न कभी हारी थी, न कभी हारी हूं, मैं नारी हूं
पूजा पाराशर
नारी....मेरा यह नाम अपने आप में अपार शक्ति समेटे हुए है। मैं एक शक्ति का जीता जागता रूप हूं। सुबह की पहली किरण से पूर्व जागने की शक्ति, समय को पीछे छोड़ अनवरत भागने की शक्ति। मेरी अनेक भुजाएं हैं। किसी भुजा में धर्म है, किसी में कर्म है और अपनी संतान के माथे पर प्यार भरी थपथपाहट के साथ किसी भुजा में अपार ममतत्व भी।
मैं महिला हूं, प्राचीन काल से आज तक मैंने इस समाज में होते हुए बदलाव में खुद को समायोजित किया है। यह है मेरी नीर की तरह समायोजन की शक्ति। खुद को घर के कर्तर्व्यों से बांधती, मैं गांधारी हूं, कभी अपनी निर्णय क्षमता को प्रदर्शित कर अन्याय का विरोध करती सीता भी हूं। कभी मैं प्रेम की धुन पर नृत्य करती राधा हूं, तो कभी अपनी मातृभूमि पर न्यौछावर झांसी की रानी।
मेरे कई रूप हैं। सभी रूपों में मैं एक शक्ति हूं, भक्ति हूं, श्रद्धा हूं, विश्वास हूं, आस हूं, मर्यादा हूं, लज्जा हूं, सौंदर्य हूं, क्षमा हूं, विद्या हूं, वाणी हूं। हर रूप में मैं सम्मानीय हूं और जहां नारी का सम्मान होता है वहीं देवता का भी वास होता है। आज बस मुझे मेरा वही सम्मान चाहिए जिसकी मैं अधिकरी हूं। महिलाओं के प्रति नजरों में हवस, तिरस्कार और लघुता का भाव नहीं चाहिए। मुझे वह मिले, जिसकी मैं सदियों से अधिकारी हूं। न कभी हारी थी, न कभी हारी हूं, मैं नारी हूं।