पीवी सिंधु : लक्ष्य से न भटका दे ग्लैमर की चकाचौंध
अपने उत्पाद के प्रचार के लिए कंपनियों की निगाह ऐसे व्यक्ति पर होती है जिसे जनता बेहद पसंद करती हो। बड़े नाम ज्यादा पैसा मांगते हैं, लिहाजा उन पर दांव लगाना सस्ता रहता है जिनकी सफलता ताजी हो। ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली पीवी सिंधु इस परिभाषा पर खरी उतरती हैं।
क्रिकेट के लिए काम-धंधे छोड़कर टीवी के सामने बैठे रहने वालों ने सिंधु की खातिर बैडमिंटन का मैच देखा। इनमें से ज्यादातर को तो यह भी पता नहीं था कि पाइंट गिनने का सिस्टम क्या है, लेकिन सिंधु की लहर ऐसी ही थी कि सभी ने फाइनल मैच देखा। लोगों की इस नस को मार्केटिंग टीम ने नजदीकी से पकड़ लिया। उन्हें सिंधु के रूप में ऐसा सितारा मिल गया जिसको अपने उत्पाद के साथ जोड़कर वे चांदी काटने का सोचने लगी हैं।
रियो ओलंपिक में रजत जीतने वाली पीवी सिंधु एक ब्रांड बन चुकी हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियां उनसे अपने ब्रांड का प्रमोशन करवाने के लिए आतुर होंगी। जल्दी ही सिंधु एनर्जी ड्रिंक, कोल्ड ड्रिंक, टीवी या वॉशिंग मशीन बेचते आपके ड्राइंग रूम में नजर आ सकती हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। खिलाड़ी को भी कमाने का हक है। वैसे भी क्रिकेट के अलावा अन्य खिलाड़ियों को पैसे की हमेशा कमी रहती है। फिर खिलाड़ियों का खेल जीवन छोटा रहता है।
डर इस बात का है कि कहीं बाजार और ग्लैमर की चकाचौंध कहीं सिंधु को लक्ष्य से भटका न दे। अक्सर खिलाड़ी बाजारवाद की चकाचौंध में खोकर अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि सिंधु ग्लैमर की इस चकाचौंध में अपने लक्ष्य से नहीं भटकेंगी और अपनी मेहनत को जारी रखेंगी। प्रशंसक सिंधु से टोक्यो में गोल्ड की आशा कर रहे हैं, ऐसे में पीवी सिंधु को स्टार इंफेक्शन से बचना होगा।
अच्छी बात यह है कि पीवी सिंधु के सिर पर पुलेला गोपीचंद का हाथ है। वे अनुभवी हैं और सफलता के साइड इफेक्ट्स के बारे में अच्छी तरह जानते हैं। सिंधु को खेल और ग्लैमर जीवन के बीच संतुलन बनाना सीखा देंगे।