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ग़ज़ल- जोश मलीहआबादी
सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उसने ये इरशाद किया जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद कियादिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दियाजब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया इसक़ा रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बरबादइसका ग़म है कि बहुत देर से बरबाद किया इतना मानूस हूँ फि़तरत से कली जब चटकी झुक के मैंने ये कहा मुझसे कुछ इरशाद कियामुझको तो होश नहीं तुमको ख़बर हो शायद लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बरबाद किया।******************