बनारस में अपनों से ही संघर्ष करती भाजपा!
वाराणसी। उत्तर प्रदेश के बनारस में 3 दिन से सियासी संग्राम अपनी चरम सीमा पर था क्या भाजपा, क्या सपा, क्या कांग्रेस और क्या बसपा सभी ने अपनी पूरी ताकत बनारस के किले को अपनी पार्टी के हित में मजबूत करने में लगा डाली है। इन 3 दिनों तक लगातार पूरे भारत का मीडिया व पूरे भारत की नजर बनारस की गलियों पर टिकी थी जहां पूरे दिन कहीं नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे सुनाई पढ़ते थे तो कहीं अखिलेश व राहुल जिंदाबाद के नारे सुनाई पढ़ते थे। सबसे ज्यादा चिंतित भाजपा के सभी वरिष्ठ नेता दिखाई पड़ते थे। ऐसा होना लाजमी भी है क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा बनारस को लेकर दांव पर लगी है।
इसी के चलते नरेंद्र मोदी ने 3 दिन का प्रवास बनारस में रहकर प्रचार-प्रसार करने के लिए किया तो वही बकायदा केंद्रीय मंत्रियों की एक टीम पिछले 2 हफ्ते से बनारस के गढ़ को मजबूत करने में जुटे हुए थे और देखा जाए तो कहीं ना कहीं एक तरफ जहां नरेंद्र मोदी के रोड शो को लेकर सवाल उठ रहे थे और उन्हीं के कुछ मंत्रियों ने तो कह डाला कि भारत के प्रधानमंत्री को अपनी गरिमा का ख्याल रखना चाहिए था और उन्हें रोड शो नहीं करना चाहिए था।
खुद नरेंद्र मोदी इस बात को समझ चुके थे कि बनारस को लेकर उन्हें क्या हानि क्या लाभ होने वाल है और हानि से बचने के लिए उन्होंने लगातार तीन दिन तक जनसभाएं व रोड शो कर जनता के बीच जाने का प्रयास किया और इसमें कोई दो राय नहीं है कि जनता उन के बहुत नजदीक आ गई और कहीं ना कहीं 8 मार्च को होने वाले मतदान के दिन इसका असर देखने को मिल भी सकता है लेकिन बनारस की जंग तो अभी भी जारी रही है। इस जंग में कौन जीता कौन हारा इसका फैसला तो 11 मार्च को ही हो पाएगा लेकिन बनारस अभी भी भाजपा अन्य से कहीं ज्यादा अपनों से ही खतरा है।
अगर पार्टी सूत्रों की माने तो पार्टी के अंदर 2 सबसे बड़े मुद्दे हैं जिन्हें पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी व नरेंद्र मोदी काफी हद तक चिंतित है। सबसे बड़ा मुद्दा वह है कि उम्र के सातवें दशक में पहुंच चुके पार्टी के स्थानीय स्तर के कद्दावर नेता बंगाली ब्राह्मण ‘दादा’ श्यामदेव राय चौधरी को टिकट नहीं दिया गया। वे प्रतिष्ठित सीट वाराणसी दक्षिण से लगातार सात बार पार्टी की तरफ से चुनाव जीते हैं। इस विधानसभा इलाके में कई बड़े मंदिर और धार्मिक संस्थान हैं। ‘दादा’ टिकट ना मिलने से सदमे में हैं। इसके चलते एक बड़ा वर्ग भाजपा के खिलाफ खड़ा है और जिसके चलते बनारस के अंदर भाजपा दो भाग में बंट चुकी है और चुकी बंगाली ब्राह्मणों की तदाद बनारस में ठीक-ठाक है जो कहीं ना कहीं भाजपा वह नरेंद्र मोदी के टिकट बंटवारे के फैसले से नाखुश है जिसका नुकसान सीधे-सीधे भाजपा को बनारस में उठाना पड़ सकता है।
दूसरा अहम मुद्दा है वह है की बनारस में अपना दल को लेकर कही न कही भाजपा की चिंता में इजाफा हुआ है। 2014 में अपना दल के साथ गठबंधन भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुआ था। गठबंधन के कारण उसे बनारस जिले और आस-पास के इलाकों में कुर्मी मतदाताओं के वोट बटोरने में सहूलियत हुई। लेकिन इस बार मां-बेटी अनुप्रिया पटेल और कृष्णा पटेल के बीच दोफाड़ हो चुकी है। कहीं ना कहीं इसका भी नुकसान भारतीय जनता पार्टी को उठाना पड़ सकता है। जो भी हो 3 दिन का प्रवास कर नरेंद्र मोदी ने सभी चीजों को सुलझाने का पूरा प्रयास किया है और कहीं ना कहीं सीधे मतदाताओं से मिलने का भी प्रयास किया है। अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा की अंतर्कलह से जूझ रही बनारस में भाजपा की नैया पार हो पाती है या फिर नहीं।