स्वामी वेदानंद
भारत धर्मप्राण देश है। भारत का धर्म और समाज, शिक्षा और सभ्यता, आचारानुष्ठान- सभी कुछ ऋषियों द्वारा उपलब्ध सत्य की नींव पर खड़े हैं। हमारे सभी तीर्थस्थान ऋषियों और सिद्धों की साधना भूमि रहे हैं। ये स्थान महान आध्यात्मिक तथा तप:शक्ति के अक्षय केंद्र हैं। यही वजह है कि भारत के तीर्थस्थानों के साथ सभी भारतीय का अटूट संबंध है। इस संबंध को तोड़ने की हिम्मत किसी में नहीं है। एक ओर इन तीर्थों तथा सिद्धपीठों से भारतीय नर-नारियों का संबंध तोड़ना कठिन है, उसी प्रकार संबंध-टूटने पर भारत का पतन अनिवार्य है। भारत की भाव-लीला में यवनिका गिर जाएगी।
इसीलिए हम आज भी यह देखते हैं कि पाश्चात्य शिक्षा, सभ्यता का कालकूट आकंठ पीने, विजातीय आदर्श-विलासिता में मोहाच्छन्न होने पर भी भारत के नर-नारी नित्य सांसारिक झंझटों में परेशान रहते हुए, शांति और पवित्रता की लालसा से तीर्थस्थानों की ओर बड़े उत्साह से दौड़ते हैं। अपने सामर्थ्यहीन जीवन में नवीन मृत-संजीवन लाने के लिए उनका आना क्या सिद्ध करता है?
तीर्थों का महत्व
तीर के किनारे रहता है, इसलिए तीर्थ। सुख-दु:ख, रोग-शोक, भय-मोह पीड़ित मानव दैनिक जीवन में काफी परेशान और जर्जर रहता है। जब उसका हृदय सहारा के रेगिस्तान की तरह जलने लगता है, जब उसके सुख की कल्पना, आशा और आनंद के आकाश-कुसुम एक-एक कर झर जाते हैं, मानव-हृदय प्रेत-लीला भूमि बन जाता है, शांति और सांत्वना की पिपासा से मानव जब त्राहिमाम्-त्राहिमाम् चीत्कार करते हुए धरती के गगन-पवन को मथने लगता है, तब जहां जाने पर चित्त असीम, अनंत, अपरिमेय समुद्र में शांति की स्थिर लहरें, गंभीर, निस्तब्ध, शीतल, समाधिस्थ हो जाता है- वही तीर्थ है। संसार-श्मशान के किनारे रहने वाले जीवों के हृदय में अनंत ज्ञानमय, अनंत आनंद, कल्याण का निलय तथा परमात्मा का अनिर्वचनीय स्पर्श कराता है, वही तीर्थ है। यही वजह है कि गृहस्थी की ज्वाला में जलने वाले लोग तीर्थ की ओर शांति की खोज में, सांत्वना पाने की आशा में भागते हैं।
देवभूमि भारत
भारत देवभूमि है, पुण्यभूमि है। यह भाव का आवेग नहीं है, कल्पना की बातें नहीं हैं। प्रत्यक्ष करने पर समझ जाओगे कि कवि की कल्पना वास्तव में प्रकट हुई है, तब आप देख पाएंगे ऐसा देश तुम्हें खोजने पर भी नहीं मिलेगा। हमारा देश स्वर्ग से भी बढ़कर है। इतिहासकारों को भी यह स्वीकार करना पड़ा है- India is an epitome of the world- भारत एक प्रकार से छोटा विश्व है। इतना वैषम्य, इतनी विचित्रताएं, इतने महत्वपूर्ण समावेश संसार के अन्य किसी देश में नहीं हैं। किसी भी भू-पर्यटक से इस बात की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
देवभूमि भारत संसार की मानव जाति के लिए महातीर्थ है। विश्व वरेण्य कवि को भी कहना पड़ा है- 'यहां आकर सभी मस्तक झुकाना पड़ेगा।' इस भारतीय महामानव के सागर तट पर।' यह बात सत्य है-
यहां आर्य यहां अनार्य
यहां द्रविड़ चीन।
शक हूण दल पठान मुगल
एक शरीर में हुए लीन।
भारत ही जगद्गुरु बनेगा
