हर नारी चीत्कार, समाज पर तमाचा है
डॉ. अनिता सावंत
आज तथाकथित प्रगतिशील समाज में स्त्रियों पर हो रहे अनाचारों से किस महिला का दिल रो नहीं पड़ेगा? मगर वह स्त्रियों के सम्मान या अस्मिता के संरक्षण की गुहार लगाए भी तो किससे? कानून गुनहगारों को सजा तो दे सकता है, पर स्त्री का सम्मान करना तो नागरिकों को स्वयं सीखना होगा। जो समाज अपनी बेटियों की सुरक्षा नहीं कर सकता, उसे पैदा होते ही उन्हें मार देना चाहिए। किसी प्रमुख महिला द्वारा कहे गए इस कथन की हम भर्त्सना कर सकते हैं। इसे घोर निराशावादी बता सकते हैं, निंदनीय कह सकते हैं। लेकिन, क्या बयान की निंदा भर कर देने से हम बेटियों को उनका उचित स्थान या सम्मान दिला सकते हैं? आज की तारीख में देखें, चारों ओर महिलाओं के साथ हो रही ज्यादतियां दिखाई देती हैं। कोई समाचार-पत्र या समाचार बुलेटिन ऐसा नहीं है, जो ऐसी खबरों से भरा न हो। स्त्रियों की ये चीत्कार, हमारे तथाकथित सभ्य समाज के मुंह पर तमाचा है। अगर ये कहना गलत है तो हमें बताना होगा कि आखिर समाज में रह रही स्त्रियों के सम्मान की रक्षा का कर्तव्य किसका है और यदि वे समाज में ही सुरक्षित नहीं हैं तो आखिर इसकी जिम्मेदारी किसकी है?