तेनालीराम की कहानियां : खूंखार घोड़ा
Tenali Raman ke Kisseविजयनगर के पड़ोसी मुसलमान राज्यों के पास बड़ी मजबूत सेनाएं थीं। राजा कृष्णदेव राय चाहते थे कि विजयनगर की घुड़सवार फौज भी मजबूत हो ताकि हमला होने पर दुश्मनों का सामना कुशलता से किया जा सके।उन्होंने बहुत से अरबी घोड़े खरीदने का विचार किया। मंत्रियों ने सलाह दी कि घोड़ों को पालने का एक आसान तरीका यह है कि शांति के समय ये घोड़े नागरिकों को रखने के लिए दिए जाएं और जब युद्ध हो तो उन्हें इकट्ठा कर लिया जाए।
राजा को यह सलाह पसंद आ गई। उन्होंने एक हजार बढ़िया अरबी घोड़े खरीदे और नागरिकों को बांट दिए। हर घोड़े के साथ घास, चने और दवाइयों के लिए खर्चा आदि दिया जाना भी तय हुआ। यह फैसला किया गया कि हर तीन महीनों के बाद घोड़ों की जांच की जाएगी।तेनालीराम ने एक घोड़ा मांगा तो उसको भी एक घोड़ा मिल गया। तेनालीराम घोड़े को मिलने वाला सारा खर्च हजम कर जाता। घोड़े को उसने एक छोटी-सी अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया जिसकी एक दीवार में जमीन से चार फुट की ऊंचाई पर एक छेद था। उसमें से मुट्ठीभर चारा तेनालीराम अपने हाथों से ही घोड़े को खिला देता।भूखा घोड़ा उसके हाथ में मुंह मारकर पल-भर में चारा चट कर जाता। तीन महीने बीतने पर सभी से कहा गया कि वे अपने घोड़ों की जांच करवाएं। तेनालीराम के अतिरिक्त सभी ने अपने घोड़ों की जांच करवा ली।