए जाने के दौरान भी इस मुद्रा का उपयोग होता है। ध्यान करते वक्त भी इस मुद्रा का इस्तेमाल किया जाता है। यह मुद्रा बनाते वक्त हाथ की आकृति मृग के सिर के समान हो जाती है इसीलिए इसे मृगी मुद्रा (Mrigi mudra yoga) कहा जाता है। यह एक हस्त मुद्रा है।
 
मुद्रा बनाने की विधि : अपने हाथ की अनामिका और मध्यमा अंगुली को अंगूठे के आगे के भाग को छुआ कर बाकी बची तर्जनी और कनिष्ठा अंगुली को सीधा तान देने से मृगी मुद्रा बन जाती है।
 
योग आसन - इस दौरान उत्कटासन, सुखासन और उपासना के समय इस्तेमाल होने वाले आसन किए जा सकते हैं।
 
अवधि/दोहराव- इस मुद्रा को सुविधानुसार कुछ देर तक कर सकते हैं और इसे तीन से चार बार किया जा सकता है।
 
मृगी मुद्रा का लाभ ( mrigi mudra benefits ): मृगी मुद्रा करते समय अंगूठे के पोर और अंगुलियों के जोड़ पर दबाव पड़ता है। उक्त दबाव के कारण सिरदर्द और दिमागी परेशानी में लाभ मिलता है। एक्युप्रेशर चिकित्सा के अनुसार उक्त अंगुलियों के अंदर दांत और सायनस के बिंदु होते हैं जिसके कारण हमें दांत और सहनस रोग में भी लाभ मिलता है।
 
विशेष- माना जाता है कि इस मुद्रा को करने से सोचने और समझने की शक्ति का विकास भी होता है। मृगी मुद्रा मिर्गी के रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी है।
 
-वेबदुनिया डेस्क
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