सिंहासन बत्तीसी : चौबीसवीं पुतली करुणावती की कहानी
चौबीसवीं पुतली करुणावती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य का सारा समय ही अपनी प्रजा के दुखों का निवारण करने में बीतता था। प्रजा की किसी भी समस्या को वे अनदेखा नहीं करते थे। सारी समस्याओं की जानकारी उन्हें रहे, इसलिए वे भेष बदलकर रात में पूरे राज्य में, आज किसी हिस्से में, कल किसी और में घूमा करते थे।उनकी इस आदत का पता चोर-डाकुओं को भी था, इसलिए अपराध की घटनाएं छिट-पुट ही हुआ करती थीं। विक्रम चाहते थे कि अपराध बिलकुल मिट जाएं ताकि लोग निर्भय होकर एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करें तथा चैन की नींद सो सकें।
ऐसे ही एक रात विक्रम वेश बदलकर राज्य के एक हिस्से में घूम रहे थे कि उन्हें एक बड़े भवन से लटकता एक कमन्द नज़र आया। इस कमन्द के सहारे ज़रूर कोई चोर ही ऊपर की मंज़िल तक गया होगा, यह सोचकर वे कमन्द के सहारे ऊपर पहुंचे।उन्होंने अपनी तलवार हाथों में ले ली ताकि सामना होने पर चोर को मौत के घाट उतार सकें। तभी उनके कानों में स्त्री की धीमी आवाज़ पड़ी 'तो चोर कोई स्त्री है', यह सोचकर वे उस कमरे की दीवार से सटकर खड़े हो गए जहां से आवाज़ आ रही थी।