Bhagat Singh ने फांसी के पहले कहा था जिंदा रहना एक शर्त पर मंजूर
अमर शहीद कॉमरेड भगतसिंह को एक क्रांतिकारी देशभक्त के रूप में जाना जाता है,किंतु वह केवल क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं एक अध्ययनशील, विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान् मानव भी थे। अपनी 23 वर्ष की छोटी सी आयु में ही उन्होंने फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांतियों का विषद् अध्ययन किया था।
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उनके लिखे कई पत्र और बहुमूल्य दस्तावेज सही मायने में राष्ट्र की मूल्यवान् निधि है और आने वाली पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक भी, वो सही रूप में सामने नहीं आई है। अपने अंतिम क्षणों में भी भगतसिंह संयत, शिष्ट, शालीन और संतुलित थे।
फांसी के ठीक एक दिन पहले 22 मार्च 1931 को सेंट्रल जेल के 14 नंबर वार्ड में रहनेवाले कुछ बंदी क्रांतिकारियों ने भगतसिंह के पास एक परची भेजी- 'सरदार, यदि आप फांसी से बचना चाहते हैं तो बताएं, इन घडियों में भी शायद कुछ हो सके।' भगतसिंह ने जो उत्तर लिखा, वह संसार के पत्र-साहित्य में एक दुर्लभ दस्तावेज है।
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