नई छवि में उभरती दमकती नारियां
- प्रस्तुति : महेन्द्र मोहन भट्ट
नारी की नई सहस्राब्दी में सर्वदा एक नई छवि उभर रही है। महिलाएं पिछली सदियों में जो बेड़ियों से जकड़ी थी, उसे तोड़कर आज वह अपनी नई पहचान बनाने में जुटी है। आज नारी अबला नहीं रही, वह पुरुष से दुर्बल नहीं है बल्कि उससे कहीं ज्यादा सक्षम और सबल है। इस संदर्भ में राष्ट्र-निर्माता स्वामी विवेकानंद ने वर्षों पहले कहा था- 'किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम थर्मामीटर है वहां की महिलाओं की स्थिति। हमें नारियों को ऐसी स्थिति में पहुंचा देना चाहिए, जहां वे अपनी समस्याओं को अपने ढंग से स्वयं सुलझा सकें। हमें नारी शक्ति के उद्धारक नहीं, वरन उनके सेवक और सहायक बनना चाहिए। भारतीय नारियां संसार की अन्य किन्हीं भी नारियों की भांति अपनी समस्याओं को सुलझाने की क्षमता रखती हैं। आवश्यकता है, उन्हें उपयुक्त अवसर देने की। इसी आधार पर भारत के उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएं सन्निहित हैं।' घर की घुटन भरी चहारदीवारी अब प्रायः टूट चुकी है। कल की साधारण-सी गृहिणी आज कुशल प्रबंधक बनकर अपने कार्यों, दायित्वों का निर्वहन कर रही है। उसकी इस भूमिका में नवीनता है, सृजनशीलता की आभा है। हालांकि नारी में यह प्रतिभा जन्मजात थी, परंतु पुरुष प्रधान समाज की निरंकुश मानसिकता में वह दबी पड़ी गल रही थी। जैसे ही यह प्रतिरोध कुछ कम हुआ कि नारी प्रतिभा पुष्पित-पल्लवित होने लगी।