सिंहासन बत्तीसी : बारहवीं पुतली पद्मावती की कथा
Sinhasan Battisi 12th Storyबारहवीं पुतली पद्मावती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है-एक दिन रात के समय राजा विक्रमादित्य महल की छत पर बैठे थे। मौसम बहुत सुहाना था। पूनम का चांद अपने यौवन पर था तथा सब कुछ इतना साफ-साफ दिख रहा था, मानों दिन हो। प्रकृति की सुन्दरता में राजा एकदम खोए हुए थे। सहसा वे चौंक गए। किसी स्त्री की चीख थी। चीख की दिशा का अनुमान लगाया। लगातार कोई औरत चीख रही थी और सहायता के लिए पुकार रही थी। उस स्त्री को विपत्ति से छुटकारा दिलाने के लिए विक्रम ने ढाल-तलवार सम्भाली और अस्तबल से घोड़ा निकाला। घोड़े पर सवार हो फौरन उस दिशा में चल पड़े। कुछ ही समय बाद वे उस स्थान पर पहुंचे।
उन्होंने देखा कि एक स्त्री 'बचाओ-बचाओ' कहती हुई बेतहाशा भागी जा रही है और एक विकराल दानव उसे पकड़ने के लिए उसका पीछा कर रहा है। विक्रम ने एक क्षण भी नहीं गंवाया और घोड़े से कूद पड़े। युवती उनके चरणों पर गिरती हुई बचाने की विनती करने लगी। उसकी बांहें पकड़कर विक्रम ने उसे उठाया और उसे बहन सम्बोधित करके ढांढस बंधाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि वह राजा विक्रमादित्य की शरणागत है और उनके रहते उस पर कोई आंच नहीं आ सकती। जब वे उसे दिलासा दे रहे थे, तो राक्षस ने अट्टाहास लगाया।