हर रंग में शामिल मेरे अस्तित्व के रंग
स्वाति शैवाल
मुझे जानते तो होंगे ही आप... अरे देखा तो होगा अक्सर अपने आसपास कभी मुंह पर हाथ लगाए तो कभी अचानक उस हाथ को हटाकर हंसी के रंग बिखेरते हुए। तो चटपटे पानी से भरा, एक गोलगप्पा मुंह में भरकर मिर्च और मजे के रंगों को चेहरे से बरसाते हुए...। कभी नन्हे-नन्हे डग भरती... थप-थप-थप की आवाज के रंग घर के कोने-कोने में भरती...तो कभी अपने हाथ में खाने की थाली लिए... रोटी के ठंडे होने पर प्यार भरे गुस्से का रंग दिखाते हुए...। बचपन से बुढ़ापे तक ढेर सारे रंगों से सराबोर हूं मैं...और जीवन के इन रंगों से मैं अपनी इबारत लिखती हूं। अपने जन्म से ही उत्सवों के इंद्रधनुष के रंग मैं साथ लिए आती हूं। कितने ही रंग और कितने ही रूप..। बेटी, बहन, पत्नी, मां, दादी, चाची, ताई और दोस्त से लेकर किसी मल्टीनेशनल में काम कर रही सहयोगी या बॉस तक...कई सारी भूमिकाओं में रत हूं..। चटख रंगों का बचपन चीं..चीं..चीं...की आवाज के साथ आंगन में फुदकती चिड़िया की चहचहाहट को सुनकर, मां की कलाई में सजी चूड़ियों के खिलौने से मन बहला रही दस महीने की गुड़िया के रूप में कींईईईई की खुशी भरी किलकारी के साथ ही, तेजी से घुटने-घुटने चलकर आंगन में पहुंचने वाली मैं ही तो हूं। सुबह की धूप के साथ ही आंगन में बिखर जाते हैं इंद्रधनुषी रंग भी..., जिनमें मेरे और चिड़िया के साथ ही बाकी का परिवार भी सराबोर हो जाता है। वैसे तो चीं...चीं...चीं.. करती वो चिड़िया भी मैं ही हूं... बस उसके पंख दिखते हैं और मेरी उड़ान को महसूस किया जा सकता है...। मां की लाल साड़ी से लेकर नानी की लाल बिंदी और दीदी की खूब सारे रंग के फूलों वाली फ्रॉक मुझे खुश कर देती है। मैं कह तो नहीं पाती, लेकिन पता है... सब मेरी बात समझ जाते हैं..। खासतौर पर मां... और फिर मां झट से अपनी चटख लाल साड़ी का आंचल मेरे सर पर फैलाकर मुझे लाड़ी बहू बना देती है..। मेरे इस रूप पर तो सब फिदा हैं।रंगों भरा जहान जब स्कूल में अव्वल आने या किसी भाषण प्रतियोगिता में जोश के साथ अपनी बात रखने पर तालियां बजते सुनती हूं तो रंग आंखों में ही नहीं, कानों में भी उतरने लगते हैं। आसमान मुझे अपने सामने बांहे पसारे खड़ा दिखता है...। अपनी आंखों की चमक को जब मैं मां, पापा और दादी की आंखों में उतरता देखती हूं तो लगता है जैसे सपनों के चमकीले रंग और भी पक्के हो गए हैं। मुझे दुनिया का हर रंग हसीन लगता है। ऐसा लगता है जैसे कोई रंगों का बड़ा सा तालाब बना दे और मैं उसमें डूबती-उतरती रहूं। कितने सुंदर लगेंगे न... हरे रंग के चेहरे पर पीली छींट-सी बूंदें और नारंगी से बालों में सजे चंपा के सफेद फूल...?