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ग़ालिब की ग़ज़लें
1.
कहते हो न देंगे हम, दिल अगर पड़ा पाया दिल कहाँ कि गुम कीजे, हमने मुद्दुआ पायाइश्क़ से तबीय़त ने, ज़ीस्त का मज़ा पायादर्द की दवा पाई, दर्द-ए-बेदवा पायादोस्तार-ए-दुश्मन है, एतिमाद-ए-दिल मालूम आह बेअसर देखी, नाला नारसा पायासादगी-ओ-पुरकारी, बेखुदी-ओ-हुश्यारीहुस्न को तग़ाफ़ुल में, जुरअत आज़मा पायाग़ुंचा फिर लगा खिलने, आज हमने अपना दिल खूँ किया हुआ देखा, गुम किया हुआ पायाहाल-ए-दिल नहीं मालूम, लेकिन इस क़दर यानीहमने बारहा ढूंडा, तुमने बारहा पाया शोर-ए-पिन्द-ए-नासेह ने, ज़ख्म पर नमक छिड़का आप से कोई पूछे, तुमने क्या मज़ा पाया2.
शौक़ हर रंग, रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला क़ैस तस्वीर के परदे में भी उरयाँ निकला जख्म ने दाद न दी, तंगि-ए-दिल की यारब तीर भी सीना-ए-बिस्मिल से पुरअफ़शाँ निकलाबू-ए-गुल, नाला-ए-दिल, दूद-ए-चिराग़-ए-महफ़िलजो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला दिल-ए-हसरत ज़दा था, मायदा-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द काम यारों का, बक़द्र-ए-लब-ओ-दन्दाँ निकलाथी नौ आमोज़-ए-फ़ना, हिम्मत-ए-दुश्वार पसन्द सख्त मुश्किल है कि ये काम भी आसाँ निकला दिल में फिर गिरिये ने इक शोर उठाया ग़ालिबआह जो क़तरा न निकला था सो तूफ़ाँ निकला