तेनालीराम की कहानियां : तेनालीराम का बोलने वाला बुत
दशहरे का त्योहार निकट था। राजा कृष्णदेव राय के दरबारियों ने भी जब दशहरा मनाने की बात उठाई तो राजा कृष्णदेव राय बोले, ‘मेरी हार्दिक इच्छा है कि इस बार दशहरा खूब धूमधाम से मनाया जाए। मैं चाहता हूं कि इस अवसर पर सभी दरबारी, मंत्रीगण, सेनापति और पुरोहित अपनी-अपनी झांकियां सजाएं। जिसकी झांकी सबसे अच्छी होगी, हम उसे पुरस्कार देंगे।’यह सुनकर सभी दूसरे दिन से ही झांकियां बनाने में जुट गए। सभी एक से एक बढ़कर झांकी बनाने की होड़ में लगे थे। झांकियां एक से बढ़कर एक थीं। राजा को सभी की झांकियां नजर आईं, मगर तेनालीराम की झांकी उन्हें कहीं दिखाई नहीं दी।वे सोच में पड़ गए और फिर उन्होंने अपने दरबारियों से पूछा, ‘तेनालीराम कहीं नजर नहीं आ रहा है। उसकी झांकी भी दिखाई नहीं दे रही है। आखिर तेनालीराम है कहां?’
‘महाराज, तेनालीराम को झांकी बनानी आती ही कहां है? वह देखिए, उधर उस टीले पर काले रंग से रंगी एक झोपड़ी और उसके आगे खड़ा है एक बदसूरत बुत। यही है उसकी झांकी, तेनालीराम की झांकी’, मंत्री ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहा।राजा उस ऊंचे टीले पर गए और तेनालीराम से पूछा, ‘तेनालीराम, यह तुमने क्या बनाया है? क्या यही है तुम्हारी झांकी?’‘जी महाराज, यही मेरी झांकी है और मैंने यह क्या बनाया है इसका उत्तर मैं इसी से पूछकर बताता हूं, कौन है यह?’ कहते हुए तेनालीराम ने बुत से पूछा, ‘बोलता क्यों नहीं? महाराज के सवाल का उत्तर दें।’