वह दिन आ रहा है, जब यह सत्य प्रमाणित होगा। समग्र संसार प्रत्येक युग में भारत के हृदय से निर्झरित आध्यात्मिक पीयूषधारा से अभिसिंचित होकर अमृतत्व तथा शांति का आस्वाद पाता आया है। अब पुन: विश्व मानव भोग-परायणता और पाशव बर्बरता के विष से जर्जरित होकर त्राहि-त्राहि करते हुए शांति और सांत्वना की आशा से जगज्जननी भारतमाता के चरणों पर आकर गिरेगा। मानव तीर्थों में शांति प्राप्त करने की आशा से जाता है। जगत के अन्य लोगों को भी शांति की खोज में महातीर्थ भारतभूमि में आना पड़ेगा। हमारा भारत देवभूमि है, यहां का प्रत्येक पहाड़, प्रत्येक नदी, प्रत्येक जनपद पुण्यमय महातीर्थ है। पास आओ, भारत के प्रत्येक जनपद में, गिरि पदतल में, पर्वत श्रृंगों में, समुद्र के तट पर, मरुभूमि के बीच। तुम्हारे प्रत्येक कदम में तुम्हारी पंकिल कामना-वासना, स्वार्थ-वासना दुष्ट हृदय अचानक एक दिव्य भाव की प्रेरणा से, किसी एक अपार्थिव स्मृति के स्पर्श से आत्महारा हो जाएगी। तुम अनंत आनंद के लोक में विचरण करते रहोगे। भारत केवल भारतीयों का ही नहीं है, समस्त विश्व, विश्व के मानवों का है। भारत का आदर्श केवल भारत का ही नहीं है, बल्कि विश्व मानव का साध्य वस्तु है। भारत का धर्म, भारत का दर्शन न केवल भारत का है, अपितु समग्र मानव-जाति की विभिन्न समस्याओं का चरम समाधान है।
भारत के तीर्थ समूह...
1. मानव हृदय के महाभावोद्दीपक प्राकृतिक वैचित्र्य और सौन्दर्य का लीला निकेतन है।
2. देवर्षि, महर्षि, राजर्षि, सिद्ध महापुरुष और भागवत प्रेमोन्मत्त महामानवों की साधना का स्थान है। तप का अक्षय केंद्र और अमर लीला स्थान है।
3. राष्ट्र का हृदय, समाज का आदेश केंद्र, शक्ति का सनातन उत्स है। शिक्षा-सभ्यता की जन्मभूमि है।
4. शैशव का दिव्य महाभावमय, स्वप्न कल्पना, कर्मजीवन की शांति का स्थान है। वार्द्धक्य का अविश्वास और आश्रय है और मृत्यु के उस पार का प्रकाशदाता तथा पथ प्रदर्शक है।
5. देवताओं का माहात्म्य और करुणा घनीभूत होकर यहां मानव त्राण के लिए आविर्भूत हुए हैं इसीलिए 'तीर्थ' नाम उच्चारण करते ही नर-नारी का हृदय, एक अनिर्वचनीय विस्मय रस से परिपूरित आनंद के आवेश में अबस हो जाता है। चाहे वह पाश्चात्य विद्याभिमानी हो या विदेशी आदर्श से ओतप्रोत। इन तीर्थस्थनों में जो व्यक्ति व्रत रखकर एकाग्रचित्त से तीन रात गुजार देते हैं, देवता की पूजा, जप, प्रार्थना करते हैं, वे निश्चित रूप से अतीन्द्रिय भाव के स्पर्श उन्नत तथा शांति के अधिकारी हो जाते हैं। देवगण भी तीर्थ के माहात्म्य को देखकर कृतार्थ होंगे।
तीर्थों का कलुष
काल के प्रभाव से सभी में परिवर्तन आता है। काल के प्रभाव से पुण्यभूमि भारत के तीर्थों का पहले की भांति अब वैसा तप: प्रभाव और पवित्रता नहीं है। विभिन्न कारणों से असंख्य पाप-ताप-व्यभिचारों ने प्रवेश ले लिया है जिससे तीर्थस्थानों की महिमा म्लान हो गई है। जिन तीर्थस्थानों में लोग शांति और पवित्रता की लालसा से व्यग्र होकर जाते हैं। आज उसके बदले तीव्र वितृष्णा और अश्रद्धा लेकर लौटते है। आखिर क्यों?
कहा गया है- 'तीर्थी कुर्व्वन्ति साधव:'- साधक की तपस्या शक्ति से तीर्थस्थानों का माहात्म्य बढ़ता है। सदियों से भारत के धर्मक्षेत्र में ऐसे किसी आध्यात्मिक शक्ति संपन्न, धर्म संस्थापक महापुरुष का आविर्भाव न होने के कारण ही तीर्थस्थानों की यह दुर्दशा हुई है। आदर्श भ्रष्ट जाति अबाध रूप से अनाचार, कदाचार, व्यभिचार कर तीर्थों को कलुष बनाते आए हैं। सिंहस्थ में संतों की इस पावन भूमि को गलत लोगों से बचाना जरूरी है।