ग़ाज़ा पट्टी के हज़ारों बच्चों की हालत बयान करते हुए डायना ने कहा, पढ़ाई करने के बजाय हम स्कूल में रह रहे हैं। युद्ध ने उनकी ज़िन्दगी पूरी तरह बदल दी है और अब वो लगातार तीसरे साल शिक्षा से वंचित होने के ख़तरे में हैं। डायना ने यूएन न्यूज़ को बताया, हम स्कूल बैग की जगह कपड़ों का बैग उठाने को मजबूर हैं। डायना और अन्य छात्रों ने कक्षाओं में वापस लौटने की उत्सुकता जताई।
उनसे यह बातचीत उन स्कूलों से हो रही थी जिन्हें ग़ाज़ा के विस्थापित लोगों के लिए शरण स्थल में बदल दिया गया है। लगभग दो साल पहले हमास-नेतृत्व वाले आतंकी हमलों और उसके बाद इसराइल की सैन्य कार्रवाई से शुरू हुए युद्ध में लगभग 23 लाख फिलिस्तीनी निवासियों को कई बार अपने घर छोड़ने पड़े हैं।
संयुक्त राष्ट्र की फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए राहत एजेंसी (UNRWA) के अनुसार लगभग 6 लाख 60 हज़ार बच्चे अब भी स्कूल से बाहर हैं। एक UNRWA स्कूल के भीड़भाड़ वाले गलियारे में, जिसे अब अस्थाई आवास में बदल दिया गया है, डायना ने अपनी पीड़ा साझा की।
ग़ाज़ा शहर के शुजैया मोहल्ले से अपने परिवार के साथ विस्थापित हुई बच्ची डायना ने बताया, हम अब न तो खेलते हैं और न ही पढ़ते हैं। हमें कोई शिक्षा नहीं मिल रही। हम स्कूल के अन्दर रहते हैं, जहां हम विस्थापित हैं, वहीं खाते और सोते हैं। ग़ाज़ा की बच्ची नस्मा अबू नस्र ने युद्ध में अपने पिता को खो दिया। वो कहती है, हमारी ज़िन्दगी के दो साल यूं ही बर्बाद हो गए।
स्कूल की सामग्री के बजाय खाने की तलाश
मिस्क ने युद्ध में अपने पिता को खो दिया। उन्होंने कहा कि उसकी शिक्षा छिन जाने ने इस त्रासदी को और गहरा बना दिया है। उन्होंने बताया, हमारी ज़िन्दगी के दो साल बर्बाद हो गए। अगर युद्ध न होता तो मैं अभी स्कूल की तैयारी कर रही होती, पेन और बाकी सामान ख़रीद रही होती। लेकिन अब हम पानी और खाना ढूंढते हैं, पानी और सामुदायिक रसोईघरों की कतारों में लगते हैं।
आंखों में आंसू रोकते हुए वो आगे बोलीं, हम बच्चे हैं। हम भी दूसरे बच्चों की तरह जीना चाहते हैं। मेरे पिता युद्ध में मारे गए। मेरी क्या गलती है कि इतनी छोटी उम्र में मैं अनाथ हो गई? मेरी क्या गलती है कि मैं अपने परिवार और सब कुछ से वंचित हो गई?
