सुनो, तुम चरित्रहीन नहीं हो... !
डॉ. मीनाक्षी स्वामी
एक ओर तो समाज में स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए संवैधानिक, कानूनी, सामाजिक सभी स्तरों पर तेजी से प्रयत्न हो रहे हैं। दूसरी ओर अत्यंत शर्मनाक है कि स्त्रियों के विरुद्ध बलात्कार जैसे कुकृत्य और उसके बाद सभी स्तरों पर उसकी प्रताड़ना में तेजी से वृद्धि हो रही है। किसी भी उम्र या वर्ग की महिला इन अत्याचारों से बच नहीं पाई है। इस स्थिति का निराकरण समूचे समाज के लिए चुनौती है। मगर समाज तो उल्टे पीड़ित स्त्री के प्रति हृदयहीन होकर उस पर ही दोष मढ़ने लगता है। यह सामाजिक मनोविकार है। स्त्री पर दोष मढ़ने के पूर्व एक बार गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना जरूरी है कि यह एक हादसा है और इस हादसे की शिकार कोई भी स्त्री कभी भी और कहीं भी हो सकती है। समाज का गलत रवैया पीड़ित स्त्री का मनोबल तोड़ता है। इससे वह समाज और कानून के समक्ष अपनी निर्दोषता प्रमाणित करने में असहाय होती है। ऐसे में उसे अपराध बोध से मुक्त करना पहली जरूरत होनी चाहिए। उसके मन में यह भाव दृढ़ता से स्थापित किया जाना चाहिए कि उसके साथ जबरदस्ती हुई है, वह न तो दुश्चरित्र है और न मानी जा सकती है। कई देशों में यौन अपराधों में कमी लाने हेतु कामांधता कम करने के लिए हारमोन इंजेक्शन देने जैसे कानून हैं। भारत में भी विज्ञान के माध्यम से नैतिकता, कानून और दंड की दिशाएं तय की जा सकती हैं। स्त्रियों को उनके कानूनी अधिकारों से परिचित कराना भी जरूरी है ताकि वे उनका प्रयोग कर सकें। सबसे जरूरी है जनचेतना, जनशक्ति। इससे कानून प्रभावी और अपराधी दंडित हो पाते हैं।