गुरूजी ने पूछा- पप्पू इस श्लोक का अर्थ बताओ।
'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन'।
पप्पू- राधिका शायद रस्ते मे फल बेचने का काम कर
रही है।
गुरूजी- मूर्ख,ये अर्थ नही होता है।
चल इसका अर्थ बता - 'बहुनि मे व्यतीतानि,जन्मानि तव चार्जुन।'
पप्पू- मेरी बहू के कई बच्चे पैदा हो चुके हैं,सभी का जन्म
चार जून को हुआ है।
गुरूजी- अरे गधे,संस्कृत पढ़ता है कि घास चरता है।
अब इसका अर्थ बता-
'दक्षिणे लक्ष्मणोयस्य वामे तू जनकात्मजा'।
पप्पू- दक्षिण मे खडे़ होकर लक्ष्मण बोला जनक
आजकल तो तू बहुत मजे मे है।
गुरूजी- अरे पागल,तुझे 1 भी श्लोक का अर्थ नही
मालूम है क्या?
पप्पू- मालूम है ना।
गूरूजी- तो आखरी बार पूछता हूँ इस श्लोक का सही
सही अर्थ बताना।
हे पार्थ त्वया चापि मम चापि.......!
क्या अर्थ है जल्दी से बता।
पप्पू- महाभारत के युद्ध मे श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से
कह रहे हैं कि........
.
गुरूजी उत्साहित होकर बीच मे ही कहते
हैं- हां,शाबास,बता क्या कहा श्रीकृष्ण ने अर्जुन
से........?
.
पप्पू- भगवान बोले, अर्जुन तू भी चाय पी ले,मैं भी
चाय पी लेता हूं। फिर युद्ध करेंगे।
गुरूजी बेहोश..........