ध्यान दें, कहीं आप भी तो नहीं कर रहे श्राद्ध में यह बड़ी गलतियां
आश्विन मास में पितृ पक्ष को पूर्वजों के धरती पर आगमन के दिन के रूप में मनाया जाता है। 16 दिनों तक लोग पितरों के नाम पर दान करते हैं। इन दिनों पितरों के नाम पर जो भी कुछ दान किया जाता है कि वह स्वर्गवासी पूर्वजों की आत्मा को किसी ना किसी रूप में मिलता है।
मनुस्मृति और ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार दिवंगत पितरों के परिवार में या तो ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र और अगर पुत्र न हो तो दोहित्र (नाती), भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं।
कई ऐसे पितर भी होते है जिनके पुत्र संतान नहीं होती है या फिर जो संतान हीन होते हैं। ऐसे पितरों के प्रति आदर पूर्वक अगर उनके भाई, भतीजे, भांजे या अन्य चाचा के परिवार के पुरुष सदस्य पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान करके ब्राह्मणों से विधिपूर्वक श्राद्ध कराते है तो पितर की आत्मा को मोक्ष मिलता है।
विशेष सावधानियां
पितरों के निमित्त सारी क्रियाएं गले में दाएं कंधे मे जनेउ डाल कर और दक्षिण की ओर मुख करके की जाती है।
श्राद्ध का समय हमेशा जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लग जाए तब उचित होता है, अर्थात दोपहर के बाद ही शास्त्र सम्मत है। सुबह-सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है। ऐसे में पितर नाराज हो सकते हैं।
श्राद्ध के नाम पर सुबह-सुबह हलवा- पूरी बनाकर मन्दिर में और पंडित को देने से श्राद्ध का फर्ज पूरा नहीं होता है। ऐसे श्राद्धकर्ता को उसके पितृगण कोसते हैं क्योंकि उस थाली को पंडित भी नहीं खाता है बल्कि कूड़ेदान में फेंक देता है। जहां सूअर, आवारा कुत्ते आदि उसे खाते हैं।
श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनना चाहिए।
उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध, घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन में मान्य है।
आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढ़ती है।