तुझे न माने कोई इससे तुझको क्या मजरूह
तुझे न माने कोई इससे तुझको क्या मजरूहचल अपनी राह भटकने दे नुकता चीनों को------मजरूह सुलतानपुरीआदमी कोई भी काम करे, शुरुआत में उसकी आलोचना ज़रूर होती है। आलोचकों को ही नुकताचीं कहा जाता है। अगर आप समझते हैं के आप जो कर रहे हैं वो ठीक है तो फिर आलोचकों की परवाह नहीं करना चाहिए, उन्हें उनका काम करने देना चाहिए और आपको अपना काम, अपना मिशन आगे बढ़ाते रहना चाहिए। एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब दुनिया आपके काम की, आपके फ़न की सराहना करेगी।