शुक्रवार, 26 दिसंबर 2025
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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 15 सितम्बर 2025 (18:08 IST)

shradh 2025: श्राद्ध कर्म के लिए कुतुप और रोहिण काल का क्यों माना जाता है महत्वपूर्ण, जानें महत्व और सही समय

importance of kutup kaal in shradh
best time for shradh: सनातन धर्म में पितृ पक्ष का समय अपने पूर्वजों को याद करने और उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने का होता है। इन 15 दिनों में किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से हमारे पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष मिलता है। श्राद्ध कर्मकांड के लिए सही समय (मुहूर्त) का बहुत महत्व होता है। शास्त्रों में श्राद्ध के लिए कई शुभ कालों का वर्णन है, जिनमें कुतुप काल और रोहिण काल सबसे महत्वपूर्ण माने गए हैं। इन विशेष समयों में किए गए कर्मकांड से पितरों को सीधे तृप्ति मिलती है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

क्या है कुतुप काल?
दिन के 15 मुहूर्तों में से आठवां मुहूर्त कुतुप काल कहलाता है। यह मध्याह्न (दोपहर) का समय होता है, जो लगभग 11:36 बजे से 12:24 बजे तक होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह वह समय है जब पितरों की आत्माएं अपने वंशजों के निकट आती हैं और उनके द्वारा किए गए तर्पण और भोजन को ग्रहण करती हैं। कहा जाता है कि इस समय किए गए सभी दान और कर्मकांड सीधे पितरों तक पहुँचते हैं। इसलिए, पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मणों को भोजन कराने के लिए यह समय सबसे उत्तम माना जाता है।
कुतुप काल का महत्व:
पितरों का आगमन: माना जाता है कि इस समय पितर धरती पर आते हैं।
अक्षय फल: इस काल में किया गया श्राद्ध अक्षय फल प्रदान करता है, जिसका अर्थ है कि इसका पुण्य कभी खत्म नहीं होता।
सर्वोत्तम समय: पिंडदान, ब्राह्मण भोज और दान के लिए यह सबसे शुभ समय है।

क्या है रोहिण काल?
रोहिण काल भी श्राद्ध कर्म के लिए एक अत्यंत शुभ मुहूर्त है, जो दोपहर के बाद आता है। यह कुतुप काल के बाद लगभग 12:24 बजे से 01:24 बजे तक होता है। हालांकि, रोहिण काल कुतुप काल जितना महत्वपूर्ण नहीं माना जाता, लेकिन फिर भी इसे श्राद्ध के लिए बहुत शुभ माना गया है। जिन लोगों के लिए कुतुप काल में श्राद्ध करना संभव नहीं होता, वे रोहिण काल में यह कार्य कर सकते हैं।
रोहिण काल का महत्व:
• दूसरा सबसे शुभ मुहूर्त: कुतुप काल के बाद रोहिण काल को श्राद्ध का दूसरा सबसे अच्छा समय माना जाता है।
• पुण्य की प्राप्ति: इस काल में किए गए कर्मकांड से भी पितरों को शांति मिलती है और व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है।

इन कालों के अलावा अन्य शुभ मुहूर्त:
कुतुप और रोहिण काल के अलावा, अपराह्न काल (दोपहर 01:24 बजे से 03:30 बजे तक) भी श्राद्ध के लिए शुभ माना जाता है। इसके विपरीत, सुबह का समय, प्रदोष काल (शाम का समय) और रात्रि का समय श्राद्ध कर्म के लिए वर्जित है।

श्राद्ध कर्म केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अपने पितरों के प्रति सम्मान और प्रेम व्यक्त करने का एक तरीका है। कुतुप और रोहिण काल का महत्व इसलिए है क्योंकि ये वे समय हैं जब ब्रह्मांडीय ऊर्जाएं हमारे और हमारे पूर्वजों के बीच एक सीधा संबंध स्थापित करती हैं। इन शुभ कालों में श्रद्धा और भक्ति के साथ किए गए श्राद्ध से हमारे पितर प्रसन्न होते हैं और हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो हमारे जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भर देता है।
 

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