* 600 साल पहले होशंगाबाद आए थे गुरुनानक देव, स्वर्ण स्याही से लिखी पोथी, राजा होशंगशाह को बनाया शिष्य
ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से प्राचीन, नर्मदापुर तथा आधुनिक काल में होशंगाबाद जिले का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पुण्य सलिला मां नर्मदा की महिमा न्यारी है तभी यहां सांप्रदायिक सद्भाव की गौरवमयी मिसालें देखने को मिलती है।
सिखों के आदिगुरु श्री गुरु नानक देव भी नर्मदा के महात्म्य को जानते थे तभी वे अपनी दूसरी यात्रा के समय जीवों का उद्धार करते हुए बेटमा, इंदौर, भोपाल होते हुए होशंगाबाद आए और यहां मंगलवारा घाट स्थित एक छोटी से कमरे में 7 दिन तक रुके थे तब उनका यह 73वां पड़ाव था, उस समय होशंगाबाद के राजा होशंगशाह थे।
गुरु नानक देव जी होशंगाबाद नर्मदा तट पर रूकने के बाद नरसिंहपुर, जबलपुर में पड़ाव डालते हुए दक्षिण भारत की यात्रा पर निकल गए थे। उक्त यात्रा से पूर्व जब वे यहां रूके थे तब उनके द्वारा स्वलिखित गुरु ग्रंथ साहिब पोथी लिखी, जिसे वे यही छोड़कर चले गए थे।
गुरु नानक देव 1418 ईस्वी में होशंगाबाद आए तब उनके आने की खबर राजा होशंगशाह को लगी तब राजा उनसे मिले और उनसे राजा, फकीर और मनुष्य का भेद जानने की इच्छा व्यक्त की। गुरु नानक देव ने राजा से कमर में कोपिन (कमर कस्सा) बांधने को कहा, राजा ने गुरु नानक देव जी की कमर पर कोपिन बांधा तो उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही, क्योंकि कोपिन में गठान तो बंध गई पर कोपिन में कमर नहीं बंधी।
राजा ने तीन बार कोशिश कर गुरुनानक देव की कमर में कोपिन बांधने का प्रयास किया लेकिन वे कोपिन नहीं बांध सके और आश्चर्य व चमत्कार से भरे राजा होशंगशाह गुरु नानक देव के चरणों में गिर पड़ें ओर बोले मुझे अपना शिष्य स्वीकार कर लीजिए, जिसे अपनी करूणा के कारण गुरु नानक ने स्वीकार कर राजा होशंगशाह को अपना शिष्य बना लिया। 17 साल बाद 1435 में राजा होशंगशाह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र गजनी खान यहां का उत्तराधिकारी हो गया था।
होशंगाबाद में जब गुरु नानक देव आए थे तब वर्ष 1418 चल रहा था। नर्मदा के प्रति उनका आगाध्य आध्यात्मिक प्रेम था इसलिए वे उसके तट पर रूके और उन्होंने कीरतपुर पंजाब में लिखना शुरू की। श्री गुरु ग्रंथ साहिब पोथी लेखन जो अपनी यात्रा में लिखते रहे वह स्याही के अभाव में स्वर्ण स्याही से पोथी लिखना शुरू की जो आज भी इस गुरुद्वारे में दर्शनार्थ रखी है और तब से वर्ष 2018 में इस ऐतिहासिक पड़ाव का 600वां साल पूरा होने जा रहा है।
चार-पांच दशक पूर्व गुरु नानक देव के द्वारा जिस छोटी सी कोठरी मे अपना समय बिताकर पोथी का लेखन किया गया, उस स्थान पर दर्शन करने के लिए अनेक स्थानों से श्रद्धालुओं की भीड़ जुड़ती थी परंतु अब इस नई पीढ़ी को इसका पता नहीं इसलिए वे इस पावन स्थान के दर्शन करने से चूक रही है।
दूसरा बड़ा कारण जिले का पुरातत्व विभाग एवं जिला प्रशासन है जिसने अपने नगर की इस अनूठी धरोहर की जानकारी से वंचित रखा हुआ है, अलबत्ता सिख संप्रदाय के लोग गुरु नानक देव की जयंती के 4 दिन पूर्व से उत्सव मना कर शहर में जुलूस निकालने की परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं, जो 23 नवंबर को उनकी होने वाली गुरु नानक जयंती के पूर्व देखने को मिली।
नानक देव जी की हस्तलिखित इस श्री गुरु ग्रंथ साहिब पोथी को पिछले 400 सालों से बनापुरा का एक सिख परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी दर्शन कर पाठ करने के साथ इस अमूल्य धरोहर को सुरक्षित रखते आ रहा है था और जिसकी जानकारी स्थानीय नागरिकों को थी किंतु सिख समाज को नहीं थी, जैसे ही एक स्थानीय सिख कुंदन सिंह को जानकारी हुई तो उन्होंने गुरु नानक देव की हस्तलिखित इस धरोहर को अपने पास सुरक्षित रख लिया और 14 अप्रैल 1975 को उसकी पवित्र अर्चना की और आमला से आए सरदार सूरतसिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब को पहली माला अर्पित की, तब कुंदन सिंह चड्डा और आईएस लांबा उस समय उपस्थित थे।
तभी से गुरु ग्रंथ साहिब को उसी स्थान पर जहां नानक जी ठहरे थे, स्थापित कर दिया गया और उसके बाद यहां प्रतिदिन नियमित पूजा-अर्चना शुरू हो गई और शबद कीर्तन एवं लंगर इत्यादि आयोजन शुरू हुए जो क्रम अब तक जारी है।