हम पढ़ाई कर रहे थे
नौ साल की जाना ने कहा कि वह फिर से पढ़ाई करना चाहती हैं। हम एक स्कूल में रह रहे हैं और हम चाहते हैं कि वहीं वापस पढ़ाई कर सकें। युद्ध की वजह से हमें घर छोड़ना पड़ा और अब न खाना है न पानी। हम घर लौटना चाहते हैं और सामान्य जीवन जीना चाहते हैं। यह कोई जीवन नहीं है।
माया ने कहा कि युद्ध से पहले की ज़िन्दगी काफ़ी बेहतर थी। बच्चे स्कूल जाते थे, पढ़ते थे और डिप्लोमा लेते थे। मलाक अपना होमवर्क करने के बजाय प्लास्टिक और गत्ते के टुकड़े ढूंढती हैं ताकि उन्हें खाना बनाने के लिए आग जलाने में इस्तेमाल कर सकें। वह उम्मीद करती है कि युद्ध ख़त्म हो जाए ताकि वह स्कूल लौट सके।
वह कहती हैं, हम चाहते हैं कि युद्ध ख़त्म हो। हम घर लौटना चाहते हैं। हम स्कूल वापस जाना चाहते हैं। हम कुछ उपयोगी करना चाहते हैं। हमें बहुत समय से अच्छा खाना नहीं मिला हैं। हम घर लौटना और सामान्य जीवन जीना चाहते हैं। यह कोई जीवन नहीं है।
शिक्षा से वंचित
1949 में फिलिस्तीनी शरणार्थियों की सेवा के लिए स्थापित UNRWA ने चेतावनी दी है कि शिक्षा से वंचित होने के कारण बच्चे खोई हुई पीढ़ी बनने के ख़तरे में हैं। एजेंसी ने एक बयान में कहा, ग़ाज़ा में जारी युद्ध दरअसल बच्चों पर युद्ध है और इसे तुरन्त रोका जाना चाहिए। बच्चों की हर समय सुरक्षा ज़रूरी है। एजेंसी ने यह भी बताया कि ग़ाज़ा पट्टी में लगभग दस लाख बच्चे गहरे मानसिक आघात से जूझ रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र की हाल ही की एक रिपोर्ट के मुताबिक ग़ाज़ा की 90 प्रतिशत से ज़्यादा स्कूल इमारतें या तो पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं या बुरी तरह क्षतिग्रस्त हैं। इन्हें ठीक करने और दोबारा बनाने में भारी संसाधन और लम्बा समय लगेगा।
पश्चिमी तट: खामोश हैं कक्षाएं
पश्चिमी तट पर यूएनआरडब्ल्यूए (UNRWA) के स्कूलों में क़रीब 46 हज़ार फिलिस्तीनी शरणार्थी बच्चों के लिए नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने वाला है। यूएनआरडब्ल्यूए के पश्चिमी तट मामलों के निदेशक रोलैंड फ़्रैडरिक ने कहा कि बढ़ती हिंसा और विस्थापन के बीच ये स्कूल बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सहयोग प्रदान करते हुए उनके लिए एक सुरक्षित ठिकाना बने हुए हैं।
उन्होंने बताया, पिछले साल इसी समय मैंने जेनिन कैम्प में बच्चों के साथ स्कूल सत्र की शुरुआत की थी। लेकिन अब ये छात्र जबरन अपने घरों से निकाले जा चुके हैं और कैम्प के यूएनआरडब्ल्यूए स्कूल सूने पड़े हैं। पश्चिमी तट के उत्तरी हिस्से में विस्थापित 30 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनियों में से एक तिहाई से ज़्यादा बच्चे जेनिन, तुलकरम और नूर शम्स शिविरों से हैं।
रोलैंड फ़्रैडरिक ने कहा, हमारे इतिहास में पहली बार, मई में पूर्वी येरुशलम में इसराइली अधिकारियों द्वारा जबरन बन्द कराए जाने के बाद यूएनआरडब्ल्यूए अपने छह स्कूल नहीं खोल सका। इससे लगभग 800 बच्चे प्रभावित हुए, जिनमें से केवल कुछ ही अन्य स्कूलों में दाख़िला ले पाए हैं।
शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन
रोलैंड फ़्रैडरिक ने चेतावनी दी कि यह न केवल फिलिस्तीनी शरणार्थी बच्चों के शिक्षा के अधिकार का हनन है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश के रूप में इसराइल की अन्तरराष्ट्रीय ज़िम्मेदारियों का भी उल्लंघन है। इसके बावजूद, UNRWA पश्चिमी तट पर फिलिस्तीनी प्राधिकरण के बाद शिक्षा प्रदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा संस्थान बना हुआ है। यह स्कूलों, प्रशिक्षण केन्द्रों और हाइब्रिड लर्निंग तरीक़ों के माध्यम से हज़ारों छात्रों तक शिक्षा पहुंचा रहा है।
उन्होंने कहा, इस नए शैक्षणिक सत्र में हम अपने छात्रों और शिक्षकों पर गर्व करते हैं, जो तमाम मुश्किलों के बावजूद अद्भुत हिम्मत दिखा रहे हैं। हम सभी बच्चों के लिए ऐसे वर्ष की कामना करते हैं जिसमें सीखने का उत्साह, दोस्ती और नई खोज की जिज्ञासा बनी रहे।
Edited By : Chetan Gour