अंधेरे में गुम कामकाजी औरतें
- सुश्री शरद सिंह
जिन्हें कामकाजी औरतों के रूप में गिना नहीं जाता है उनमें भी अनेक औरतें कामकाजी हैं जो परिवार की आय बढ़ाती हैं लेकिन उन्हें अपने परिवार की संपत्ति पर अधिकार नहीं मिलता। एक आकलन के अनुसार, कार्यसहभागिता और आर्थिक योगदान की दृष्टि से विश्व में लगभग सोलह खरब (ट्रिलियन) डॉलर की अर्थव्यवस्था में स्त्रियां लगभग ग्यारह खरब डॉलर का योगदान करती हैं जबकि वे विश्व की 10 प्रतिशत आय और एक प्रतिशत संपत्ति की ही स्वामिनी हैं। भारत में साक्षरता की कमी के कारण स्त्रियों की प्रत्यक्ष कार्यसहभागिता पुरुषों की अपेक्षा कम है।
ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक स्त्रियां ऐसे काम कर के अपने परिवार के अर्थोपार्जन में सहभागी बनती हैं जिन्हें न तो व्यवसाय में गिना जाता है और न नौकरी में। वे वनों से जलाऊ लकड़ियां काटती तथा बीनती हैं और उन्हें ले जा कर निकटतम गांव, कस्बे अथवा शहर में बेचती हैं, वे अन्य प्रकार के वनोपज जैसे चिरौंजी, तेंदू, कत्था, तेंदूपत्ता, गोंद, महुआ आदि एकत्र करती हैं जिनके बदले उन्हें पैसा मिलता है। वनों के निकट बसे हुए गांवों में रहने वाली स्त्रियों के धनोपार्जन का सबसे बड़ा स्रोत वन परिक्षेत्र होता है।